द ग्रेट बनाना रिपब्लिक ऑफ इंडिया
दुनिया का सबसे बडा लोकतांत्रिक देश बनाना रिपब्लिक की राह पर है। ये आवाज 2011 से 2014 के बीच जितनी तेज थी, 2014 के बाद उतनी ही मंद है या कहें अब कोई नहीं कहता कि भारत बनाना रिपब्लिक की दिशा में है। तो क्या वाकई मनमोहन सिंह के दौर में भारत बनाना रिपब्लिक हो चला था और सत्ता बदली तो बनाना रिपब्लिक की सोच थम गई, क्योंकि एक न्यायपूर्ण सत्ता चलने लगी।
पुण्य प्रसून बाजपेयी ने तोड़ी चुप्पी, लिखा- 'मास्टर स्ट्रोक रोकने के पीछे सत्ता का ब्लैक स्ट्रोक'
जब खुले तौर पर सत्ता का खेल हो रहा है तो फिर किस एडिटर गिल्ड को लिखकर दें या किस पत्रकार संगठन से कहें कि संभल जाओ। सत्तानुकूल होकर मत कहो कि शिकायत तो करो फिर लड़ेंगे। गुहार यही है कि लड़ो मत पर दिखायी देते हुए सच को देखते वक्त आंखों पर पट्टी तो ना बांधो।
बच्चों के लिए भी नहीं छोड़ी दुनिया
आजादी के 70 बरस बाद क्या वाकई 1947 के नन्हें- मुन्नो ने जिस दुनिया के सपने पाले वह आज की दुनिया दे पा रही है। ये सब सपना है क्योकि मौत दर मौत ही बच्चों का सच हो चला है। गोरखपुर के अस्पताल में 60 बच्चों का नरसंहार तो एक बानगी भर है। क्योंकि बच्चों के जीने के लिए हमने-आपने छोड़ी कहां है दुनिया। हालात हैं बदतर। तस्वीर खौफनाक हैं। आंकड़े डराने वाले हैं।