नहीं रहे वयोवृद्ध नेता नारायण दत्त तिवारी, 93 साल की उम्र में अपने जन्म के दिन ही हुए दिवंगत
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी का गुरुवार को नई दिल्ली के एक निजी अस्पताल में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वह 93 साल के थे और पिछले एक साल से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था। खास बात यह रही कि एनडी तिवारी का आज ही के दिन यानी 18 अक्तूबर को जन्म हुआ था।
एनडी तिवारी के देहावसान पर उत्तराखंड सरकार ने तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है। इस दौरान राज्य में राष्ट्रीय ध्वज झुका रहेगा तथा कोई भी शासकीय मनोरंजन के कार्यक्रम नहीं होंगे। तिवारी का अंतिम संस्कार उनके पैतृक रानीबाग स्थित श्मशान घाट पर शनिवार को की जाएगी। शुक्रवार सुबह उनका पार्थिव शरीर दिल्ली में और अपराह्न में लखनऊ स्थित आवास पर अंतिम दर्शनों के लिए रखा जाएगा। शनिवार को उनका पार्थिव शरीर हल्द्वानी लाया जाएगा। यहां भी उन्हें लोगों के अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा।
89 साल की उम्र में दूल्हा बने थे, की थी दूसरी शादी
विवादों ने एनडी तिवारी का पीछा कभी नहीं छोड़ा। जीवन के आख़िरी दौर में उन्हें तब अदालत में जाना पड़ा जब रोहित शेखर नामक एक युवक ने 2008 में उनके ख़िलाफ़ पितृत्व का मामला दाखिल करते हुए उनका जैविक पुत्र होने का दावा किया था। खून के नमूनों की डीएनए जांच में रोहित शेखर का दावा सही पाया गया और दिल्ली हाईकोर्ट ने 2012 में तिवारी को उसका जैविक पिता और उज्ज्वला को उसकी जैविक मां घोषित कर दिया। तिवारी ने 1954 में सुशीला सनवाल से शादी की थी। सुशीला के निधन के बाद 14 मई 2014 को उन्होंने ने 89 साल की उम्र में जैविक पत्नी उज्जवला शर्मा से दूसरी शादी की। नारायण दत्त तिवारी 2007-2009 के बीच आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे लेकिन कथित तौर पर एक सेक्स स्कैंडल ने उन्हें सियासत के आसमान से नीचे घसीट लिया। राज्यपाल का पद छोड़ने के पीछे एनडी तिवारी ने अपने स्वास्थ्य का हवाला दिया था और तब से वह देहरादून में रहने लगे थे।
नारायण दत्त तिवारी तीन बार उत्तर प्रदेश और एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रह चुके थे। इसके अलावा वयोवृद्ध नेता कांग्रेस की कई सरकारों में केंद्रीय मंत्री और आंध्र प्रदेश के राज्यपाल भी रहे थे। नारायण दत्त तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर 1925 को नैनीताल के बलूती गांव में हुआ था। उनके पिता पूर्णानंद तिवारी वन विभाग में अधिकारी थे। उन्होंने असहयोग आंदोलन के दौरान नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। नारायण दत्त तिवारी की राजनीति में एंट्री स्वतंत्रता आंदोलन के जरिए हुई थी। एनडी तिवारी को अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में चिट्ठियां लिखने की वजह से वर्ष 1942 में गिरफ्तार कर लिया गया था, जिसके 15 महीने बाद वह रिहा हुए। 1947 में आजादी के साल ही वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। इसी के साथ तिवारी का राजनीतिक में प्रवेश हुआ था।
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देश आजाद हुआ और एनडी तिवारी उत्तर प्रदेश में 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में नैनीताल से प्रजा समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े। उत्तर प्रदेश का पहला चुनाव था और नारायण दत्त तिवारी के हाथों में वोटों की गिनती के साथ ही जीत का झंडा फहरा रहा था। इसके बाद 1957 में उन्होंने नैनीताल से चुनाव जीता और विधानसभा में विपक्ष के नेता बन गए। बढ़ते सियासी कद के साथ 1963 में नारायण दत्त तिवारी ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। काशीपुर से चुनाव जीता और यूपी सरकार में मंत्री के पद पर काबिज हो गए। एनडी तिवारी 1969 से 1971 के बीच भारतीय युवा कांग्रेस के पहले अध्यक्ष के तौर पर काम करते रहे।
नारायण दत्त तिवारी तीन बार अविभाजित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। वह पहली बार 1976 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। वह उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री बने। हालांकि, तीनों बार उनका कार्यकाल बहुत लंबा नहीं रहा। सबसे पहले 1976-77, फिर 1985 और फिर 1988 से 1989 तक यूपी के मुखिया रहे। उत्तराखंड में एनडी तिवारी ने मुख्यमंत्री के रूप में (2002-2007) अपना कार्यकाल पूरा किया। राजनीतिक सफर में उन्हें 1979 से 1980 के बीच चौधरी चरण सिंह की सरकार में भी अहम पद संभालने का मौका मिला। इस दौरान उनके पास दायित्व था वित्त और संसदीय कार्यमंत्री का। इसके बाद 1980 में योजना आयोग का उन्हें डिप्टी चेयरमैन बना दिया गया। इंदिरा गांधी, संजय गांधी और राजीव गांधी के विश्वासपात्रों में गिने जाने वाले तिवारी केंद्र में वित्त मंत्री, उद्योग मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष जैसे कई उच्च पदों पर रहे।