अनशन नहीं राजनीति होगी अब इरोम का हथियार
16 साल से अनशन पर बैठी शर्मिला इरोम ने आखिरकार राजनीतिक तरीके से अपनी लड़ाई लड़ने का फैसला ले लिया है। इरोम, मणिपुर से विवादित सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) हटाने को लेकर साल 2000 से अनशन पर बैठी हैं। मणिपुर की आयरन लेडी इरोम ने मंगलवार को घोषणा की कि वह नौ अगस्त को अपना अनशन समाप्त कर देंगी और राज्य विधानसभा का चुनाव लड़ेंगी। एक स्थानीय अदालत से बाहर आते हुए उन्होंने मीडिया से कहा, 'मैं नौ अगस्त को अपना अनशन समाप्त कर दूंगी और चुनाव लड़ूंगी।'
ये तो राजनीति का अपमान है
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह कहा कि 60 वर्ष से ऊपर नेताओं को राजनीति छोड़कर समाज सेवा करनी चाहिए। तो क्या भारतीय राजनीति में सदियों से नेतागण स्वकल्याण करते आ रहे थे और अपने बयानों और बातों से जनता को महज बरगलाने का काम कर रहे थे। हमारे देश के राजनीतिज्ञों और दार्शनिकों ने राजनीति को सेवाभाव के तौर पर ही परिभाषित किया था। राजनीति में रिटाइटरमेंट जैसा कुछ नहीं होता, हमारे संविधान में भी इसका कोई उल्लेख नहीं है। तो भला एक हार ने कैसे शाह की समझ को इतना सिमटा दिया।
राष्ट्रनीति का हिस्सा नहीं भूमि अध्यादेश
भाजपा और मोदी सरकार भले ही इस बात से इंकार करे कि उन्हें रामलीला मैदान में कांग्रेस की किसान रैली से कोई असर नहीं पड़ता लेकिन, इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चित रूप से इस रैली से विचलित थे। यही वजह रही कि किसान रैली के ऐन वक्त पर भाजपा ने मोदी सर की पाठशाला लगाई। मोदी सर अपनी पाठशाला के माध्यम से देश को राजनीति और राष्ट्रनीति का फर्क तो बता गए, लेकिन यह समझाने में विफल रहे कि किसानों की जमीन छीनकर कॉरपोरेट को दे देने से गरीबों, मजदूरो और किसानों की ताकत कैसे बढ़ जाएगी। आखिर भूमि अधिग्रहण पर अध्यादेश लाने की इतनी जल्दी क्या जरूरत पड़ गई थी। सरकार के पास बहुत सी जमीनें पड़ी हैं जिसपर उद्योग लगाकर देश की गरीब जनता और किसानों के भरोसे को सरकार जीत सकती थी। यह कदम राजनीति है, राष्ट्रनीति तो कतई नहीं कही जा सकती।
राष्ट्रनीति पर काम कर रही है सरकार : पीएम
कॉरपोरेट के हित वाली सरकार के अगुवा होने के आरोपों से घिरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी सरकार को गरीब और किसान हितैषी के तौर पर पेश किया। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार राजनीति नहीं राष्ट्रनीति पर काम कर रही है। रविवार को भाजपा सांसदों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि राजनीति कहती है कि हमें सरकारी खजाना बर्बाद कर देना चाहिए। इसे बांटो और जनता की तारीफ बटोरो। इस राजनीति ने देश को बर्बाद कर दिया है। केवल राष्ट्रनीति ही देश को बचा सकती है। यह कहती है कि गरीब को सशक्त बनाना चाहिए।’
महाभारत, रामायण से सीखें राजनीति : आडवाणी
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करने की वकालत किए जाने के बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने रविवार को लोगों से महाभारत और रामायण पढ़ने की नसीहत दी। आडवाणी ने कहा कि ये महाकाव्य राजनीति और नैतिकता पर ज्ञान के बड़े स्रोत हैं। उन्होंने कहा, 'मैं मानता हूं कि महाभारत के अलावा कोई दूसरा महाकाव्य शिक्षणशास्त्र का इतना बड़ा स्रोत, राजनीति पर सूचना का महान स्रोत और साथ ही नैतिक शिक्षा, एकता और साहस का इतना बड़ा स्रोत नहीं है।'
राज ’नीति’ और विरोध ‘नीति’ का फर्क
कांग्रेस ही क्यों देश में राज करती है। ऐसा तो है नहीं कि कांग्रेस का विरोध करने वाले अरविंद केजरीवाल आज ही जन्म लिए हों। इसका सही जवाब ये है कि कांग्रेस सारी कमियों के बाद राज नीति करती है और विरोध करने वाले ढेर सारी अच्छाइयों के बाद भी विरोध नीति।
जरदारी ने की राजनीति में वापसी की तैयारी
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने गुरुवार को सिंध प्रांत में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई है। यह उनकी राजनीति में वापसी की ओर संकेत करता है। जरदारी ने पीपीपी नेताओं को गुरुवार शाम भोजन पर आमंत्रित किया है।
'2016 में संन्यास नहीं लेंगी सोनिया गांधी'
कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी 2016 में राजनीति से संन्यास नहीं लेंगी। सोनिया ने इस संबंध में आई खबरों को गलत बताते हुए कहा कि उन्होंने कभी संन्यास लेने की बात नहीं कही है। लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान के मुताबिक ये बात खुद कांग्रेस अध्यक्ष ने उनसे कही है।
सोशल मीडिया से बदल रही है सियासत
सोशल मीडिया राजनीति का नक्शा बदलने के लिए तैयार है। इसने छद्म व्यवहार करने वाले राजनीतिज्ञों के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। ये तकनीक आई सोशल मीडिया के ट्विटर, फेसबुक या दूसरे अन्य प्रचलित माध्यमों से। सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा राजनेताओं को नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के बाद लगा।
राजनीति की बिसात पर बिछा है कच्चाथीवू
तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच बसा है एक छोटा सा द्वीप, कच्चाथीवू। एक ऐसा द्वीप जिसमें शुद्ध पेय जल की भी व्यवस्था नहीं है। सिवाय सेंट एंथनी गिरिजाघर के यहां कुछ भी ऐसा नहीं है जिसके लिए हायतौबा मचाई जाए। इस चर्च में सालाना जलसा होता है, जो दो दिन तक चलता है और इसमें हिस्सा लेने के लिये दोनों देशों के मछुआरे पहुंचते हैं। आपसी भाईचारे के साथ त्योहार मनता है और फिर सब खुशी-खुशी लौट जाते हैं। इसे खास बनाता है इससे जुड़ा विवाद जो चुनाव की सुगबुगाहट होते ही और लाइमलाइट में आ जाता है।