ईरान से परमाणु समझौता तोड़ा तो नतीजा भुगतने को तैयार रहे अमेरिका: रूहानी
तेहरान: ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने मंगलवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को खुलेआम चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि 2015 में विश्व शक्तियों के साथ तेहरान सरकार द्वारा हस्ताक्षरित परमाणु समझौते से हटने पर उन्हें ‘गंभीर परिणाम’ भुगतने पड़ेंगे। काफी अर्से से राष्ट्रपति ट्रम्प ओबामा प्रशासन द्वारा किए गए इस समझौते को लेकर असहमति जताते रहें हैं। उन्होंने अमेरिका को इस समझौते से अलग करने की तारीख की मुकर्रर कर ली है। हालांकि इनके सहयोगी समझाने की कवायद में भी जुट गए हैं।
रूहानी ने ईरान के लोगों से सीधा साक्षात्कार टीवी के जरिए किया। कहा कि उनकी सरकार इस समझौते से अंत तक जुड़ी हुई है और ट्रंप को समझौते से अलग नहीं होने की चेतावनी दी। इस समझौते पर रूस, चीन, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस ने हस्ताक्षर किए थे। रूहानी ने कहा- मैं व्हाइट हाउस में बैठे लोगों को बता देना चाहता हूं कि अगर वे अपनी बचनबद्धता पर कायम नहीं रहे, तो ईरान सरकार इसपर काफी कठोर प्रतिक्रिया देगी। उन्होंने कहा- अगर कोई इस समझौते पर धोखा देता है, तो उसे यह समझ लेना चाहिए कि उसे काफी गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
हालांकि उन्होंने इस संबंध में की जाने वाली कार्रवाई का ब्योरा नहीं दिया। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अगले महीने समझौते से अलग होने के संभावित फैसले का जिक्र किया। रूहानी ने कहा कि उनकी सरकार अमेरिका के समझौते से हटने के बाद विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को रोकना चाहती है। इसीलिए ईरान के केंद्रीय बैंक ने इस महीने बाजार पर नियंत्रण लगा दिया।
गौरतलब है कि प्रतिबंध से राहत देने के एवज में ईरान, अमेरिका और दुनिया के पांच अन्य बड़े देशों ने समझौता किया था। ट्रंप ने इस समझौते को दुनिया के सबसे खराब समझौतों में एक बताया और इससे अलग होने की बात कही है। जनवरी में उन्होंने ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी से अमेरिका द्वारा समझौते में पाई गड़बड़ियों पर सहमति जताने को कहा था। गुरुवार को अमेरिका के निरस्त्रीकरण राजदूत रॉबर्ट वुड ने कहा था कि अमेरिका समझौते से हटने की 12 मई की समय सीमा को लेकर यूरोपीय सहयोगियों से गहन चर्चा कर रहा है।
क्या है समझौता?
2015 में हुए समझौते के तहत ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को स्थगित करने पर राज़ी हुआ था। ये क़रार शांति के उद्देश्य से किया गया था जिसके बदले में ईरान को आर्थिक प्रतिबंधों में ढील दी गई थी। इस समझौते पर पी5+1 देशों के हस्ताक्षर हैं। अमरीका के साथ-साथ ब्रिटेन, रूस, चीन और जर्मनी ने सहमति बनाई थी। ट्रंप की इसको लेकर हमेशा से ही शिकायतें रही हैं। उनका कहना है कि यह समझौता ईरान को हिज़बुल्लाह जैसे चरमपंथी समूहों का समर्थन रोकने के लिए बाध्य नहीं करता है। इस पर हस्ताक्षर करने वाले हर देश से अमरीकी राष्ट्रपति ने मांग की है कि वह ईरान के यूरेनियम संवर्धन पर स्थाई प्रतिबंध के समझौते पर भी सहमत हों। हालिया समझौते के अनुसार, यह प्रतिबंध केवल 2025 तक है।
ये समझौता जून 2013 के राष्ट्रपति चुनावों के विजेता हसन रूहानी की कोशिशों का फल थीं। ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर लगे प्रतिबंधों को हटाने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ कूटनीतिक समझौते तक पहुंचने की आवश्यकता पर उन्होंने हमेशा बल दिया। जिसके बाद अक्टूबर 2013 को ईरान और छह मध्यस्थ देशों के बीच वार्ता की शुरुआत हुई थी।
'वो पागलपन था'
फ्रांस के राष्ट्रपति इमेनुअल मैक्रों के साथ व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ट्रंप ने ईरान समझौते को 'पागलपन' बताया। अमरीका और फ्रांस के राष्ट्रपतियों ने संकेत दिए हैं कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर नया समझौता हो सकता है। ट्रंप ने पहले भी इस परमाणु समझौते को सबसे ख़राब समझौतों में से एक बताया था। ओबामा कार्यकाल में हुए इस क़रार को ख़त्म करने के लिए ट्रंप ने 12 मई का दिन भी निर्धारित कर लिया है। वहीं, जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल भी शुक्रवार को अमरीका जाएंगी ताकि ट्रंप को ईरान समझौता तोड़ने से रोकने की कोशिश कर सकें।
'ईरान के लिए आसान नहीं'
ट्रम्प से जब पूछा गया कि क्या समझौता तोड़ने के बाद ईरान अपना परमाणु कार्यक्रम फिर से शुरू कर सकता है? इस पर ट्रंप ने जवाब दिया कि उनके लिए फिर से शुरू करना आसान नहीं होगा। ट्रंप ने कहा- वो दोबारा कुछ शुरू नहीं करेंगे। अगर ईरान करता है तो उसे बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, ऐसी मुश्किलें जो उन्होंने पहले कभी देखी नहीं होंगी।
ट्म्प की इस टिप्पणी के बाद ईरान के विदेश मंत्री जावेद ज़रीफ़ ने न्यूज़ एजेंसी एसोसिएटिड प्रेस से कहा कि अगर अमरीका क़दम पीछे हटाता है तो ईरान भी अपनी परमाणु करार तोड़ सकता है। उन्होंने कहा कि अमरीका उत्तर कोरिया के साथ होने वाली बातचीत को भी नुकसान पहुंचाएगा क्योंकि इससे साबित होगा कि वह अपने वादों पर टिकता नहीं।
फ्रांस चाहता है बीच का हल
मैक्रों तीन दिवसीय दौरे पर अमरीका आए हैं। मंगलवार को संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में मैक्रों ने कहा कि उनकी राष्ट्रपति ट्रंप के साथ खुलकर बातचीत हुई है। फ्रांस के राष्ट्रपति ने पत्रकारों से कहा कि उनका मानना है कि ईरान को लेकर चिंताओं को दूर करने के लिए एक नया समझौता बनाना संभव है। उन्होंने कहा- हम टिकाऊ स्थिरता चाहते हैं और हमें विश्वास है कि बातचीत से नए समझौते के लिए रास्ते खुलेंगे।
ओबामा के अधिकारी ने जताया था विरोध
पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति प्रशासन के एक अधिकारी का एक इंटरव्यू के दौरान एक बयान सामने आया है। बराक ओबामा प्रशासन के एक पूर्व अधिकारी ने कहा है कि ईरान के साथ 2015 के परमाणु समझौते से अमेरिका का बाहर आना बहुत बड़ी भूल होगी। उन्होंने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ईरान ने समझौते कोई उल्लंघन किया है, फिर भी वाशिंगटन इस समझौते से बाहर निकलता है तो अमेरिका अपने सहयोगियों से अलग-थलग हो जाएगा। अमेरिकी कंपनियों को भुगतना होगा और क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव कमजोर हो जाएगा। ( विभिन्न समाचार माध्यमों से साभार)