जेएनयू वालों पर सीट कटौती की मार, 242 छात्र ही कर पायेंगे शोध
सत्ता विमर्श ब्यूरो़
नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय फिर सुर्खियों में है। इस बार यूजीसी के नियमों का हवाला देते हुए रिसर्च स्कॉलर्स की सीट कटौती मुद्दा है। 'द इंडियन एक्सप्रेस'की एक रिपोर्ट के मुताबिक जवाहरलाल यूनिवर्सिटी के 31 सेंटर्स और दो विशेष सेंटर्स में आगामी शिक्षा सत्र में एक भी शोध छात्र को दाख़िला नहीं मिलेगा। जेएनयू में एमफिल/ पीएचडी की कुल 970 सीटों को घटाकर 102 कर दिया गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2016 में अकादमिक परिषद की बैठक में लिए गए फ़ैसले और जारी किए गए ई-प्रोस्पेक्टस में भारी अंतर है। 21 मार्च को जारी इस ई प्रोस्पेक्टस में कई विषयों के लिए एक भी सीट नहीं दी गई है। स्कूल ऑफ फिजिकल साइंसेज, स्कूल ऑफ कंप्यूटेशनल ऐंड इंटिग्रेटिव साइंसेज और स्कूल ऑफ बायॉटेक्नोलॉजी में इस बार एक भी ऐडमिशन नहीं होगा। हिस्ट्री और इंग्लिश स्टडीज में भी इस साल एम.फिल और पीएचडी कोर्स के लिए सीट नहीं हैं।
जेएनयू यूजीसी 2016 नियमों के तहत सीटों की कटौती कर रहा है। इंडियन एकस्प्रेस के अनुसार ई प्रोस्पेक्टस और अकादमिक परिषद के फैसलों में काफी अंतर है। नतीजतन जेएनयू के तकरीबन 42 विभागों पर इससे फर्क पड़ेगा। इनमें संस्कृत और लॉ एण्ड गर्वेनेंस जैसे दो अति महत्वपूर्ण केन्द्र भी शामिल हैं। गौरतलब है कि जेएनयू की अकादमिक परिषद ने 1408 शोध छात्रों के प्रवेश की अनुमति दी थी लेकिन शिक्षा सत्र 2017-18 में सिर्फ़ 242 शोध छात्रों को ही प्रवेश दिया जाएगा। यानि अकादमिक परिषद द्वारा स्वीकृत की गईं सीटों में जेएनयू ने 82.81 फीसद की भारी कटौती कर दी है।
इस जीरो एडमिशन प्रक्रिया का असर इतिहास केन्द्र ( सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज ) पर भी पड़ेगा। जिसे इस कैम्पस का एक अति विशिष्ट और बौद्धिक पावरहाउस का तमगा हासिल है। स्कूल ऑफ सोशल साइंस का ये अंग है, जिसकी सीटों में 93.23 फीसदी कटौती देखी गई है। 458 से ये संख्या 31 सीटों तक पहुंच गई है। ऐसी ही कुछ अंतर्राष्ट्रीय विषय के अध्ययन में भी देखने को मिलेगा। यहां 283 से घटाकर संख्या 11 सीटों तक कर दी गई है।
यह अफसोसनाक है कि जिस विश्वविद्यालय को हाल ही में भारत की दूसरी सबसे बेहतरीन यूनिवर्सिटी का मान खुद एचआरडी मंत्रालय ने दिया और जिसमें रिसर्च को एक अहम कसौटी पर परखा जाता है उसी संस्थान के रिसर्च विंग को हाशिए पर धकेल दिया गया है। यहां यह भी बताना जरूरी है कि आईआईटी तमिलनाडु को देश के बेहतरीन संस्थान के तौर पर मान्यता दी गई है वहां 2,471 पीएचडी के छात्र हैं और फैकेलिटी 600 यानी हर 4 शोधार्थी पर एक प्रोफेसर है वहीं जेएनयू में ये प्रतिशत 8.4 का है।
संस्थान के उप-कुलपति जगदीश कुमार तो इसकी पिछले सत्र से तुलना करने को ही गलत मानते हैं। उनके अनुसार अब वो यूजीसी द्वारा तय किए गए नियमों के अनुसार जो भी कर रहें हैं वो संस्थान के लिए बेहतर है। यूजीसी के अनुसार एम.फिल / पीएचडी स्टूडेंट्स की संख्या सीमित कर दी गई है। अब एक प्रोफेसर 3 एम.फिल और 8 पीएचडी स्कॉलर्स से ज्यादा को गाइड नहीं कर सकते और एसोसिएट प्रोफेसर अधिकतम 2 एम फिल और 6 पीएचडी स्कालर को गाइड कर सकते हैं। यही वजह है कि सीटों की संख्या में भारी कटौती की गई है।
प्रतिरोध और आंदोलन के प्रतीक के रूप में पहचान बनाने वाली यूनिवर्सिटी जेएनयू एक बार फिर उसी मोड़ पर है। शिक्षक संघ और शोधार्थी इस फैसले की मुखालफत करते रहें हैं और जारी रखने का दावा भी कर रहें हैं, हालांकि एम.फिल और पीएचडी में दाखिले की समय सीमा खत्म हो चुकी है। यूजीसी नोटिफिकेशन 2016 के चलते जेएनयू की स्वायत्तता खतरे में है। महिलाओं और पिछड़े क्षेत्रों से आने वाले छात्रों के लिए डेप्रीवेशन प्वाइंट नहीं मिल रहे हैं। वहीं, अब यूजीसी ने स्कॉलरशिप आदि के फंड भी रोक दिए हैं।
इस बीच स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने देश में एमफिल और पीएचडी पाठ्यक्रमों में दाखिले की योग्यता और तरीके पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया। इस पर विचार करने के लिए 18 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध कर दिया। एसएफआई ने अपनी याचिका में यूजीसी (एमफिल एवं पीएचडी डिग्री प्रदान करने में न्यूनतम मानदंड एवं प्रकिया) नियमन 2016 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है। ये नियमन 5 जुलाई 2016 से प्रभाव में आए हैं।
एसएफआई ने नियमन को अतार्किक, अनुचित और मनमाना बताया तथा आरोप लगाया कि यह मौलिक अधिकार और राज्य के नीति निदेशक तत्वों के प्रतिकूल है। एसएफआई के अलावा 3 छात्रों ने भी छात्र संगठन के साथ नियमों को चुनौती दी है। इन छात्रों में जेएनयू से एक और डीयू से दो छात्र शामिल हैं।