जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया का कार्यकाल समाप्त, फेसबुक पोस्ट पर शुभचिंतकों का जताया आभार
सत्ता विमर्स ब्यूरो
नई दिल्ली: अपने क्रांतिकारी सोच से सियासतदारों की पेशानी पर बल दिलाने वाले कन्हैया कुमार का जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त हो गया। शुक्रवार को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव की वोटिंग के साथ ही वर्तमान छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों से मुक्त हो गए। इस साल 9 फरवरी को जेएनयू में हुई घटना के बाद से चर्चा में आए कन्हैया कुमार ने अपने कार्यकाल खत्म होने पर फेसबुक पर एक पोस्ट डाली है जिसमें उन्होंने जेएनयू के छात्रों और शिक्षकों से लेकर उन तमाम शुभचिंतकों का शुक्रिया अदा किया है जिन्होंने उनके कार्यकाल खासकर जेएनयू छात्रसंघ के संघर्ष के दौरान उनका साथ दिया।
देश के दो प्रमुख विश्वविद्यालयों दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में शुक्रवार को वोटिंग हुई। राजनीतिक रूप से सक्रिय दोनों विश्वविद्यालयों में करीब 35 उम्मीदवारों के चुनावी भविष्य का फैसला होगा। हाल के महीनों में विश्वविद्यालय परिसरों में हुए विवादों की पृष्ठभूमि में यह चुनाव हुए, जिसने इसे काफी अहम बना दिया है।
नौ फरवरी की घटना की पृष्ठभूमि में जेएनयू के चुनाव पर इस बार विशेष रूप से नजर है। उस घटना में कथित रूप से देश विरोधी नारे लगाए गए थे और जेएनयू के छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार तथा दो अन्य को भी गिरफ्तार किया गया था। इस मामले ने देश भर में काफी सुर्खियां बटोरी थी।
फेसबुक पर कन्हैया का पोस्ट
साथियों,
जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष की ज़िम्मेदारी से मुक्त होने के मौके पर अपने लोगों को शुक्रिया कहना बड़ा अजीब लग रहा है लेकिन पता नहीं क्यों बार-बार उन लोगों के प्रति आभार व्यक्त करने का मन कर रहा है जो संघर्ष के हर मुकाम पर किसी न किसी रूप में मेरे साथ खड़े रहे। जेएनयू के विद्यार्थियों, शिक्षकों, कर्मचारियों, पूर्व विद्यार्थियों और कैंपस के बाहर के तमाम शुभचिंतकों का शुक्रिया जो समाज में समानता, न्याय व लोकतंत्र को बचाए रखने के लिए समाज को पीछे धकेलने वाली ताकतों के विरुद्ध जेएनयू छात्रसंघ के संघर्ष #StandWithJNU में शामिल हुए। जेएनयू और इसके छात्रसंघ को बदनाम और बर्बाद करने की हरसंभव कोशिश के दौर में आप जैसे साथियों ने उन्हें यह बता दिया कि जेएनयू जिस जनवादी सोच के साथ हमेशा से खड़ा रहता आया है उसकी ताकत तमाम दंगाइयों और षड्यंत्रकारियों की ताकत से कई गुना ज़्यादा है।
मुझे याद आ रहा है कि छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव जीतने के बाद मैंने विक्ट्री मार्च (विजय जुलूस) नहीं बल्कि यूनिटी मार्च निकाला था, क्योंकि मैं और मेरा संगठन हमेशा ही यूनिटी के पक्ष में खड़े हुए हैं, और मेरे पूरे कार्यकाल में मुझे उन तमाम लोगों का सहयोग मिला जो कई मसलों पर मुझसे वैचारिक तौर पर असहमत हैं। मेरे कार्यकाल में सबसे पहला विरोध प्रदर्शन एफ़टीआईआई के संघर्षरत साथियों के समर्थन में हुआ था और पूरे साल देश के तमाम कैंपसों में सांप्रदायिक और फासीवादी ताकतों के विरुद्ध उठ रही आवाज़ों के पक्ष में जेएनयू छात्रसंघ ने अपनी आवाज़ बुलंद की और 9 फरवरी के बाद इन सभी कैंपसों में #StandWithJNU की आवाज़ गूँजी। चाहे छात्रवृत्ति को बचाने के लिए ऑक्यूपाई यूजीसी का आंदोलन हो या रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के दोषियों को सज़ा दिलाने का संघर्ष, या दादरी और ऊना में हुए अत्याचार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन, हर मौके पर आप सभी लोगों का जो सहयोग मिला उसके लिए शुक्रिया। हम जिशा और डेल्टा को न्याय दिलाने के लिए भी लड़े और आंबेडकर भवन को गिराने की साज़िशों के ख़िलाफ़ भी। कैंपस में लाइब्रेरी में बेहतर सुविधाओं के लिए भी संघर्ष किया और बलात्कारी छात्र को सजा दिलवाने के लिए भी।
जिन लोगो ने मुझे वोट देकर इस पद के काबिल समझा, उन सबका शुक्रिया। तहे दिल से उन लोगों का भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ जिन्होंने मुझे वोट नहीं दिया और शायद वे मेरी राजनीतिक विचारधारा से पूरी तरह सहमत भी नहीं थे, लेकिन जो मेरी बोलने की आज़ादी के समर्थन में बहुत बड़ी संख्या में सड़कों पर उतरे। मैं जानता हूँ कि वे कन्हैया कुमार के लिए नहीं बल्कि अपने निर्वाचित छात्रसंघ अध्यक्ष के लिए सड़कों पर उतरे थे। शुक्रिया उन सभी शिक्षकों का जो तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए जेएनयू छात्रसंघ के साथ खड़े रहे, जिन्होंने कहा कि "कन्हैया जब पुलिस रिमांड से अदालत में आएगा तो वहाँ उसे सबसे पहले अपने समर्थन में खड़े शिक्षकों के चेहरे दिखेंगे" और संघर्ष के हर मोड़ पर उन्होंने हर तरह की मदद इस आंदोलन में की। उन सभी कर्मचारियों को भी मेरा आभार जो हमारे इस संघर्ष में शामिल हुए ।
शुक्रिया उन सभी लोगों का जिन्होंने मेरे समर्थन में लेख और फ़ेसबुक पोस्ट लिखे और जिनके लिए ना जाने कितनी गालियाँ उन्हें मुझे देशद्रोही समझने वाले और संघी मानसिकता वाले लोगों से खानी पड़ी; जो मेरे और अन्य साथियों के संवैधानिक अधिकारों के पक्ष में अपने घरवालों, मित्रों और देश के अन्य नागरिकों से तार्किक बहस करने में कभी पीछे नहीं रहे। आप हैं तो लोकतंत्र है। आज़ादी चौक पर हर दिन बड़ी संख्या में पहुँचकर प्रशासन के अन्याय के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलने वाले साथियों का भी आभारी हूँ। जेएनयू का पक्ष लोगों के सामने रखने के लिए की गई देश के विभिन्न हिस्सों की यात्राओ में जिन लोगों ने हौसला बढ़ाया उनका भी शुक्रिया। मुझे इस बात का अहसास है कि मैं चुनाव से पहले आप लोगों से किए गए अपने कई वादे पूरे नहीं कर पाया, लेकिन जेएनयू पर इस तरह के अप्रत्याशित हमले के दौर में और मौजूदा राजनीतिक हालात में अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने का हरसंभव प्रयास मैंने किया है। मुझे याद आता है कि जेल से लौटकर आने के बाद आपको संबोधित करते हुए जब मैंने पहला शब्द कहा - 'साथियों' और जिस उत्साह के साथ आप सबने मेरा हौसला बढ़ाया, यह उत्साह और समर्थन ही पूरे संघर्ष के दौरान मेरी ऊर्जा बना रहा।
पूरे देश में शिक्षा व्यवस्था पर जिस तरह का हमला सरकार और नवउदारवादी ताकतें कर रही हैं, समाज के वंचित वर्गों, दलितों, महिलाओं, पिछडों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जिस तरह से बढ़ा है, मुझे उम्मीद है कि नई चुनकर आने वाली यूनियन उसके विरुद्ध संघर्ष की मशाल को बुझने नहीं देगी। कैंपस में छात्रों की समस्याओं को दूर करने के लिए की गई कोशिशों को आगे ले जाया जाएगा और बेहतर सुविधाओं और छात्रवृत्ति के लिए संघर्ष को जारी रखा जाएगा। मैं जेएनयू की जनवादी सोच के पक्ष में हमेशा खड़ा रहूँगा। रोहित एक्ट को लागू करने की लड़ाई हो या कैंपस लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए लिंगदोह सिफ़ारिशों के विरुद्ध संघर्ष; समाज में वंचित लोगो के हक को सुनिश्चित करने की लड़ाई हो या सांप्रदायिक फासीवादी ताकतों के विरुद्ध और श्रम की लूट के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने के प्रयास; सबको शिक्षा, सबको काम सुनिश्चित करने के लिए और समाज में समानता व न्याय स्थापित करने के संघर्ष के हर मोर्चे पर आप मुझे अपने साथ पाएँगे, यह मेरा वादा है।
कन्हैया कुमार,
जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष (2015-16)