पांच सितारा बाड़ों में कैद हुआ लोकतंत्र!
शंकर सिंह भाटिया
हजारों, लाखों लोगों द्वारा चुने गए हमारे लोकतंत्र के पुरोधा विधायक आजकल ढोर डंगरों की तरह बाड़ों में कैद हैं। यह अलग बात है कि ये बाड़े पांच सितारा सुविधाओं से लैश हैं। लेकिन कैद तो कैद है, इसीलिए तो कहा गया है ‘पराधीन सपनेहुं सुख नाहीं’। चुने गए जन प्रतिनिधियों को जनता की तरफ से कानून बनाने और जनता का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार प्राप्त है। यदि जनप्रतिनिधि बाड़ों में कैद हैं तो लोकतंत्र भी तो वहीं कैद किया हुआ माना जाएगा?
यह हमारे लोकतंत्र की बिडंबना ही है कि कभी ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष चुनने के लिए बीडीसी सदस्य और जिला पंचायत सदस्य बंधक बनाए जाते हैं। इस बार तो राज्य की सबसे बड़ी पंचायत विधानसभा के सदस्य बंधक बने हुए हैं। गुड़गांव के लीला होटल में भाजपा के विधायकों के साथ कांग्रेस के नौ बागी भी बंधक हैं तो रामनगर के जिम कार्बेट पार्क के आसपास किसी रिजार्ट में कांग्रेस के बाकी विधायक बंधक हैं।
शुक्रवार 18 मार्च को विधानसभा में जो कुछ घटित हुआ, जैसे उस घटना को कोई अदृश्य ताकत अपने रिमोट कंट्रोल से संपन्न करा रही थी। कांग्रेस के बागी विधायकों को पता भी नहीं चला वे पहले बस में फिर चार्टेर प्लेन से कब गुड़गांव पहुंच गए। वहां गए तो वह अपनी मर्जी से थे, लेकिन बाहर निकलने के लिए अदृश्य ताकत की इजाजत लेनी होगी। दूसरी तरफ एक दिन बाद कांग्रेस के बाकी विधायकों को देहरादून से हेलीकाप्टर में बिठाकर रामनगर रवाना कर दिया गया। इनकी हैसियत भी वहां बंधकों जैसी ही है।
बड़ा सवाल यह उठता है कि जनप्रतिनिधियों को बंधक बनाने की जरूरत क्यों पड़ती है? इसके लिए खुद जनप्रतिनिधि कितने जिम्मेदार हैं? सीधे शब्दों में कहें तो सत्ता और धन की लालसा ऐसी परिस्थितियों के लिए जिम्मेदार हैं। किसी तरह सत्ता हथियाना और उसके बदले जनप्रतिनिधियों की कीमत वसूलने की प्रवृत्ति ये हालात पैदा कर रहे हैं। साफ तौर पर कहा जा सकता है कि ये हालात सत्ता हथियाने के क्रम में बने हैं। जनप्रतिनिधि सत्ता के साथ खड़े रहने की कीमत वसूलना चाहते हैं। परिणाम सामने हैं।
इस घटनाक्रम के दौरान नेताओं के बयान मीडिया के माध्यम से सामने आ रहे हैं। हर कोई उत्तराखंड के लिए दुबला होता दिखाई देता है। भाजपा का तर्क है कि यदि कांग्रेसी अपनी सरकार गिराना चाहते हैं तो वह क्या करें, उन्होंने तो सिर्फ ऐसे कांग्रेसजनों का साथ दिया है। बागी कांग्रेसी हरीश रावत पर माफियाराज फैलाने का आरोप लगा रहे हैं। हरीश रावत और कांग्रेस के पक्षकार भाजपा पर लोकतंत्र की हत्या करने और बागी विधायकों पर उत्तराखंड की जनता का अपमान करने का आरोप लगा रहे हैं।
सामने से विरोधियों पर वार करने के लिए सबके अपने-अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन अंदरखाने का खेल कुछ और ही है। जो कभी-कभी इन सबकी जुबान पर आता भी है। सभी हॉर्स ट्रेडिंग की बात कर रहे हैं। इस घटनाक्रम का यह शास्वत सत्य है। सब कुछ पा लेने की सत्ताधारी पार्टियों और हमारे जनप्रतिनिधियों की लालसा लोकतंत्र को ध्वस्त कर रही है। लोकतंत्र कैसे बचा रहे, जनप्रतिनिधि बनने के बाद सोचने की फुर्सत किसी को नहीं होती। क्योंकि कीमत वसूलने के लिए वह अपनी तथा लाखों करोड़ों जनता की स्वतंत्रता को बंधक बनाने से भी गुरेज नहीं करता। यह आम मतदाता को सोचना होगा कि कौन उनकी स्वतंत्रता को बचाए रख सकता है?
(लेखक उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। इस आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता अथवा सच्चाई के प्रति सत्ता विमर्श उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)