सिद्धारमैया की सियासी चाल में उलझे भाजपा के शाह, लिंगायत मठ प्रमुख के चरणों में मत्था टेका
सत्ता विमर्श ब्यूरो
बेंगलुरु : कर्नाटक विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस और भाजपा कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कर्नाटक का दौरा किया था और अब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कर्नाटक के दौरे पर हैं। वह अपने दो दिवसीय दौरे के पहले दिन सोमवार को भाजपा अध्यक्ष सबसे पहले तुमकुर स्थित सिद्दगंगा मठ पहुंचे और श्री श्री श्री शिवकुमार स्वामी जी के चरणों में सिर नवाजकर आशीर्वाद लिया। अमित शाह ने खुद ट्वीट कर इस मुलाकात की तस्वीरें शेयर कीं हैं।
शिवकुमार स्वामी को लिंगायत समुदाय के लोग भगवान का दर्जा देते हैं। हालांकि अमित शाह और मठ दोनों ने कहा है कि इस मुलाकात के पीछे कोई राजनीति नहीं थी। लेकिन चुनाव से ठीक पहले इस तरह से मठ में जाकर स्वामी के चरणों में शाह का दंडवत होना शिष्टाचार भेंट तो नहीं ही हो सकती है। भाजपा सूत्रों के मुताबिक, अमित शाह शिवमोग्गा, दावणगेरे और चित्रदुर्गा जिलों में भी लिंगायत और दलित मठों में जाएंगे। चित्रदुर्गा में मौजूद मुरुगा मठ करीब 300 साल पहले बना था और ये मध्य कर्नाटक सम्भाग का सबसे बडा लिंगायत मठ है।
उल्लेखनीय है कि ये सारे वो आध्यात्मिक संस्थान हैं जिन्होंने लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देने के सिद्धरामैया सरकार के फैसले का समर्थन किया है। भाजपा को डर है कि इन मठों के अनुयायी इस फैसले की वजह से भाजपा से दूर हो सकते हैं। इसी वजह से खुद अमित शाह ने इन सभी मठों के प्रमुखों से मिलने का फैसला किया है। राज्य में कुछ दिनों बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए शाह का यह दौरा काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने भाजपा का परंपरागत वोट बैंक समझे जाने वाले लिंगायत-वीरशैव समुदाय को अपने पाले में लाने के लिए उन्हें धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देकर केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव भेजा है। इसे सिद्धारमैया का 'मास्टर स्ट्रोक' माना जा रहा है।
100 सीटों पर निर्णायक वोट बैंक है लिंगायत समुदाय
भाजपा ने लिंगायत समुदाय के इसी वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया है। येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं जिसे राज्य की करीब 100 सीटों पर निर्णायक वोट बैंक माना जाता है। 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में भाजपा के इसी कोर वोट बैंक को अपने पक्ष में लाने के लिए कांग्रेस ने इस समुदाय को अब धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देते हुए केंद्र को इसका प्रस्ताव भेजा है। हालांकि अब तक इस पर केंद्र की एनडीए सरकार ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की है।
हालांकि इस प्रस्ताव को यूपीए ने साल 2013 में तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार के समय में खारिज कर दिया था, लेकिन आज के सियासी हालात को देखते हुए कांग्रेस ने इसी मुद्दे पर अपनी विजय का रास्ता तय करने की रणनीति बनाई है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, कांग्रेस का मानना है कि अगर लिंगायत-वीरशैव समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा देने की मांग को केंद्र सरकार ठुकराती है तो इसका लाभ कांग्रेस को चुनाव में मिलेगा। इसी रणनीति पर तमाम बार कांग्रेसी नेता केंद्र से इस मामले पर अपना रुख स्पष्ट करने की मांग भी कर चुके हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि शाह के दौरे के बाद केंद्र सरकार इस मामले पर अपना रुख साफ कर सकती है।