पूर्व कैग ने मनमोहन की पेशेवराना ईमानदारी पर उठाये सवाल
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: पूर्व नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) विनोद राय ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के तीन तत्कालीन सांसदों पर 1.76 लाख करोड़ के 2जी घोटाले को लेकर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। विनोद राय ने तो पूर्व पीएम के बारे में कहा है कि ईमानदारी केवल धन की नहीं होती बल्कि यह बौद्धिक और पेशेवराना स्तर पर भी होती है।
राय ने मनमोहन सिंह की चुप्पी पर सवाल दागे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनको 2जी घोटाले की पूरी जानकारी थी, लेकिन वह इस पर मौन साधे रहे। राय ने कहा कि मनमोहन सिंह को कोयला घोटाले को लेकर भी पहले ही तफसील से बता दिया गया था।
पूर्व कैग ने दावा किया कि कांग्रेस के तीन तत्कालीन सांसदों संजय निरुपम, अश्विनी कुमार और संदीप दीक्षित पर भी गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि इन तीनों ने उन पर पीएम के नाम को ऑडिट रिपोर्ट्स से बाहर रखने के लिए दबाव डाला था। हालांकि निरुपम ने राय के इन आरोपों को निराधार बताया है।
राय ने मनमोहन सिंह के नेतृत्व में गठबंधन की राजनीति की भी आलोचना की और कहा कि सिंह की ज्यादा रुचि केवल सत्ता में बने रहने में थी।
उल्लेखनीय है कि राय के कार्यकाल में 2जी स्पेक्ट्रम और कोयला ब्लॉक आवंटन में हुए नुकसान के अनुमानों को लेकर ततकालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार काफी दबाव में आ गई थी।
राय ने आउटलुक पत्रिका से कहा कि ईमानदारी केवल वित्तीय मामलों में नहीं देखी जाती, यह बौद्धिक भी होती है और पेशेवराना ईमानदारी भी होती है। आपने संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ ली है, यह महत्वपूर्ण है।
राय से जब पूछा गया कि पूर्व प्रधानमंत्री की सोच के बारे में उनकी धारणा क्या है, क्योंकि कई लोग उन्हें बुजुर्ग राजनेता के तौर पर सम्मान देते हैं। जवाब में राय ने कहा कि आप राष्ट्र को सरकार के अधीन और सरकार को राजनीतिक दलों के गठबंधन के अधीन नहीं रख सकते। उस समय कहा जा रहा था कि अच्छी राजनीति, अर्थव्यवस्था के लिये भी अच्छी होती है पर क्या अच्छी राजनीति का मतलब सत्ता में बने रहना होता है।
राय देश के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक के तौर पर अपने कार्यकाल पर एक पुस्तक लिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि तत्कालीन संप्रग सरकार ने उनका फोन टैप किया और उनका मानना है कि 2जी दूरसंचार स्पेक्ट्रम आवंटन पहले आओ पहले पाओ के आधार करने तथा कोयला खानों को बिना नीलामी के आवंटित करने के फैसले में मनमोहन सिंह की भी भागीदारी थी।