अटार्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में रखा सरकार का पक्ष, कहा- SC/ST को प्रमोशन में रिजर्वेशन जायज
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ समीक्षा कर रही है। संविधान पीठ सरकारी नौकरियों की पदोन्नति में 'क्रीमी लेयर' के लिए एससी-एसटी आरक्षण के मुद्दे पर अपने 12 साल पुराने फैसले की समीक्षा कर रही है। इसी मसले पर सरकार ने माना है कि इस मसले पर फैसला एससी/एसटी के पक्ष में जाना चाहिए।
वेणुगोपाल ने कहा- मैं इस एसएसी/एसटी की पदोन्नति मामले को सही या गलत नहीं बताना चाहते। लेकिन सर्वोच्च अदालत का ध्यान हजारों साल से इन के खिलाफ हो रही ज्यादती की ओर जरूर दिलाना चाहूंगा।।।उनके साथ दुर्व्यवहार अब भी हो रहा है। AG ने कहा कि सरकार चाहती है कि 22।5% (15% SC+7।5% ST) सरकारी पदों पर तरक्की में भी SC/ST के लिए आरक्षण का प्रावधान हो। अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि इस तरह से ही SC/ST को समुचित प्रतिनिधित्व दिया जा सकता है।
केंद्र सरकार ने कहा कि साल में होने वाले प्रमोशन में SC/ST कर्मचारियों के लिए 22।5 फ़ीसदी आरक्षण मिलना चाहिए। ऐसा करने से ही उनके प्रतिनिधित्व की कमी की भरपाई हो सकती है। केंद्र सरकार ने कहा कि प्रमोशन देने के समय SC/ST वर्ग के पिछड़ेपन का टेस्ट नहीं होना चाहिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इंद्रा साहनी के फैसले में कहा था कि पिछड़ापन SC/ST पर लागू नहीं होता क्योंकि उनको पिछड़ा माना ही जाता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट अब फिर से ये विचार करेगा कि क्या सरकारी नौकरी में पदोन्नति में SC/ST को आरक्षण दिया जा सकता है या नहीं, भले ही इस संबंध में उनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व को लेकर डेटा ना हो।
गौरतलब है कि कई राज्य सरकारों ने हाईकोर्ट के प्रमोशन में आरक्षण रद्द करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनकी दलील है कि जब राष्ट्रपति ने नोटिफिकेशन के जरिए SC/ST के पिछड़ेपन को निर्धारित किया है, तो इसके बाद पिछड़ेपन को आगे निर्धारित नहीं किया जा सकता। पिछले महीने ही इस पर विचार रखते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा था कि 2006 के फैसले - एम नागराज पर विचार के लिए 7 जजों वाली संविधान पीठ की जरूरत है। केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि 7 न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ को इस मामले की फौरन सुनवाई करनी चाहिए, क्योंकि विभिन्न न्यायिक फैसलों से उपजे भ्रम की वजह से रेलवे और सेवाओं में लाखों नौकरियां अटकी हुई हैं।
राज्यों व SC/ST एसोसिएशनों ने दलील दी कि क्रीमी लेयर को बाहर रखने का नियम SC/ST पर लागू नहीं होता और सरकारी नौकरी में प्रमोशन दिया जाना चाहिए क्योंकि ये संवैधानिक जरूरत है। वहीं हाईकोर्ट के आदेशों का समर्थन करने वालों की दलील थी कि सुप्रीम कोर्ट के नागराज फैसले के मुताबिक इसके लिए ये साबित करना होगा कि सेवा में SC/ST का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है और इसके लिए डेटा देना होगा।
दरअसल, दलित मुद्दे को लेकर सरकार पर चौतरफा हमला हो रहा है और अब वो किसी हाल में विपक्ष को खुद पर बीस साबित होने देना नहीं चाहती है। यही वजह है कि गठबंधन के अपने साथियों और देश भर में हो रहे विरोध के चलते एससी/एसटी एक्ट के प्रावधानों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से उलट पुराने प्रावधानों को जारी रखने पर तैयार हो गई है।