गोरखपुर की सियासत को करीब से जानने वाले इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि यहां मठ की राजनीति सर्वोपरि है। दूसरे यहां की सियासत ब्राह्मण बनाम ठाकुर की चलती है। कई दशक पहले शुरू हुई इस तरह की सियासी जंग आज भी बरकरार है। ऐसा माना जाता है और यही सच भी है कि गोरखपुर में भाजपा की हार की आधी स्क्रिप्ट तो उसी तारीख में लिख दी गई थी जब वहां से उपेंद्र दत्त शुक्ला को उपचुनाव का प्रत्याशी बनाया गया था। वह इसलिए क्योंकि एक तो उपेंद्र शुक्ला गोरखनाथ मठ से बाहर के प्रत्याशी थे, दूसरा योगी आदित्यनाथ की पसंद के नहीं थे और तीसरा उनका ब्राह्मण होना था।