अब आरटीआई कानून में संशोधन की तैयारी में जुटी मोदी सरकार
केंद्र की मोदी सरकार ने एक आरटीआई याचिका के जवाब में इस बात की पुष्टि की है कि वह सूचना के अधिकार कानून में संशोधन करने पर विचार कर रही है। लेकिन सरकार के कार्मिक व प्रशिक्षण विभाग ने प्रस्तावित संशोधन बिल का ब्योरा देने से मना कर दिया। आरटीआई याचिकाकर्ता अंजलि भारद्वाज ने बताया कि उन्हें यह जवाब डीओपीटी विभाग से इसी महीने मिला है।
...और पीयूष गोयल ने पत्रकार को दिया अनोखा ऑफर
इन दिनों केन्द्र सरकार अपने चार साल के कार्यकाल की सफलताओं का बखान कर रही है। विभिन्न मंत्रालयों का रिपोर्ट कार्ड खुद संबंधित मंत्री पत्रकार वार्ता में साझा कर रहें हैं। ऐसे ही रेलवे की उपलब्धि गाथा का गुणगान करने रेलमंत्री पीयूष गोयल पहुंचे। इसी दौरान उन्हें एक पत्रकार ने सुझावों से पटा पत्र थमा दिया। असमंजस में पड़े मंत्री जी ने फिल्म नायक की तर्ज पर एक अनोखा उपाय सुझा दिया।
अच्छे दिन को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक के सर्वे आंकड़ों ने खोली मोदी सरकार के ढोल की पोल
मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल के दौरान न तो लोगों की आमदनी बढ़ी, न ही रोजगार के मौके मिले। और तो और आखिरी साल में भी हालात में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है। यह खुलासा किसी खबरिया चैनल ने नहीं, बल्कि RBI ने अपने सर्वे में किया गया है।
सरकारी बैंकों को हुए घाटे से डूबी देश की 13 अरब डॉलर की पूंजी
वित्त वर्ष 2017-18 के दौरान 21 में से 19 सार्वजनिक बैंकों को घाटा हुआ है। बैंकों का औसत एनपीए 14.5 प्रतिशत तक बढ़ा है। रेटिंग एजेंसी फिच ने यह बात कही। फिच ने चेताया कि बड़े घाटे की वजह से बैंकों की व्यवहार्यता रेटिंग भी प्रभावित होगी। सरकारी बैंकों का घाटा बीते वित्त वर्ष में इतना ऊंचा रहा है कि इससे सरकार द्वारा उनमें डाली गई 13 अरब डॉलर की समूची पूंजी डूब गई।
मोदी सरकार के 4 साल : उम्मीदों से छल
नरेंद्र मोदी सरकार के चार साल पूरे हो चुके हैं। वर्ष 2014 में जब इस सरकार ने सत्ता संभाली थी तब जनता की उम्मीदें सातवें आसमान पर थीं। 30 साल बाद केंद्र में किसी पार्टी को अकेले बहुमत जो हासिल हुआ था। जाहिर सी बात है इस मजबूत सरकार से कुछ बड़े बदलावों की उम्मीदें जनता ने संजोई थी और खुद मोदी व उनके सहयोगियों ने इसका वादा भी किया था। लेकिन आज क्या हुआ चार साल के बाद? मोदी सरकार ने उम्मीदों से सिर्फ छल ही तो किया है। अमीर और अमीर हो गया। गरीब और गरीब। देश की 125 करोड़ जनता को यह जानना जरूरी है कि बीते चार सालों में देश को खर्चीली रैलियों, गढ़े हुए भाषणों, रेडियो पर मन की बातों और जुमलों के अलावा हासिल क्या हुआ है?
दुष्कर्मी को सजा-ए-मौत ही अंतिम समाधान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बच्चों से रेप के खिलाफ आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2018 को मंजूरी प्रदान की है। राष्ट्रपति ने तत्काल इस अध्यादेश पर अपनी मुहर लगा दी। निश्चित रूप से किसी सरकार द्वारा बच्चियों से दुष्कर्म या फिर दुष्कर्म बाद हत्या करने के दोषियों को फांसी की सजा दिया जाना एक कानूनी प्रक्रिया में अंतिम समाधान है।
आरटीआई में खुलासा; मोदी सरकार की पब्लिसिटी पर हर महीने औसतन 98.71 करोड़ का खर्चा!
प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार ने विगत 44 महीनों में सभी प्रकार के विज्ञापनों पर 4343.26 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। हिसाब लगाएं तो यह खर्चा औसतन हर महीने करीब 98.71 करोड़ का बैठता है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को केंद्र सरकार के ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन विभाग ने यह जानकारी दी।
कावेरी विवाद : मसौदा योजना पेश करने में मोदी सरकार फेल, कर्नाटक चुनाव का बनाया बहाना
कर्नाटक चुनाव को आधार बना केंद्र की मोदी सरकार एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कावेरी नदी जल विवाद मामले में मसौदा योजना पेश करने में असमर्थता जताई। तमिलनाडु की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील शेखर नेफाड़े ने अपने कड़े प्रत्युत्तर में कहा, अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है, केंद्र सरकार मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही है।
एससी/एसटी एक्ट पर केंद्र सरकार ने डाली पुनर्विचार याचिका
SC/ST एक्ट को लेकर 2 अप्रैल को भारत बंद का आह्वान किया गया। देश के कई राज्यों में हिंसक प्रदर्शनों का दौर जारी है। विभिन्न राज्यों में पुलिस लाठीचार्ज और प्रदर्शनकारियों के मारे जाने की भी खबर है। इधर, केन्द्र सरकार ने स्थिति का भयावहता के मद्देनजर सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर पुनर्विचार याचिका डाल दी है। जिस पर जवाब देते हुए कोर्ट ने कह दिया है कि मामले पर सुनवाई उचित समय पर की जाएगी।
एससी/एसटी एक्ट: मौनं स्वीकृति लक्षणम
एस/एसटी एक्ट को लेकर हंगामा बरपना था और वैसा ही हुआ। 2 अप्रैल को विरोध प्रदर्शनों का दौर चला, उग्र हुआ और कई लोगों को लील गया। हमारी सरकार को शायद इस हंगामे और हिंसक प्रदर्शन का आभास नहीं था या था तो शायद वो मौके के इंतजार में थी और हालात बिगड़ने के साथ ही पुनर्विचार याचिका कोर्ट में डाल दी। आखिर सरकार ने पहले केस को मजबूत करते आंकड़ें और दलीलें अदालत के सामने क्यों नहीं रखी? क्या इसे सोच समझकर वोट बैंक के लिए रचा गया? इसे मौनं स्वीकृति लक्षणम ना कहा जाए तो और क्या कहा जाए!