तेलंगाना गठन पर केंद्रीय कैबिनेट ने लगाई मुहर
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : सीमांध्र क्षेत्र के कांग्रेस नेताओं के विरोध के बावजूद केंद्र ने आज आंध्रप्रदेश से काटकर अलग तेलंगाना राज्य के गठन की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम उठाया। साथ ही यह भी फैसला किया कि हैदराबाद 10 साल के लिए दोनों राज्यों की संयुक्त राजधानी होगी।
कांग्रेस कार्य समिति के इस पर मुहर लगाने के दो महीने से अधिक समय बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तेलंगाना के रूप में 29वें राज्य के गठन के गृह मंत्रालय के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी और तौर-तरीकों को तय करने के लिए मंत्रियों का एक समूह (जीओएम) गठित करने का फैसला किया। दो घंटे से अधिक समय तक चली बैठक के बाद गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा, मंत्रिमंडल ने नए तेलंगाना राज्य के गठन को मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि हैदराबाद अगले 10 वर्षों के लिए दोनों राज्यों की साझा राजधानी रहेगी। नए राज्य के गठन के बाद तटीय आंध्र, रायलसीमा और तेलंगाना के लोगों के मौलिक अधिकार समेत सुरक्षा और गारंटी सुनिश्चित की जाएगी।
मंत्रिमंडल ने मंत्रियों के एक समूह को मंजूरी दे दी जो विशेष वित्तीय वितरण के मुद्दे पर गौर करेगा जिसकी शेष आंध्रप्रदेश के लिए अपनी राजधानी बनाने और पिछड़े क्षेत्र की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए केंद्र सरकार से जरूरत हो सकती है। सूत्रों ने बताया कि बैठक में एमएम पल्लम राजू और केएस राव ने इस कदम के खिलाफ अपना विरोध जताया। ऐसा समझा जाता है कि उन्होंने कहा कि विभाजन से समस्याएं पैदा होंगी। नए राज्य का भौगोलिक क्षेत्र अविभाजित आंध्रप्रदेश के 23 जिलों में से 10 जिलों में फैला होगा।
आंध्रप्रदेश की 42 लोकसभा सीटों और 294 विधानसभा सीटों में से तेलंगाना में 17 लोकसभा सीटों और 119 विधानसभा सीटों के जाने की संभावना है। आज के फैसले से तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम द्वारा 9 दिसंबर 2009 को तेलंगाना के गठन के संबंध में की गई घोषणा फलीभूत होने की ओर बढ़ी। सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री ने सभी तरह की राय सुनी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साथ-साथ संप्रग ने पहले ही फैसला कर लिया है और इसलिए इस संबंध में और विलंब करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अलग राज्य के गठन के प्रति अपनी वचनबद्धता दोहराते हुए सिंह ने आश्वस्त किया कि सरकार इस बात को देखेगी कि तटीय आंध्र, तेलंगाना और रायलसीमा से जुड़े सभी मुद्दों का उचित तरीके से निराकरण किया जाए।
मुद्दे पर बैठक में तकरीबन डेढ़ घंटे तक चर्चा की गई। सिंह ने सभी मंत्रियों से अपनी राय देने को कहा। फैसले का विरोध करने वाले राजू और राय ने दलील दी कि विभाजन के बाद आंध्रप्रदेश देश का सबसे गरीब राज्य हो जाएगा, क्योंकि हैदराबाद समेत ज्यादातर संसाधन तेलंगाना क्षेत्र में चले जाएंगे। हैदराबाद क्षेत्र में सर्वाधिक विकसित और खुशहाल शहर है।
हालांकि तेलंगाना क्षेत्र से आने वाले केंद्रीय मंत्री एस जयपाल रेड्डी और जयराम रमेश ने यह कहते हुए उनका विरोध किया कि विभाजन से दोनों राज्य विकसित होंगे और कांग्रेस कार्य समिति के फैसले को नहीं बदला जा सकता है। राकांपा प्रमुख और केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने कहा कि तेलंगाना का गठन जरूरी है और याद किया कि उनकी पार्टी ने साल 2004 में इसके गठन का समर्थन किया था। केंद्रीय मंत्री और रालोद प्रमुख अजित सिंह ने भी इस अवसर का इस्तेमाल पश्चिमी उत्तरप्रदेश के विभिन्न हिस्सों को मिलाकर अलग हरित प्रदेश के गठन के लिए दबाव बनाने के लिए किया। सिंह ने अलग तेलंगाना राज्य के फैसले का जोरदार समर्थन किया।
सरकार की एक विज्ञप्ति में बताया गया कि जीओएम विभिन्न कानूनी और प्रशासनिक कदमों को तय करेगा, जिसके जरिए राज्य के सभी क्षेत्रों के नागरिकों के मौलिक अधिकारों की गारंटी समेत सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित की जाएगी। गौरतलब है कि मंत्रिमंडल ने जीओएम के गठन को मंजूरी दे दी है।