राजनीति से प्रेरित है निजी स्कूलों की मनमानी
रेयान इंटरनेशनल स्कूल में 7 साल के प्रद्युम्न ठाकुर की नृशंस हत्या हमारे बिगड़ते सामाजिक व्यवहार का उदाहरण तो है ही साथ ही हमारे लिए एक संकेत भी है। इशारा कि केवल सामाजिक तानेबाने को कोसने या फिर किसी संस्थागत कमी की लकीर को पीटने भर से कुछ नहीं होगा बल्कि बात तो तब बनेगी जब हम पोलिटिकल रिफॉर्म पर बहस करेंगे।
मौके की यारी
नीतीश कुमार ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वह न तो जेडीयू के नेता हैं, न महागठबंधन के नेता है और न ही एनडीए के नेता हैं। वह नेता हैं तो सिर्फ 'मौके की यारी' के। बुधवार को जब नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें ट्वीट कर बधाई दी। इसके जवाब में नीतीश कुमार ने पीएम मोदी को तहे दिल से शुक्रिया भी कहा। भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ होगा जब किसी मुख्यमंत्री के इस्तीफे पर देश के प्रधानमंत्री ने बधाई दी हो। कुछ ही घंटों में इन दोनों नेताओं के बीच नजदीकियां इतनी बढ़ जाए, इसे मौके की यारी न कहें तो और क्या कहें?
'भारत माता की जय' पर बखेड़ा कब तक?
देश की राजनीति भटक सी गई है। कभी आरक्षण का मुद्दा, कभी अभिव्यक्ति की आजादी का मुद्दा तो कभी राष्ट्रीय नारा और राष्ट्रगान को लेकर बहसबाजी। ये सभी मुद्दे सत्ता में बने रहने की जद्दोजहद के लिए की जाने वाली राजनीति तो हो सकती है, लेकिन इससे राजनीति के असल मायने 'लोकतंत्र के विकास' की अवधारणा टूटती दिख रही है। देश में बड़ा बखेड़ा खड़ा होता दिख रहा है। जी हां! हम बात करे रहे हैं 'भारत माता की जय' पर चल रहे बखेड़ा की। बड़ा सवाल जिसका जवाब कोई नहीं दे रहा कि 'भारत माता की जय' बोलने या ना बोलने से 125 करोड़ देशवासियों के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में हासिल क्या हो रहा है? क्या इससे गरीबी मिट जाएगी? क्या इससे लातूर जैसे इलाके में पानी का संकट दूर हो जाएगा? क्या इससे स्वास्थ्य और शिक्षा के स्तर पर देश ऊंचाईयों की बुलंदी छू पाएगा? और सबसे बड़ी बात ये कि 'भारत माता की जय' का नारा लगा-लगा कर मोदी सरकार 'सबका साथ सबका विकास' के लक्ष्य को हासिल कर अच्छे दिन का जो सपना देश दिखाया है, पूरा कर पाएगी?
योगपथ से एक नए युग का आरंभ : PM मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर रविवार को कहा, 'कभी किसी ने सोचा नहीं होगा कि ये राजपथ भी योगपथ बन सकता है। मैं मानता हूं कि आज से न सिर्फ एक दिवस मनाने की शुरुआत हो रही है, बल्कि शांति, सद्भावना की ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए एक नए युग का भी आरंभ हो रहा है।'
स्टिंग दर्द नहीं दवा है 'आप' के लिए
स्टिंग के दर्द को इन दिनों 'आप' भी झेल रही है। 'आप' यानी आम आदमी पार्टी। वो पार्टी जो खुद गुपचुप तरीके से भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने का दम भरती रही है और आज इसे ही बेनकाब करने का दावा किया जा रहा है। 'आप' की बुनियाद भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन रहा है। इसे पार्टी की यूएसपी ही कहेंगे कि आमजनों में ये परंपरागत पार्टियों से हटकर दिखती हैं। इसके नेता आम लोगों जैसे हैं।
सत्ता विमर्श क्यों?
राजनीति के जिस आचार-विचार-व्यवहार को हम आज जी रहे हैं उसपर टिप्पणी करना कोई आसान काम नहीं है। व्यक्तिगत रूप से देखा जाए तो यह पूरा परिदृश्य ही स्वार्थी है, महत्वाकांक्षी है। आज राजनीतिक मंच पर जो कुछ हो रहा है और जैसे भी हो रहा है, वह सब लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र में हो रहा है। इसलिए सबसे पहला काम तो यही बनता है कि हम अपनी मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही जांचें, परखें कि इसमें किस जगह कौन सी खामी रह गई है। सत्ता विमर्श इस मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था को परखकर उसमें सुधार करने का बीड़ा उठाना चाहती है ताकि राजनीति के गिरते मूल्यों को फिर से स्थापित किया जा सके।