नेपाल में बनेगी वामपंथियों की सरकार, भारत के खिलाफ बोलने वाले ओली होंगे PM!
काठमांडू: नेपाल की सत्ता एक बार फिर वामपंथियों के हाथ में जाते दिख रही है। भारत के लिेए ये किसी झटके से कम नहीं है, क्योंकि संभावित प्रधानमंत्री उम्मीदवार के पी ओली भारत के खिलाफ बोलने के लिए मशहूर हैं। वहीं चीन इस परिवर्तन से काफी प्रभावित दिख रहा है।
नेपाल में वामपंथी गठबंधन ऐतिहासिक जीत के साथ सरकार बनाने जा रही है। अब तक आए नतीजों में वामपंथी गठबंधन ने संसदीय चुनाव में 89 में से 72 सीटों पर कब्जा जमा लिया है। नेपाल में लेफ्ट विंग की सीपीएन-यूएमएल ( Communist Party of Nepal-Unified Marxist Leninist) के गठंबधन और सहयोगी पार्टी माओसिस्ट-सेंटर एक स्थिर और पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाती दिख रही है। इस चुनाव में अब तक सीपीएन-यूएमएल गठबंधन को 51 सीटों पर जीत हुई है, वहीं, माओसिस्ट सेंटर ने 21 सीटों पर कब्जा जमा लिया है। नेपाल में इससे पहले एनसी (Nepal Congress) की सरकार थी, जो अब बूरी तरह से हार की ओर बढ़ रही है। नेपाल में वामपंथी सरकार का बनना भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं है।
नेपाल में सरकार बनाने के लिए हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव (275) में 138 सीटों की जरूरत होती है और अब ऐसा लग रहा है कि वामपंथी गठबंधन आसानी से सत्ता में आ जाएगी। नेपाल में एनसी और लेफ्ट एलायंल दो अलग-अलग विचारधारा की सरकार है। अब तक डेमोक्रेटिक एलायंस नेपाल कांग्रेस का झुकाव भारत की ओर दिखा है वहीं, लेफ्ट एलायंस का हमेशा चीन की तरफ रहा है। नेपाल ना सिर्फ एक पड़ोसी मुल्क है, बल्कि स्ट्रैटेजिक के लिहाज से भी यह देश भारत के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। नेपाल में लेफ्ट सरकार के बनने से भारत-नेपाल की विदेश नीति बहुत कुछ बदलेगी। इसके अलावा लेफ्ट के आने से नेपाल और चीन के बीच नजदीकियां बढ़ेगी, इसमें कोई राय नहीं है।
नेपाल में वामंपथियों की सरकार बनने के बाद के.पी. ओली एक बार फिर पीएम बन सकते हैं। इस पूरे चुनाव प्रचार में ओली ने भारत पर जमकर हमला बोला है। वामपंथी पार्टियों ने तो अपने चुनावी मैनिफेस्टो में यहां तक कह दिया है कि अगर उनकी सरकार आती है तो नेपाल-भारत के बीच 1950 में बनी शांति और मैत्री संधि को खत्म कर फिर से नए तरीके से टेबल पर रखा जाएगा। हालांकि, उनके सहयोगी पुष्प कुमल दाहाल अब तक भारत को लेकर चुप ही रहे हैं, लेकिन इतना तय है कि नेपाल की वामपंथ सरकार कई सालों से चली आ रही दोनों देशों की राजनीति को बदलेगी।
केपी ओली जब 2015 में सरकार में थे, तब उन्होंने चीन के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे। ओली नहीं चाहते हैं कि उनके मार्केट में सिर्फ भारत का एकाधिकार हो। नेपाल में पिछली वामपंथ सरकार ने अपने 12000 MW की बुद्धी गंडकी हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट के लिए चीन की गेझुओबा ग्रुप कॉर्प के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इस प्रोजेक्ट पर फिलहाल काम शुरू नहीं हुआ है, लेकिन नई सरकार आते ही इसे गति मिलेगी। लेफ्ट के आने से नेपाल-चीन के बीच बहुत नजदीकियां देखने को मिलेंगी। (एजेंसियां)