श्रीलंका में सत्ता संघर्ष खत्म; यूएनपी नेता विक्रमसिंघे फिर से बने PM
कोलंबो : यूनाइटेड नेशनल पार्टी के नेता रानिल विक्रमसिंघे ने रविवार को श्रीलंका के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इसके साथ ही देश में 51 दिनों से चल रहा सत्ता संघर्ष समाप्त हो गया। महिंदा राजपक्षे ने शनिवार को इस्तीफा दे दिया था।
राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने राजधानी कोलंबो स्थित राष्ट्रपति सचिवालय में एक सादे समारोह में 69 वर्षीय विक्रमसिंघे को पद की शपथ दिलाई। सिरिसेना ने विवादास्पद क़दम उठाते हुए 26 अक्टूबर को विक्रमसिंघे को बर्ख़ास्त कर दिया था और उनके स्थान पर महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था जिससे इस द्वीपीय देश में संवैधानिक संकट पैदा हो गया था।
यूएनपी नेता विक्रमसिंघे ने अपनी बर्खास्तगी को गैरकानूनी बताते हुए पद छोड़ने से इनकार कर दिया था। उनकी यह नियुक्ति तब हुई है जब महिंदा राजपक्षे ने शनिवार को इस्तीफ़ा दे दिया। राजपक्षे ने उच्चतम न्यायालय के दो अहम फैसलों के बाद इस्तीफा दिया था। पद ग्रहण करने के बाद विक्रमसिंघे ने कहा, आज की जीत न केवल मेरी जीत या यूएनपी की जीत है बल्कि यह श्रीलंका के लोकतांत्रिक संस्थानों और नागरिकों की स्वायत्तता की जीत है। मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देता हूं जो संविधान की रक्षा में दृढ़ता के साथ खड़े रहे और लोकतंत्र की जीत सुनिश्चित की।
विक्रमसिंघे को फिर से नियुक्त करने से इंकार करने वाले सिरिसेना उन्हें नियुक्ति पत्र सौंपते हुए मुस्कुरा रहे थे। विक्रमसिंघे के रिकॉर्ड पांचवीं बार शपथ ग्रहण करने के बाद उनके समर्थकों ने सड़कों पर जश्न मनाया। यूएनपी के सहायक नेता रवि करुणानायके ने कहा कि कैबिनेट चयन के लिए शनिवार को वार्ता हुई और रविवार को और विचार-विमर्श होगा। कैबिनेट सदस्यों के 30 तक सीमित होने की उम्मीद है और उसमें श्रीलंका फ्रीडम पार्टी (एसएलएफपी) के कुछ सदस्य शामिल किए जा सकते हैं जिन्होंने विक्रमसिंघे को समर्थन की पेशकश की थी।
इससे पहले, विक्रमसिंघे की पार्टी ने कहा कि वह राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के साथ काम करने के लिए तैयार हैं जिन्हें उनकी सरकार के ख़िलाफ़ कुछ समूहों ने गुमराह किया था। यूएनपी के उप नेता सजित प्रेमदास ने कहा कि उन्हें इस बात की हैरानी नहीं है कि राष्ट्रपति विक्रमसिंघे को फिर से प्रधानमंत्री बनाने पर राज़ी हो गए जबकि पहले वह इस बात अड़े थे कि वह उन्हें नियुक्त नहीं करेंगे।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री के तौर पर राजपक्षे की नियुक्ति के बाद उन्हें 225 सदस्यीय संसद में बहुमत हासिल करना था लेकिन वह विफल रहे। इसके बाद सिरिसेना ने संसद भंग कर दी और पांच जनवरी को चुनाव कराने की घोषणा की।
लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उनका फैसला पलट दिया और चुनाव की तैयारियों को रोक दिया। उच्चतम न्यायालय ने सर्वसम्मति से फैसला दिया कि सिरिसेना द्वारा संसद भंग करना गैरकानूनी है। साथ ही न्यायालय ने राजपक्षे को प्रधानमंत्री का कार्यभार संभालने से रोकने वाले अदालत के आदेश पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया। ज़्यादातर देशों ने भी राजपक्षे सरकार को मान्यता नहीं दी थी। (एजेंसियां)