कुशीनगर जैसा हादसा कोई पहली बार नहीं हुआ, बल्कि बार-बार ऐसा होता है और डिजीटल होते इंडिया और भारत के बीच जो लगातार खाई बढ़ रही है उसकी ओर इशारा करता है। ऐसे हादसों और वाकयों की कमी नहीं है। कमी है तो कानून के खौफ की। कमी है तो जिम्मेदार लोगों के जज्बे की, कमी है तो संवेदनशीलता की और हादसों से सीख लेकर सुधार करने की। इस हादसे के बाद भी वही हो रहा है जो हमेशा होता है यानी खानापूर्ति। हमारा भविष्य बिखर रहा है, डूब रहा है लेकिन हैरत की बात है कि हम फिर भी खामोश देख रहें हैं।