सारण में पार्टियां नहीं, जातियां जीतती हैं
बिहार में लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में कई दिग्गज नेताओं का भविष्य दांव पर लगा है। इन्हीं दिग्गजों में से हैं बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और भाजपा के राजीव प्रताप रूडी। बिहार के सारण सीट से दोनों दिग्गज एक दूसरे के खिलाफ चुनाव मैदान में हैं। राबड़ी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रही हैं, जबकि रूडी भाजपा सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री रह चुके हैं। सारण में 7 मई को चुनाव होने हैं।
राबड़ी देवी की बात करें तो वह भले ही चुनाव मैदान में राजद प्रत्याशी के तौर पर भाजपा के रूडी को टक्कर दे रही हों, लेकिन उनकी वास्तविक ढाल उनके पति और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद यादव ही हैं। कहने का मतलब यह कि यह मुकाबला राबड़ी और रूडी के बीच नहीं बल्कि लालू और रूडी के बीच है। यह मुकाबला कोई नया नहीं है।
साल 2009 में लालू ने रूडी को 50 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया था। सारण संसदीय क्षेत्र में मढ़ौरा, छपरा, गरखा, अमनौर, परसा तथा सोनपुर विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इसमें से तीन पर भाजपा, जबकि दो पर जनता दल (युनाइटेड) और एक पर राजद का कब्जा है। छपरा संसदीय क्षेत्र का नाम बदलकर भले ही सारण रख दिया गया हो, लेकिन छपरा संसदीय क्षेत्र का मिजाज अब तक नहीं बदला है। शुरुआत से ही इस क्षेत्र में जीत-हार जातीय दायरे के इर्द-गिर्द घूमता रहा है। यहां पार्टियां नहीं बल्कि जातियां जीतती रही हैं।
पिछले चुनाव परिणामों पर गौर करें तो जब वर्ष 1984 में पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी तब भी यहां से जनता पार्टी का उम्मीदवार जीता था। इस सीट से लालू प्रसाद सर्वाधिक चार बार चुनाव जीतकर संसद पहुंचे, लेकिन उन्हें यहां से हार का सामना भी करना पड़ा है। लालू से लगातार दो बार चुनाव हारने के बावजूद भाजपा ने रूडी को एक बार फिर यहां से टिकट दिया है।
वैसे रूडी ने वर्ष 1996 में न केवल जीत दर्ज कर यहां भाजपा का खाता खुलवाया था, बल्कि 1999 में भी जीत दर्ज की। इधर, राबड़ी की इस सीट से जीत न केवल लालू बल्कि पूरी पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। अगर सारण संसदीय क्षेत्र में विकास की बात की जाए, तो यहां विकास हुआ है, लेकिन बुनियादी सुविधाओं से लोग अभी भी वंचित हैं।
रूडी ने पिछली गलतियों को सुधारते हुए राज्यसभा संसदीय कोष से कई महत्वपूर्ण कार्य करवाए हैं, लेकिन लालू इस मामले में पीछे नजर आ रहे हैं। हालांकि, रेल मंत्री रहते लालू ने सारण संसदीय क्षेत्र में जो सौगात दी है उसे यहां के मतदाता नहीं भूल पाए हैं। हालांकि स्थानीय लोग मढ़ौरा के रेलवे इंजन कारखाने का निर्माण कार्य शुरू नहीं होने पर सवाल भी उठा रहे हैं।
इधर, राबड़ी के ढाल बने लालू सारण में मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए खूब पसीना बहा रहे हैं। वह अपने भाषणों में सांप्रदायिकता को केन्द्र में रखकर नरेन्द्र मोदी पर निशाना साध रहे हैं, परंतु उनके धुर राजनीतिक विरोधी माने जाने वाले नीतीश कुमार ने यहां से बिहार विधान परिषद के उपसभापति सलीम परवेज को जद (यू) का टिकट देकर मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। परवेज के मैदान में आने से मुस्लिम मतों का विभाजन तय माना जा रहा है।
चुनावी मुद्दों की बात करें तो यहां विकास की चर्चा कम हो रही है और सांप्रदायिकता तथा धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे के साथ-साथ जातीय गोलबंदी पर प्रत्याशी ज्यादा भरोसा जता रहे हैं। नीतीश और लालू के उम्मीदवारों के बीच जहां अल्पसंख्यकों के हितैषी बनने के लिए प्रतियोगिता हो रही है, वहीं प्रत्याशी अपने स्वजातीय वोटों के ध्रुवीकरण के लिए एक-दूसरे के वोट बैंकों में सेंध लगाने की भी जुगत में हैं।
बहरहाल, इतना तय माना जा रहा है भाजपा सारण में अपने बिखरे मतों को समेटने का प्रयास कर रही है। भाजपा के लोगों को मोदी की कथित लहर तथा रूडी के व्यक्तित्व और उपलब्धियों पर भरोसा है, जबकि राजद को अपने वोट बैंक और जद (यू) की आशा अपने सुशासन के दावे पर टिकी है। यहां मुकाबला कुल मिलाकर त्रिकोणीय हो गया है।
उल्लेखनीय है कि छपरा संसदीय क्षेत्र से सांसद यादव या राजपूत जाति के ही लोग बनते रहे हैं। वर्ष 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में राजेन्द्र सिंह सांसद निर्वाचित हुए थे, तो वर्ष 1962 से लेकर 1971 तक हुए आम चुनावओं में रामशेखर प्रसाद सिंह ने इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संसद में किया था। वर्ष 1977 में पहली बार लालू यहां से सांसद बने। 1989 में हुए चुनाव में पुन: यहां के मतदाताओं ने उन्हें सांसद बनाया। रूडी ने 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में छपरा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था।