नहीं रहे अमेरिका को आंख दिखाने वाले फिदेल कास्त्रो
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: फिदेल कास्त्रो क्यूबा का वो शख्स जो निडरता से अमेरिका जैसी महाशक्ति के सामने झुका नहीं, जिसने क्यूबा की सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका और एक बार मुंह की खाने के बाद फिर डट गया। इस मुहिम को धारदार बनाने के लिए महान क्रांतिकारी चे गुएरा का भी साथ लेने से गुरेज नहीं किया। कास्त्रो एक ऐसे नेता का नाम था जिसने अमीर जमींदार परिवार में जन्म लेने के बाद भी सारी सुख सुविधाओं से मुंह मोड़ कर क्रांति का रास्ता इख्तियार किया। अजीब सी कैफियत के मालिक थे कास्त्रो। 90 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले इंसान की जिन्दगी के रंग भी कुछ अलग थे, एक पल में तोला तो दूसरे में माशा था। जहां इसे अपने आदर्श से प्यार था तो वहीं व्यवहारिक भी था। कभी इसकी बौद्धिकता के सब कायल होते तो अगले ही पल लापरवाह कास्त्रो से सामना हो जाता। जिद्द के पक्के शख्स का करिश्मा भी गजब था। कुल मिलाकर एक ऐसा पैकेज जिसे जितना जानिए, जितना समझिए उसे और जानने की जिज्ञासा होती थी।
कास्त्रो की पहचान उसकी दाढ़ी, सैन्य लिबास और ऊंगलियों में नाचती क्यूबन सिगार थी। आलोचकों को कास्त्रो सत्तासीनों के खिलाफ आग उगलने वाला व्यक्ति मानते थे। जो रिवायतों से अलग चलने के लिए आतुर रहता था। जिसने मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया। अपने आलोचकों को जेल में ठूंसा, विपक्षी पार्टियों पर प्रतिबंध लगाया और क्यूबा की अर्थव्यवस्था को जार-जार कर दिया। वो वही करता था जो उसकी दक्षिण पंथी विचार धारा को सही लगता था।
वहीं कास्त्रो को सराहने वाले भी कम नहीं। उनके विजन के सब कायल थे। गरीबों की शिक्षा को लेकर, स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर जो उन्होंने किया उसकी विजय गाथा पूरे विश्व में फैली और समाजवादी आंदोलनों को काफी प्रेरणा भी मिली।
कास्त्रो ने 1953 में भ्रष्ट तानाशाह बतिस्ता के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया। क्रांति असफल रही और उन्हें 15 साल की सजा देकर जेल में डाल दिया गया। लेकिन दो साल बाद ही उन्हें रिहा कर दिया गया। छूटने के बाद वे अपने भाई राउल के साथ निर्वासन में मैक्सिको चले गए। यहीं से रहकर उन्होंने चे ग्वेवारा के साथ मिलकर बतिस्ता के खिलाफ गुरिल्ला लड़ाई छेड़ दी।
कास्त्रो का दम ही था कि बतिस्ता सरकार को मुंह की खानी पड़ी और कास्त्रो के गुरिल्ला योद्धाओं से बेहतर सेना होने के बावजूद वो खड़े नहीं हो पाये। अपनी बुद्धिमता का परिचय दिया और धड़ों में बंटे विपक्ष को एकजुट किया और सुपर पावर अमेरिका के पियादे बतिस्ता को नेस्तनाबूद कर दिया।
कास्त्रो को अलेक्जेंडर द ग्रेट की शख्सियत से खासा लगाव था। उन्हें लगता था कि ऐसे साहसी व्यक्तित्व से क्यूबा काफी कुछ सीख सकता है। तभी तो 1959 की क्रांति में कास्त्रो ने कहा- इंसान अपने भाग्य का निर्माता नहीं है, बल्कि उस एक खास पल के लिए किस्मत उसे चुनती है।
लोग उन्हें सोवियत संघ के साथ गठजोड़ के लिए भी पहचानते हैं जिसकी वजह से एक बार न्यूक्लियर वार का खतरा भी मंडराने लगा था।
कुछ और तथ्य
वह किसी देश पर राज सबसे ज्यादा वक्त तक राज करने वाले तीसरे नेता रहे। उनसे पहले ब्रिटेन की रानी एलीजाबेथ और थाईलैंड के राजा का नंबर आता है। उन्होंने 2008 में लंबी बीमारी के चलते अपने भाई राउल को सत्ता सौंप दी थी। कास्त्रो का जन्म 13 जुलाई 1926 को पूर्वी क्यूबा के बीरन में हुआ। उनके पिता एंजेल उत्तरी स्पेन के गैलिसिया क्षेत्र से क्यूबा आए थे। यहां आने के बाद वे जमींदार बन गए थे। बताया जाता है कि गन्ने के खेतों में हैती के मजदूरों पर होने वाले अत्याचारों ने फिदेल कास्त्रो को क्रांति की ओर खींचा। कास्त्रो का पुश्तैनी मकान अब पर्यटन स्थल में बदला जा चुका है। फिदेल कास्त्रो की पढ़ाई-लिखाई हवाना यूनिवर्सिटी में हुई।
कास्त्रों का दावा था कि उनपर 634 से ज्यादा बार जानलेवा हमले करवाए गए थे लेकिन वह सबसे बच गए। उनमें ज्यादातर सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (CIA) और अमेरिका आधारित निर्वासन संगठनों द्वारा किए गए थे। कास्त्रों ने कहा था कि उन्हें जहर देकर, जहर भरी सिगार देकर और विस्फोट द्वारा मारने की कोशिश की गई थी। कास्त्रो ने लगभग 50 साल क्यूबा पर शासन किया। इतने वक्त में अमेरिका के 9 राष्ट्रपति बदल गए। लेकिन कोई भी कास्त्रों को अपने पक्ष में नहीं कर पाया था।
कास्त्रो को सिगार पीने का बहुत शौक था। लेकिन 1985 में उन्होंने सिगार छोड़ दी थी। सिगार छोड़ते हुए उन्होंने कहा था, ‘सिगार के बॉक्स के साथ सबसे अच्छी चीज जो तुम कर सकते हो वो है कि इसे अपने दुश्मन को दे दो।’टाइम मैगजीन ने 2012 में 100 सबसे ज्यादा प्रभावशाली लोगों में कास्त्रो तो शामिल किया था।
कास्त्रो कहते थे:
मेरी निंदा करते रहिए आप लेकिन इतिहास मुझे दोषी नहीं मानेगा- 1953 में अपने खिलाफ चले एक ट्रायल के दौरान
मैंने 82 लोगों के साथ क्रांति की शुरुआत की। अगर मैं फिर ऐसा करता हूं, तो मैं 10 या 15 लोगों के साथ पूरे भरोसे से करूंगा। अगर आपको खुद पर भरोसा है और एक रणनीति है, तो यह बिल्कुल मायने नहीं रखता कि आप कितने छोटे हैं- 1959 में क्रास्त्रो
मैं अपनी दाढ़ी काटने की नहीं सोच रहा, क्योंकि मैं इसका आदी हो चुका हूं और मेरी दाढ़ी मेरे देश के लिए काफी मायने रखती है। जब मैं देश को अच्छा शासन दे दूंगा तो मैं ये दाढ़ी कटवा लूंगा- 1959 में क्यूबा क्रांति के 30 दिनों बाद एक टीवी इंटरव्यू में कास्त्रो
क्रांति कोई गुलाबों का सेज नहीं होती, यह भूत और भविष्य के बीच का संघर्ष है- 1959 में क्रास्त्रो
मैं बहुत पहले ही इस निष्कर्ष पर पहुंच गया था कि मुझे धूम्रपान छोड़ देना चाहिए, जो कि (क्यूबा में) जन स्वास्थ्य के प्रति चेतना के लिए मेरा आखिरी बलिदान होगा। सिगार के इस बॉक्स के साथ सबसे अच्छी चीज यही होगी कि इसे अपने दुश्मन को दे दें - दिसंबर 1985 में सिगार छोड़ने की घोषणा करते हुए कास्त्रो
जरा सोचिये अगर समाजवादी समुदाय खत्म हो जाए, तो दुनिया में क्या होता... यह भले पहले संभव था, लेकिन मैं नहीं मानता कि अब यह संभव है- 1989 में कास्त्रो
इस क्रांति से हुए सबसे बड़े लाभ में एक यह भी है कि आज हमारी वेश्याएं भी कॉलेज ग्रैज्युएट हैं- 2003 में बनी डॉक्यूमेंट्री 'कमांडेंट' में निदेशक ओलिवर स्टोन से कास्त्रो
बहन इंदिरा से भाई कास्त्रो का खास रिश्ता
कौन भूल सकता है फिदेल का देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गले लगाना। नेहरू-गांधी परिवार से उनका खास रिश्ता था। खासकर इंदिरा गांधी से उनका रिश्ता एक भाई वाला था। यही वजह थी कि भारत में 1983 के नाम समिट में जब वो भारत पधारे तो सभी को हैरान करते हुए उन्होंने इंदिरा को गले लगा लिया। उन्होंने इस सम्मेलन में कहा था कि जब 1979 में उनके यहां हवाना में इसका आयोजन हुआ था तब अपनी बहन इंदिरा को इसकी अगली मेजबानी का जिम्मा सौंपना उन्हें बेहद अच्छा लगा था।
उसके बाद सैकड़ों प्रतिनिधियों के बीच इंदिरा कास्त्रो से लकड़ी का हथौड़ा लेने पहुंची जिससे औपचारिक तौर पर समारोह का उद्घाटन किया जाना था। मंच पर इंदिरा ने अपना हाथ बढ़ाया पर कास्त्रो ने हथौड़ा नहीं सौंपा। इंदिरा असहज हुईं उन्होंने दोबारा हाथ बढ़ाया फिर वही हुआ वो हतप्रभ रह गईं। इसके बाद जो हुआ वो सबकी आंखों में बस गया। कास्त्रो ने अपनी बहन इंदिरा को बांहे फैलाकर गले लगा लिया। इंदिरा के लिए ये अप्रत्याशित था वो हैरान थीं, लेकिन मंच और दर्शकदीर्घा तालियों की गड़गड़ाहट से पट गया था।
कास्त्रो इंदिरा को नेहरू की बेटी के रूप में देखते थे और अपनी बड़ी बहन मानते थे। कास्त्रो का यही अंतिम भारत दौरा था।