मोदी सरकार ने विज्ञापन पर अब तक खर्च कर डाले 5246 करोड़ रुपये, फिर भी गिर रही है साख
केंद्र की मोदी सरकार ने अपने साढ़े चार साल से अधिक के कार्यकाल में सरकारी योजनाओं के विज्ञापन पर करीब 5246 करोड़ रुपये खर्च कर दिए हैं। यह जानकारी लोकसभा में सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने दी। इतना खर्च करने के बावजूद सरकार की साख गिरती ही जा रही है।
द ग्रेट बनाना रिपब्लिक ऑफ इंडिया
दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश बनाना रिपब्लिक की राह पर है। ये आवाज 2011 से 2014 के बीच जितनी तेज थी, 2014 के बाद उतनी ही मंद है या कहें अब कोई नहीं कहता कि भारत बनाना रिपब्लिक की दिशा में है। तो क्या वाकई मनमोहन सिंह के दौर में भारत बनाना रिपब्लिक हो चला था और सत्ता बदली तो बनाना रिपब्लिक की सोच थम गई, क्योंकि एक न्यायपूर्ण सत्ता चलने लगी।
अध्यादेश पर मुसीबत में मनमोहन सरकार
सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश को वापस लेने का विचार कर रही यूपीए सरकार के लिए अब घटक दल मुसीबत का सबब बनते दिख रहे हैं। ये सहयोगी महज कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की वजह से कैबिनेट के फैसले को पलटने के खिलाफ बताए जा रहे हैं। शरद पवार की एनसीपी और फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस ने इस मामले को लेकर यूपीए समन्वय समिति की बैठक की मांग की है। एनसीपी प्रवक्ता और सांसद डीपी त्रिपाठी ने कहा, 'राहुल गांधी कांग्रेस के बारे में जो भी कहना चाहें उसके लिए वह स्वतंत्र हैं, लेकिन मनमोहन सिंह की सरकार सिर्फ कांग्रेस की सरकार नहीं है। यह यूपीए की सरकार है और राहुल गांधी अच्छी तरह से जानते हैं कि हम यूपीए के सहयोगी हैं, कांग्रेस के अनुयायी नहीं।'