आडवाणी ने तोड़ी चुप्पी, लिखा- पार्टी से बड़ा देश
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता रहे लाल कृष्ण आडवाणी ने 6 अप्रैल को पार्टी के स्थापना दिवस से दो दिन पहले एक ब्लॉग लिखकर गांधीनगर की जनता के प्रति आभार जताया जहां से वह 1991 के बाद से लगातार 6 बार सांसद रहे। इस बार गांधीनगर से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मैदान में हैं।
गांधीनगर से इस बार पार्टी का टिकट नहीं मिलने के बाद आडवाणी ने अपनी पहली सार्वजनिक टिप्पणी में पार्टी की नीतियों और सिद्धांतों को लेकर कई अहम बातें कीं। आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा कि हमने कभी भी राजनीतिक विरोधियों को दुश्मन या देशविरोधी नहीं माना। जाहिर है, आडवाणी के इस ब्लॉग में कही बातों के सियासी गलियारों में अलग-अलग मायने निकाले जाने लगे हैं।
भाजपा के संस्थापक आडवाणी ने लिखा है कि उनकी जिंदगी का पथप्रदर्शक सिद्धांत रहा है- देश सबसे पहले, उसके बाद पार्टी और आखिर में खुद। हर परिस्थिति में उन्होंने इस सिद्धांत पर अटल रहने की कोशिश की है जो आगे भी जारी रहेगी। अब तक के अपने राजनीतिक सफर को याद करते हुए आडवाणी ने ब्लॉग में बताया कि कैसे वह 14 साल की उम्र में आरएसएस से जुड़े और किस तरह वह पहले जनसंघ और बाद में भाजपा के संस्थापक सदस्यों में रहे और पार्टी के साथ करीब 7 दशकों तक जुड़े रहे।
आडवाणी ने पार्टी के सिद्धांतों और नीतियों पर जोर देते हुए सभी राजनैतिक दलों से आत्मनिरीक्षण की अपील भी की। आडवाणी ने लिखा कि भारतीय लोकतंत्र का सार उसकी विविधता और अभिव्यक्ति की आजादी है। अपने जन्म के बाद से ही, भाजपा ने खुद से राजनीतिक तौर पर असहमति रखने वालों को कभी 'दुश्मन' नहीं माना, बल्कि उन्हें हमसे अलग विचार वाला माना है। इसी तरह, भारतीय राष्ट्रवाद की हमारी अवधारणा में, हमने राजनीतिक तौर पर असहमति रखने वालों को कभी 'देश-विरोधी' नहीं माना।'
आडवाणी आगे लिखते हैं, 'पार्टी के भीतर और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य दोनों में ही लोकतंत्र और लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा भाजपा की गर्वीली पहचान रही है। भाजपा हमेशा से मीडिया समेत हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता, निष्ठा, निष्पक्षता और मजबूती की रक्षा की मांग में अग्रणी रही है।' चुनाव सुधार और भ्रष्टाचारमुक्त राजनीति उनकी पार्टी की एक अन्य प्राथमिकता है। सत्य, राष्ट्र निष्ठा और लोकतंत्र की तिकड़ी भाजपा के विकास की पथप्रदर्शक रही हैं। इन मूल्यों की समग्रता से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और सुराज (गुड गवर्नेंस) का जन्म होता है, जो उनकी पार्टी का हमेशा से ध्येय रहा है। अंत में उन्होंने लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक दलों, मीडिया और लोकतांत्रिक संस्थाओं से ईमानदारी से आत्मनिरीक्षण करने की भी अपील की है।