साबरमती आश्रम से नमो संदेश के मायने
किरण राय
गौरक्षा और गौ-भक्ति के नाम पर देश के अलग-अलग स्थानों से उपद्रव और मुसलमानों की पीट-पीटकर हत्या कर दिए जाने की खबरों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे इंतजार के बाद अपनी चुप्पी तोड़ी। प्रधानमंत्री ने गुरुवार को साबरमती आश्रम से गौ-भक्तों को सख्त संदेश दिया कि गौ-भक्ति के नाम पर इंसान की हत्या कर देना गांधी के देश में स्वीकार नहीं किया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि यह देश अहिंसा की भूमि है और किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती है। मेरा प्रधानमंत्री से सिर्फ एक सवाल है कि ऐसे सख्त संदेश देने के लिए भी क्या खास स्थल और खास अवसर का इंतजार करना चाहिए। घटनाएं घटित होती गईं, लोग मरते गए और आपकी नजर साबरमती आश्रम पर टिकी थी कि कब उसके 100 साल पूरे होंगे और गांधी के अहिसा परमो धर्म की इस प्रतीक स्थली से गांधी के गाय धर्म के बहाने तथाकथित गौ-भक्तों को सख्त संदेश देंगे।
प्रधानमंत्री जी! निश्चित रूप से जो संदेश आपने दिया है वह काफी सख्त है, लेकिन आपको यह समझना होगा कि जिन समाजविरोधी ताकतों को आपने आगाह किया है वह आपकी बातों को कितनी गंभीरता से लेता है। इससे पहले भी कई अवसरों पर ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की बात आप कर चुके है। वो पकड़े जाते हैं और फिर छूट जाते हैं। इससे उनके हौसले और बुलंद हो जाते हैं। दिक्कत इस बात की नहीं है कि देश में कानून नाम की चीज नहीं रह गई है, बल्कि दिक्कत इस बात की है कि इन कानूनों का कोई डर भय नहीं रह गया है। खासकर देश के भाजपा शासित राज्यों में कानून का इकबाल लगातार कमजोर हो रहा है। भीड़तंत्र खुद न्यायाधीश बन बैठा है। कभी गौरक्षा के नाम पर तो कभी बच्चा चोर के नाम पर। अब तो खुले में गंदगी फैलाने से रोकने पर भी भीड़ किसी की जान ले लेता है। तथाकथित हिन्दूवादी संगठनों के नेता ऐसे समाजविरोधी तत्वों को शह देते हैं जिनपर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। इन समाज विरोधी तत्वों को लगता है कि मोदी सरकार में उन्हें इस काम का जैसे लाइसेंस मिल गया है।
आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि केंद्र में भाजपा नीत एनडीए की सरकार बनने के बाद से इस तरह की घटनाएं ज्यादा तेजी से बढ़ी हैं। इंडिया स्पेंड वेबसाइट के आंकड़ों पर भरोसा करें तो पिछले सात साल में गौवंश से जुड़ी हिंसा की 63 घटनाएं हुईं। इसमें 97 फीसदी घटनाएं आपके (मोदी सरकार) सत्ता संभालने के बाद हुई हैं। तीन साल के कार्यकाल में वर्ष 2014 के मुकाबले 2015 में और 2015 के मुकाबले 2016 में ऐसी हिंसक घटनाएं ज्यादा हुई हैं। कुल 63 घटनाओं में आधे से अधिक 32 घटनाएं भाजपा शासित राज्यों में हुई हैं। कांग्रेस शासित राज्यों में 8 और अन्य पार्टियों के शासन में 23 घटनाएं हुई हैं। इन घटनाओं में अब 28 लोगों की जानें जा चुकी हैं और सौ से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। मृतकों में 86 फीसदी यानी 24 मुस्लिम समुदाय से थे। रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि आधे से ज्यादा हिंसक घटनाएं महज अफवाह के आधार पर हुई हैं।
बहरहाल, अहमदाबाद में साबरमती आश्रम से प्रधानमंत्री ने जो संदेश दिया है उससे आप इस बात का अंदाजा तो लगा ही सकते हैं कि मामला कितना गंभीर है। आज जरूरत है इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र ही नहीं, राज्य सरकारें भी आगे आएं। लोगों को इस बात का अहसास होना चाहिए कि कानून नाम की भी कोई चीज होती है। अपराधियों को पकड़ने के लिए पुलिस है, उन्हें सजा देने और आम आदमी को न्याय दिलाने के लिए अदालतें हैं। किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। उन लोगों को कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए जो अफवाह फैलाकर ऐसी घटनाओं के लिए लोगों को उकसाते हैं। लेकिन यह तभी हो सकता है जब प्रधानमंत्री भाषण में सख्त संदेश देने के साथ-साथ राजनीति से ऊपर उठकर कानून व्यवस्था के संचालन के लिए जो टूल्स हैं उन्हें दुरुस्त करें ताकि वह त्वरित कार्रवाई में मददगार हो।