लोकतंत्र में न्यायपालिका की भूमिका अहम : मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां शनिवार को कहा कि लोकतंत्र में न्यायपालिका की अहम भूमिका होती है और पटना उच्च न्यायालय का शताब्दी समारोह नई सदी की जिम्मेदारियों का प्रारंभ भी है। पटना उच्च न्यायालय शताब्दी समापन समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे समारोह नए संकल्पों के अवसर होते हैं।
'लोकतंत्र को पटरी से नहीं उतार सकता ‘कोई मार्च’
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने संसद के संयुक्त सत्र में प्रदर्शनकारियों पर सीधा निशाना साधते हुए अपने संबोधन में कहा कि कोई ‘बड़ा या छोटा मार्च’ लोकतंत्र को पटरी से नहीं उतार सकता, हालांकि इमरान ने कहा है कि वह शरीफ के इस्तीफा देने तक अपना धरना जारी रखेंगे।
ये उत्तर प्रदेश का चरित्र है!
किसी भी समुदाय, समाज की व्याख्या उसके नायकों के आधार पर ही की गई है। पहले राजे-रजवाड़े, नवाब होते थे। अब लोकतंत्र है। इसलिए चुनकर जो आ जाए वही नायक होता है। चुनकर कैसे आया ये मुद्दा नहीं है। उसी के चरित्र से समुदाय, समाज, राज्य और देश का चरित्र तय होता है। आज उत्तर प्रदेश का चरित्र तय हो रहा है।
'पॉप्युलिस्ट ऐनर्की' शासन का विकल्प नहीं: राष्ट्रपति
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर देश के नाम अपने संदेश में राष्ट्रपति ने आम आदमी पार्टी पर अप्रत्यक्ष रूप से हमला किया। उन्होंने कहा कि 'पॉप्युलिस्ट ऐनर्की' यानी लोकलुभावन अराजकता कभी भी गवर्नेंस की जगह नहीं ले सकती। इसके साथ ही आगामी चुनावों में देश में स्थिर सरकार की वकालत करते हुये राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आगाह किया है कि खंडित सरकार मनमौजी अवसरवादियों पर निर्भर होगी और यह भारत के लिए विनाशकारी होगा। राष्ट्रपति ने देश की जनता से कहा कि 2014 में होने वाले चुनावों में हम देश को निराश नहीं कर सकते।
यूपीए ने किया अर्थव्यवस्था का बेड़़ा गर्क
लोकतंत्र की स्थापना की कुछ बुनियादी शर्तें होती हैं जिसे इसके मूलभूत सिद्धांतों के रूप में चलना जरूरी होती है। लेकिन अब जबकि लोकतंत्र में सुशासन की मांग नए सिरे से जोर पकड़ रही है तो ऐसे में उस लोकतंत्र में कुछ नये मूलभूत सिद्धांतों को शामिल करने की दरकार आन पड़ी है।
सत्ता विमर्श क्यों?
राजनीति के जिस आचार-विचार-व्यवहार को हम आज जी रहे हैं उसपर टिप्पणी करना कोई आसान काम नहीं है। व्यक्तिगत रूप से देखा जाए तो यह पूरा परिदृश्य ही स्वार्थी है, महत्वाकांक्षी है। आज राजनीतिक मंच पर जो कुछ हो रहा है और जैसे भी हो रहा है, वह सब लोकतंत्र के नाम पर लोकतंत्र में हो रहा है। इसलिए सबसे पहला काम तो यही बनता है कि हम अपनी मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही जांचें, परखें कि इसमें किस जगह कौन सी खामी रह गई है। सत्ता विमर्श इस मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था को परखकर उसमें सुधार करने का बीड़ा उठाना चाहती है ताकि राजनीति के गिरते मूल्यों को फिर से स्थापित किया जा सके।