उत्तराखंड में सरकार बचाने की जद्दोजहद
किरण राय
उत्तराखंड में रावत सरकार को बचाने और गिराने की सियासती लड़ाई अब अदालत में लड़ी जा रही है। केंद्र के राष्ट्रपति शासन की सिफारिश और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद नैनीताल हाईकोर्ट की एकल बेंच ने जिस तरह से उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को गलत ठहराते हुए रावत सरकार को 31 मार्च को कोर्ट के रजिस्ट्रार की मौजूदगी में विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का आदेश दिया है उससे केंद्र सरकार की किरकिरी तो हुई ही है, लेकिन संतुलन बनाने के लिए कोर्ट ने यह भी कहा है कि कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को भी वोटिंग का अधिकार होगा। हालांकि इन विधायकों के वोट अलग से सीलबंद लिफाफे में डाले जाएंगे और इसे अगले दिन यानी एक अप्रैल को कोर्ट में खोला जाएगा। ताकि यह पता चल सके कि जिन बागी विधायकों की सदस्यता रद्द की गई है वे वाकई रावत सरकार के खिलाफ थे।
बागी विधायकों को वोटिंग से वंचित नहीं करने के कोर्ट के फैसले का राजनीति अर्थ जो भी लगाया जाए, लेकिन तथ्य यही है कि विधानसभा में रावत सरकार का शक्ति परीक्षण सदन में 61 विधायकों की संख्याबल के आधार पर ही होगा। बाकी के नौ बागी विधायकों का वोट अलग से सीलबंद लिफाफे में कोर्ट के पास जाएगा। इस परिस्थिति में रावत सरकार सदन में विश्वासमत जीतने में कामयाब रहेगी। नियमत: कांग्रेस के जिन नौ बागी विधायकों की मान्यता रद्द की गई थी, को वोटिंग का अधिकार दिया गया है तो उन पर पार्टी व्हिप का नियम लागू होना तय है। इस परिस्थिति में अगर ये विधायक कांग्रेस के पक्ष में वोट नहीं करते हैं तो यह साफ हो जाएगा कि इन नौ विधायकों की सदस्यता रद्द करने का फैसला सही था।
कांग्रेस के विश्वस्त सूत्र के मुताबिक, बागियों में से कुछ विधायक फिर से कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं। सूत्रों की मानें तो आने वाले चुनावों में टिकट नहीं काटे जाने की शर्त पर कुछ विधायक कांग्रेस के साथ आने को राजी हो गए हैं। भाजपा के भी कुछ विधायक कांग्रेस नेतृत्व के संपर्क में हैं। बागियों को मनाने की जिम्मेदारी राज्य की वित्त मंत्री इंदिरा ह्रदयेश को दी गई है। दूसरी तरफ अब भाजपा कोर्ट के फैसले के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच में चुनौती देने की बात कर रही है। केंद्र सरकार की ओर से मुकुल रोहतगी कोर्ट में पैरवी करेंगे।