फिर से राम मंदिर का मुद्दा
सरसंघचालक मोहन भागवत ने यह मांग कर के कि सरकार अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए शीघ्र कानून बनाए, असल में सरकार की दुखती रग को छेड़ दिया है। राम मंदिर बनाने का मुद्दा बहुत पुराना है और देश के लिए यह एक ऐसा सवाल बन गया है जिस पर हर दृष्टिकोण से विचार करने की जरूरत होती है। यह सिर्फ धार्मिक मामला नहीं है, यह सिर्फ सांप्रदायिक भी नहीं है, लेकिन कुल मिलाकर बातें ऐसे उलझ गई है कि उनको सुलझाने में न्यायपालिका को भी अच्छी खासी कसरत करनी पड़ेगी। यह मुद्दा भावनात्मक बन चुका है।
देखिए : प्रधान सेवक की बात के.के.पांडेय के साथ, एपिसोड-1 : सवालों की फेहरिस्त
'प्रधान सेवक की बात' की पहली कड़ी में वयोवृद्ध पत्रकार के.के.पांडेय 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी के उन वायदों पर सवालों की फेहरिस्त लेकर आए हैं जो उन्होंने चुनाव जीतने के बाद अपने चार साल से अधिक के कार्यकाल में पूरे नहीं किये। सवालों की सूची वाले इस कार्यक्रम में अलग-अलग एपिसोड में अलग-अलग वायदे, उस दिशा में सरकारी प्रयासों की जमीनी हकीकत को बताते हुए प्रधान सेवक से सवाल किए जाएंगे।
देश की सुप्रीम व्यवस्था से छेड़छाड़ क्यों?
भारतीय संविधान के बारे में एक मान्यता यह भी है कि संविधान में जो कुछ लिखित है वह तो महत्वपूर्ण है ही, लेकिन कुछ अलिखित परंपराएं भी हैं जिनको पूरा महत्व दिया जाता है। आज भारत में यह बात साफ हो गई है कि पिछले 70 साल में किसी ने संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का प्रयास नहीं किया। लेकिन पिछले चार साल में यह प्रयास लगातार हो रहा है। इससे और भी कई मुद्दे सामने आ रहे हैं।
गांधी शरणं गच्छामि
मोदीवाद गांधीवाद के विपरीत है। गांधीवाद यह सिखाता है कि अहिंसा को एक हथियार के रूप में हमें इस्तेमाल करना है। मोदीवाद कहता है कि संविधान से लेकर अन्य तमाम संस्थाओं पर जो गांधीवाद का असर है उसको खत्म कर मोदीवाद का असर कायम किया जाए। चुनना आपको है।
संसद सत्र में देरी सरकार की मनमानी
2017 में संसद के शीतकालीन सत्र में विलंब करने के पीछे सरकार की क्या सोच है यह लोग जरूर जानना चाहते हैं। सरकार की ओर से ऐसा कोई कारण भी नहीं बताया गया जिससे लोगों को संतुष्टि हो सके। भारतीय लोकतंत्र में संसद की सर्वोच्चता पर किसी तरह का कोई विवाद नहीं होना चाहिए। क्योंकि इस प्रणाली का नाम ही संसदीय लोकतंत्र है।
आजादी के 70 साल : कई कमाल कई सवाल
फ्रीडम एट मिड नाइट आज अपना 70वां जन्मदिन मना रहा है। यह एक ऐसा मौका है जबकि उन वर्षों में देश ने क्या पाया और क्या खोया उसपर विचार किया जाए। 70 साल की उपलब्धियों या असफलताओं का विश्लेषण भविष्य के लिए अपनी योजनाएं निर्धारित करने में बहुत कारगर सिद्ध होंगे। किसी भी देश के लिए कुछ सवाल इतने अहम होते हैं कि उनके बारे में लिए गए निर्णय भविष्य को निश्चित रूप से प्रभावित करते हैं।
रावण रथि वीरथि रघुवीरा
आज न तो कोई रावण है न ही कोई राम है और न ही विभीषण। लेकिन युद्ध के कारण और युद्ध में शामिल होने वाले लोग आज के हालात में भी प्रासंगिक हैं। युद्ध में शामिल एक वर्ग है जो हर तरह से शक्ति और साधन से संपन्न है। वह सत्तारूपी रथ पर सवार है। दूसरी तरफ एक वर्ग उन लोगों का है जो हर तरह से साधनहीन है। सत्ता और साधन संपन्न वर्ग सिर्फ अपनी ताकत पर गर्व का प्रदर्शन ही नहीं कर रहा है बल्कि साधनहीन वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वालों पर अपमान भरे शब्दों का तीखा प्रहार भी कर रहा है।
लोकतंत्र या कुलीन तंत्र
लोकतंत्र असल में उन सभ्य लोगों का शासन तंत्र है जो आम सहमति से निर्णय लेने और प्रशासन चलाने में भरोसा रखते हैं। लेकिन हाल की कुछ घटनाओं से यह महसूस होने लगा है कि लोकतंत्र को पीछे धकेला जा रहा है और इस बात की पूरी कोशिश है कि देश को हिन्दू राष्ट्र से आगे उसे कुलीन तंत्र में बदल दिया जाए। यह एक खतरनाक संकेत हैं। यह कौन कर रहा है और कैसे कर रहा है इसपर देश के तमाम राजनीतिक दलों और वैचारिक प्रतिबद्धता की लड़ाई लड़ने वाले बुद्धिजीवियों को सोचना होगा। देर की तो शायद बहुत मुश्किल हो जाएगी।