बीजेपी मैनिफेस्टो : बेहतर भारत का दस्तावेज
भाजपा के घोषणा पत्र में जिस तरह से राष्ट्र, राष्ट्रीय और राष्ट्रीयता को जगह दी गई है वो शानदार है। इकोनॉमिक नेशनलिज्म (आर्थिक राष्ट्रवाद), नेशनल लैंड यूज पॉलिसी (राष्ट्रीय भूमि प्रयोग नीति) भारतीय जनता पार्टी के पार्टी विद डिफरेंस वाली लाइन को मजबूती से आगे बढ़ाता है।
सेक्युलर कौम vs विकास की अफीम
बताइए भारत जैसे देश से पूरी सेक्युलर कौम ही खत्म हो रही थी। क्या हिंदू, क्या मुसलमां। सब बौरा गए थे। सबने विकास की अफीम चाट ली है। सबको लगता है कि तरक्की मिले, जेब में रकम आए। अच्छे से जी लें। अरे इससे क्या होगा अगर भारत में हिंदू, मुसलमान की बात ही होनी बंद हो जाए।
चुनाव लाएगा अर्थव्यवस्था में तेजी
भारतीय लोकतंत्र का ये महोत्सव इकनॉमिक स्टिमुलस के तौर पर दिख रहा है। लोकतंत्र के महोत्सव के बहाने भारतीय अर्थव्यवस्था को मिलने वाला ये स्टिमुलस यानी राहत पैकेज न सिर्फ अर्थव्यवस्था में तेजी लाएगा बल्कि, युवा भारत की सबसे बड़ी समस्या यानी बेरोजगारी के लिए भी बड़ी राहत का काम करेगा।
राजीव के कातिलों की रिहाई पर ये कैसी राजनीति?
राजीव गांधी के कातिलों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के फैसले को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने खारिज करते हुए कहा कि जयललिता का यह फैसला कानूनी रूप से सही नहीं है। निश्चित रूप से एक पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के दोषियों पर किसी तरह की नरमी नहीं बरती जानी चाहिए, लेकिन यहां यह भी देखना होगा कि राजनेताओं के हत्यारों और आतंकवादियों के प्रति इस तरह की नरमी की राजनीति किसने शुरू की?
केजरीवाल की पार्टी का नाम ईआपा क्यों नहीं?
आम आदमी पार्टी। ढेर सारे खास लोगों के जुड़ने के बाद भी ये आम आदमी पार्टी है और पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल सबसे ईमानदार हैं। समझना जरूरी है कि सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को पार्टी का मूलमंत्र बताने वाले अरविंद केजरीवाल ने पार्टी का नाम ईमानदार आदमी पार्टी क्यों नहीं रखा।
आंखों देखी : मेरठ में 7.80 लाख की भीड़
नरेंद्र मोदी की रैलियों में बढ़ रही भीड़ की सही संख्या का अनुमान लगाना मुश्किल खड़ी कर रहा है। आलम ये है कि मीडिया वाले भी इस भीड़ में लोगों की सही संख्या को अपने पाठकों व दर्शकों को बता पाने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। अगर नरेंद्र मोदी की रैली में जुट रही भारी भीड़ को भाजपा कार्यकर्ता मतदान बूथ तक पहुंचाने में कामयाब हो गए तो सचमुच 2014 में भारतीय राजनीति का नया अध्याय शुरू होगा।
केजरीवाल जी! हद कर दी आप ने
ठंडी की एक रात में प्रदर्शन के दौरान जागने के बाद अरविंद केजरीवाल के ज्ञान चक्षु खुल गए हैं। पता नहीं ये दिव्य ज्ञान बीती रात ही हुआ या उससे पहले से ही है। ये दिव्य ज्ञान ये है कि आधा मीडिया नरेंद्र मोदी के साथ है और आधा राहुल गांधी के साथ। वो ये कॉमेडी क्यों कर रहे हैं।
कहीं प्रतीक न बन जाएं अरविंद केजरीवाल
प्रतीकों की राजनीति के मामले में बाजी मार ली है अरविंद केजरीवाल ने। राजनीति के नायक अभी अरविंद केजरीवाल बने हों या न बने हों, लेकिन मेरी निजी राय यही है कि प्रतीकों की राजनीति का इस समय का सबसे बड़ा नायक अरविंद केजरीवाल ही हैं।
राज ’नीति’ और विरोध ‘नीति’ का फर्क
कांग्रेस ही क्यों देश में राज करती है। ऐसा तो है नहीं कि कांग्रेस का विरोध करने वाले अरविंद केजरीवाल आज ही जन्म लिए हों। इसका सही जवाब ये है कि कांग्रेस सारी कमियों के बाद राज नीति करती है और विरोध करने वाले ढेर सारी अच्छाइयों के बाद भी विरोध नीति।
सोशल मीडिया से बदल रही है सियासत
सोशल मीडिया राजनीति का नक्शा बदलने के लिए तैयार है। इसने छद्म व्यवहार करने वाले राजनीतिज्ञों के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। ये तकनीक आई सोशल मीडिया के ट्विटर, फेसबुक या दूसरे अन्य प्रचलित माध्यमों से। सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा राजनेताओं को नरेंद्र मोदी की बढ़ती लोकप्रियता के बाद लगा।