क्यों कर रहें हैं भोपाल स्थित NLIU के छात्र पिंजरा तोड़ने की बात!
सत्ता विमर्श ब्यूरो
भोपाल: भोपाल स्थित नेशनल लॉ इंस्टीट्यूट यूनिवर्सिटी के छात्र पिछले तीन दिनों से धरने पर हैं। वो पिंजरा तोड़ कर राष्ट्रीय विधि संस्थान विश्वविद्यालय (NLIU) भोपाल को आजाद कराने की मांग कर रहें हैं। सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर क्यों कर रहें हैं वो ऐसा? तो इसका सीधा जवाब है कॉलेज प्रशासन का भेदभाव पूर्ण रवैया। ये भेद लिंग, जाति जैसे मसलों पर किया जा रहा है। छात्र इसके लिए अपने डायरेक्टर एसएस सिंह को जिम्मेदार मानते हुए उनके इस्तीफे की मांग पर अड़े हैं तो वहीं डॉ सिंह खुद को निर्दोष बता रहें हैं।
रिजल्ट में गड़बड़ी के मुद्दे से शुरू हुआ आंदोलन डायरेक्टर को हटाने की मांग तक पहुंच गया है। स्टूडेंट गुरुवार (9 नवम्बर) को डायरेक्टर से मिले थे, इसके बाद शुक्रवार सुबह से शुरू हुआ धरना रविवार को भी जारी रहा। रविवार को केरवा डेम रोड स्थित एनएलआईयू में छात्रों ने काली पट्टी बांधकर मौन धरना दिया।
ये है वजह
दरअसल, छात्रों का आरोप है कि डायरेक्टर प्रो. एस.एस. सिंह ने चौथे वर्ष की एक छात्रा को गलत तरीके से नंबर देकर पास किया है। छात्रों का कहना है कि इस मामले को लेकर वे जब भी प्रबंधन से बातचीत करते हैं तो हमेशा टालमटोल किया जाता है। छात्रों ने बताया कि कॉपी चेकिंग में गड़बड़ी की जाती है।एक छात्रा को गलत तरीके से फायदा पहुंचाया गया है। डायरेक्टर प्रो. सिंह के कहने पर प्रबंधन ने छात्रा को एक विषय में दस नंबर अतरिक्त देकर गलत तरीके से पास कर दिया। डायरेक्टर एस एस सिंह ने बताया कि पेपर में एक प्रशन के उत्तर का मूल्यांकन छूट गया था, उसकी जांच के बाद छात्रा को अतिरिक्त नंबर दिए गए थे।
राजनीति शुरू
मुद्दा राजनीतिक रंग लेता जा रहा है। एनएसयूआइ के प्रदेश प्रवक्ता विवेक त्रिपाठी ने संस्थान पहुंच विरोध कर रहे छात्रों की मांगो का समर्थन किया तो शुक्रवार सुबह सांसद आलोक संजर और शाम को विधायक रामेश्वर शर्मा भी पहुंचे, जहां दोनों को एक छात्रा ने बताया कि डायरेक्टर उनके कपड़ों को लेकर भद्दे कमेंट्स करते हैं। कहते हैं, तुम जैसी लड़कियां शर्म और इज्जत बेचकर आती हैं। स्टूडेंट्स डायरेक्टर को तानाशाह बताकर उन्हें तत्काल हटाने की मांग कर रहे हैं। वह किसी भी आश्वासन पर आंदोलन खत्म नहीं करेंगे।
छात्रों ने भूख हड़ताल भी शुरू कर दी है। इनका आरोप है कि एनएलआईयू में आर्थिक गड़बडि़यां, जात-पात, लिंगभेद जैसी घटनाएं हावी होती जा रही हैं। उधर, प्रो.एस एस सिंह ने बताया कि उन्होंने खुद स्टूडेंट्स से मिलकर पूछा था कि यूनिवर्सिटी छोड़ दें क्या, तो मना करने लगे, लेकिन स्टूडेंट्स ने कहा कि किसी ने भी उनसे ये नहीं कहा। वहीं इंस्टीट्यूट के डॉयरेक्टर डॉ. सिंह ने इन आरोपों को झूठा बताया।
विधायक रामेश्वर शर्मा छात्रों के प्रतिनिधि मंडल को लेकर उच्च शिक्षामंत्री जयभान सिंह पवैया से मिले। मंत्री ने कहा कि डायरेक्टर की कई शिकायतें उन्हें लगातार मिल रही हैं। इस संबंध में राज्यपाल को पत्र लिखकर कार्रवाई करने का अनुरोध करेंगे।
ये भी हैं मुद्दे-
मेडिकल ग्राउंड पर भी अटेंडेंस पर छूट नहीं दी जाती। एक छात्र की बहन कैंसर से पीडि़त थी। उसने राहत मांगी लेकिन उन्हें पढ़ाई छोडऩी पड़ी। स्टूडेंट्स का कहना है कि मेडिकल ग्राउंड पर तो अटेंडेंस में छूट मिलनी चाहिए।
परीक्षा और मूल्यांकन की प्रक्रिया में लापरवाही की जा रही है। जिसमें उत्तरपुस्तिका के कोडिंग डिकोडिंग का सिस्टम नहीं है, जिससे निष्पक्षता से मूल्यांकन हो सके। मूल्यांकन इसी यूनिवर्सिटी में होता है। इसलिए गड़बड़ी की संभावना बनी रहती है।
रिजल्ट समय पर जारी नहीं किए जाते। रिवेल्यूएशन के रिजल्ट के लिए भी महीनों इंतजार करना पड़ता है। जबकि हर ट्राइमेस्टर में रिजल्ट 14 दिन में जारी कर दिए जाने चाहिए। इसके अलावा ग्रेडिंग की प्रक्रिया में भी पारदर्शिता नहीं है। लाइब्रेरी की टाइमिंग एेसी है जिससे स्टूडेंट उसका सही से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। अन्य विवि में 24 घंटे लाइब्रेरी खुली रहती हैं और यहां रात एक बजे तक ही खोलने का बोल रहे हैं।
रैगिंग विवाद
पहली बार नहीं है कि इस कॉलेज का नाम किसी गलत कारण से सुर्खियों में आया है। इससे पहले कॉलेज के ही जूनियर छात्रों ने सीनियरर्स द्वारा रैगिंग का आरोप लगाया था। इसी साल जुलाई में छात्रों ने बेहद अमनावीय रैगिंग की शिकायत नेशनल एंटी रैगिंग सेल से की थी। विवि प्रबंधन को भी जानकारी दी थी लेकिन तब भी प्रशासन की लापरवाही सामने आई थी। उलटा भुक्तभोगी छात्रों के खिलाफ रैगिंग का टॉर्चर और बढ़ गया था।