...और कैश क्रंच ने ले ली बीमार नूरजहां की जान
नोटबंदी का दौर कईयों के परिवार पर कहर बन कर बरपा था। डेढ़ साल बाद कैश क्रंच ने एक बार फिर एटीएम और बैंकों के बाहर लम्बी लाइनों में खड़ी जनता की तस्वीर पेश कर दी। खबर बिहार के पूर्णिया से है जहां कैश क्रंच की मार एक बीमार महिला पर ऐसी पड़ी की उसे अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा।
इसे कुप्रबंधन ना कहें तो क्या कहें
डिजिटल होते इंडिया की ये अजब सी परेशानी है। सरकार विमुद्रीकरण के बाद लगातार अपनी पीठ थपथपा रही है। अब तक काले धन पर नकेल का राग अलापा जा रहा है। और इन सबके बीच बेचारी आम जनता फिर ऑटोमैटिक टेलर मशीन के सामने खाली हाथ लिए खड़ी है। अपना ही पैसा नहीं निकाल पा रही है। सरकार कितने भी तर्क गढ़े लेकिन ये साफ हो गया है कि वर्तमान सरकार जितना चुनावों के प्रबंधन में माहिर है उतनी ही अपनी नीतियों को लागू कराने में नाकाम साबित हो रही है। इसे कुप्रबंधन ना कहा जाए तो और क्या कहा जाए?
देश के कई राज्यों में साइलेंट डिमोनेटाइजेशन से मचा हड़ंकप, वित्त मंत्री ने दिया बढ़ती मांग का हवाला
विमुद्रीकरण की मार अब तक झेल रहे देश को अचानक आज कैश की किल्लत की खबर ने परेशान कर दिया है। देश के कई एटीएम कैश क्रंच यानी कैश की कमी से जूझ रहें हैं। इनके बाहर नो कैश का बोर्ड टांग दिया गया है। लोगों को 2000 और 500 रुपए के नोट मिल ही नहीं रहें हैं। भोपाल से लेकर वाराणसी तक लोग एक बार फिर लंबी कतार में दिख रहें हैं। इस बीच सरकार ने इसके लिए बढ़ती मांग को जिम्मेदार ठहराया है।