कांग्रेस की कद्दावर नेता शीला दीक्षित का निधन, कहती थी- एक नेता कभी रिटायर नहीं होता
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : कांग्रेस की कद्दावर नेता और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का शनिवार दोपहर निधन हो गया है। 81 साल की शीला दीक्षित को शनिवार सुबह उन्हें एस्कॉर्ट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। एस्कॉर्ट अस्पताल के निदेशक अशोक सेठ की मानें तो शीला दीक्षित ने दोपहर बाद 3।55 बजे आखिरी सांस ली। सेठ ने बताया कि 3।15 पर उन्हें एक बार फिर से दिल का दौरा पड़ा और उसके बाद उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था।
पंजाब के कपूरथला में 31 मार्च, 1938 को जन्मीं शीला दिल की मरीज थीं और लंबे समय से बीमार चल रही थी। फिलहाल वे दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रही थी। उन्होंने दिल्ली के जीसस एंड मेरी कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षा पाई और दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस से इतिहास में मास्टर डिग्री हासिल की थी। उनका विवाह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और बंगाल के पूर्व राज्यपाल स्व। उमाशंकर दीक्षित के बेटे विनोद दीक्षित से हुआ था जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी थे। एक रेल यात्रा के दौरान विनोद दीक्षित का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनकी बेटी ने मुस्लिम परिवार में शादी की है। बेटे संदीप कांग्रेस के टिकट पर पूर्वी दिल्ली से लोकसभा सांसद रहे हैं।
एक पंजाबी घर में जन्मी शीला दीक्षित देश की राजधानी दिल्ली का दिल तीन बार जीतने में कामयाब रहीं और लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। भले ही अपने कार्यकाल के दौरान शीला दीक्षित पर घोटालों के कई आरोप लगे हों, इसके बावजूद उन्हें दिल्ली में हुए चौतरफा विकास के लिए लोग हमेशा याद रखेंगे। हमेशा से हाईकमान वफादारों में से एक रही शीला दीक्षित को उनके उम्र के 80वें पड़ाव पर दिल्ली कांग्रेस की कमान सौंपी गई थी। प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते उन्होंने पार्टी को जोड़ने का काम किया। इस उम्र में पार्टी का दायित्व संभालने के सवाल पर हमेशा वह कहा करती थीं कि एक नेता कभी रिटायर नहीं होता।
शुरुआती दौर में राजनीति में कदम रखने से पहले शीला दीक्षित कई सामाजिक संस्थानों से जुड़ी रहीं। वे 1984-1989 तक कन्नौज (उत्तर प्रेदश) सीट से सांसद रहीं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में महिलाओं के आयोग में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया। इसके अलावा केंद्रीय मंत्री का दायित्व भी संभाला। वे 1998-2013 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई विकास कार्य करवाए। इनमें दिल्ली में मेट्रो ट्रेन का प्रोजेक्ट और कई स्थानों को जाम से निजात दिलाने के लिए फ्लाईओवर का निर्माण बेहद अहम है। 2014 में वह केरल की राज्यपाल भी बनी।
एक तरफ जहां दिल्ली सहित पूरी कांग्रेस पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। ऐसे में कार्यकर्ताओं के साथ दिल्लीवासियों के दिलों पर राज करने वाली शीला दीक्षित का निधन कांग्रेस पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है। 1998 से 2013 तक लगातार तीन बार कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री रहने वाली शीला दीक्षित ने दिल्ली का काया पलट कर दिया था। लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभालने वाली शीला दीक्षित उम्र होने के बाद भी राजनीति में शांत नहीं रहीं। उनकी मेहनत का ही परिणाम रहा कि लोकसभा चुनाव में पार्टी कई लोकसभा क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही।