लंकेश की हत्या का HC ने किया जिक्र, कहा- उदारवादी मूल्यों का सफाया खतरनाक
बांबे हाईकोर्ट ने देश में उदारवादी मूल्यों के पैरोकारों की एक के बाद एक हो रही हत्या को गंभीर माना है। कोर्ट का कहना है कि ये चलन देश के लिए खतरनाक है और इससे हमारी छवि भी खराब हो रही है। यहां कोर्ट ने कर्नाटक की वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या का जिक्र किया। कहा- विपक्षी और उदारवादी मूल्यों का सफाया एक खतरनाक प्रवृति है और इससे देश की छवि खराब हो रही है।
गौरी लंकेश की हत्या किसने की?
एक आजाद विचार, आजाद सोच और कट्टर हिंदुत्व के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाली महिला पत्रकार गौरी लंकेश की मंगलवार रात को कुछ समाज विरोधी ताकतों ने बेंगलुरु में हत्या कर दी। इस हत्याकांड के विरोध में दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के परिसर में बुधवार को पत्रकारों ने अपनी आवाज बुलंद की। विरोध सभा में एनडीटीवी इंडिया के पत्रकार रवीश कुमार ने भी अपनी बात रखी।
पत्रकार गौरी लंकेश की आखिरी हेडलाइन
पत्रकारिता जगत की एक बुलंद आवाज गौरी लंकेश को कुछ समाज विरोधी तत्वों ने हमेशा-हमेशा के लिए खामोश कर दिया गया है। 16 पन्नों की उनकी पत्रिका 'गौरी लंकेश पत्रिके' हर हफ्ते निकलती है। लेकिन 13 सितंबर का अंक इसका आख़िरी अंक साबित हुआ। गौरी कन्नड़ भाषा में लिखती थीं। कुछ काबिल पत्रकारों ने उनके आखिरी संपादकीय का हिन्दी में अनुवाद किया है ताकि देश को पता चल सके कि आखिर गौरी ने ऐसा क्या लिखा कि उसे जान गंवानी पड़ी।
सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या से खलबली, सड़कों पर उतरे पत्रकार
पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में अलग-अलग शहरों में देशभर के पत्रकार उमड़ पड़े हैं। पत्रकारों का साथ देने के लिए सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों के नेता भी आगे आए। सबने माना कि ये लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। बेंगलुरु से भोपाल तक और पटना से तिरुवनंतपुरम तक, गौरी लंकेश की हत्या के विरोध में अलग-अलग शहरों में पत्रकार सड़कों पर उतर आए।
हां, मैं आजाद नहीं!
गौरी लंकेश निर्भीक, साहसी और मुखर शख्सियत का नाम था। जिसने वही किया जो उसके दिलोदिमाग ने कहा, वही कहा जो पत्रकारिता के लिहाज से सही था और वहीं जिआ जिसमें खुद यकीन किया। फिलहाल यही बेबाकी, कट्टर हिंदूवादी सोच की मुखालफत उनकी हत्या की वजह बताई जा रही है। बेंगलुरू कि इस कन्नड़ टेबलॉयड की संपादक की मौत से हैरानी कम और कष्ट और गुस्सा ज्यादा आ रहा है। सवाल कौंध रहा है कि आखिर हम किस समाज में रह रहें हैं? क्या इस आजाद देश में हमें अपनी बात, अपने हिसाब से रखने की भी इजाजत नहीं! क्या हम अगर परम्पराओं से इतर बोलेंगे तो हमें गोलियों का सामना करना पड़ेगा?
कलबुर्गी, पंसारे के बाद कट्टरपंथ विरोधी गौरी लंकेश की बेंगलुरू में हत्या
एक और वरिष्ठ पत्रकार की हत्या हो गई। वो भी अपने दिमाग और दिल की बात सुनती थी। बेबाकी और निडरता उनकी पहचान थी। हत्यारों ने घर में घुसकर गौरी लंकेश को गोलियों से भून डाला। उनकी मौत क्यों हुई, किन हालातों में हुई इस पर जांच की बात की जा रही है, लेकिन गौरी को जानने वाले जानते है कि हिंदू कट्टरपंथ का विरोध उनकी हत्या की वजह बना। ऐसा उनकी लेखनी से भी जाहिर होता रहा।