मेरी पतंग उलझता नहीं, वृक्षों की डालियों में फंसता नहीं
अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव के मौके पर गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र भाई मोदी ने आसमान में सिर्फ पतंग नहीं उड़ाई बल्कि उसे अपनी कविता भी सुनाई। राजनीतिक हलकों में ये कविता चर्चा का विषय रही। क्या ये संयोग है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की राह पर मोदी ने भी कदम बढ़ा दिए हैं।
उत्सव
पतंग...
मेरे लिए उध्र्वगति का उत्सव,
मेरा सूर्य की ओर प्रयाण।
पतंग...
मेरे जन्म-जन्मांतर का वैभव,
मेरी डोर मेरे हाथ में
पदचिन्ह पृथ्वी पर,
आकाश में विहंगम दृश्य सेसा।
मेरी पतंग...
अनेक पतंगों के बीच...
मेरी पतंग उलझता नहीं,
वृक्षों की डालियों में फंसता नहीं।
पतंग...
मानो मेरा गायत्री मंत्र,
धनवान हो या रंक,
सभी को कटी पतंग एकत्र करने में आनंद होता है,
बहुत ही अनोखा आनंद।
कटी पतंग के पास
आकाश का अनुभव है,
हवा की गति और दिशा का ज्ञान है।
स्वयं एक बार ऊंचाई तक गई है,
वहां कुछ क्षण रूका है।
इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
पतंग...
मेरा सूर्य की ओर प्रयाण,
पतंग का जीवन उसकी डोर में है।
पतंग का आराध्य (शिव) व्योम (आकाश) में,
पतंग की डोर मेरे हाथ में,
मेरी डोर शिव जी के हाथ में।
जीवन रूपी पतंग के लिए (हवा के लिए)
शिव जी हिमालय में बैठे हैं।
पतंग के सपने (जीवन के सपने)
मानव से ऊंचे।
पतंग उड़ती है,
शिव जी के आसपास,
मनुष्य जीवन में बैठा-बैठा,
उसको (डोर) सुलझाने में लगा रहता है।