राष्ट्रनीति का हिस्सा नहीं भूमि अध्यादेश
किरण राय
भाजपा और मोदी सरकार भले ही इस बात से इंकार करे कि उन्हें रामलीला मैदान में कांग्रेस की किसान रैली से कोई असर नहीं पड़ता लेकिन, इसमें कोई दो राय नहीं कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चित रूप से इस रैली से विचलित थे। यही वजह रही कि किसान रैली के ऐन वक्त पर भाजपा ने संसद भवन में स्थित ऑडिटोरियम में मोदी सर की पाठशाला लगाई जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबों को समर्पित सरकार की उपलब्धियां गिनाई।
मोदी सर ने अपनी पाठशाला के माध्यम से देश को राजनीति और राष्ट्रनीति का फर्क तो बता गए, लेकिन यह समझाने में विफल रहे कि किसानों की जमीन छीनकर कॉरपोरेट को दे देने से गरीबों, मजदूरो और किसानों की ताकत कैसे बढ़ जाएगी। अभी तो सरकार एक साल की भी नहीं हुई, आखिर भूमि अधिग्रहण पर अध्यादेश लाने की क्या जरूरत पड़ गई थी। सरकार के पास बहुत सी जमीनें अभी पड़ी हैं जिसपर उद्योग धंधे लगाकर देश की गरीब जनता और किसानों के भरोसे को सरकार जीत सकती थी।
करीब एक घंटे के भाषण में प्रधानमंत्री का पूरा जोर गांव, गरीब, और किसानों पर रहा। मोदी ने सांसदों को एक तरह से निर्देश भी दिए कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में जाएं और लोगों में पैदा किये जा रहे इस भ्रम को दूर करें कि मोदी सरकार किसान विरोधी और कॉरपोरेट की समर्थक है। निश्चित तौर पर यह राहुल गांधी की किसान रैली का 'डैमेज कंट्रोल' था। लेकिन इससे एक बात साफ हो गई है कि राहुल गांधी और कांग्रेस की सक्रियता भाजपा और पीएम नरेंद्र मोदी के लिए सबसे बड़ी चिंता है।
राहुल और सोनिया के भाषणों पर गौर करें तो कांग्रेस भी इस रैली के बहाने यह बताने में पूरी तरह सफल हुई है कि केंद्र की मोदी सरकार किसान विरोधी और उद्योग जगत की प्रेमी है। आखिर पीएम मोदी को क्यों कहना पड़ा कि मोदी किसानों के भले के लिए जमीन मांग रहे हैं न कि अंबानी को देने के लिए।
पार्टी प्रवक्ता और केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद की प्रतिक्रिया पर गौर करें तो भाजपा या सरकार का विचलन साफ झलकता है। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी कह रहे हैं कि कर्ज लेकर ये चुनाव जीता है, यह लोकतंत्र का अपमान है। 30 साल बाद लोगों ने बहुमत की सरकार चुनी। राहुल गांधी को अपने बयान के लिए मोदी सरकार से माफी मांगनी चाहिए। सच बात तो यह है कि माफी तो देश की जनता से मोदी सरकार को मांगनी चाहिए। चुनाव प्रचार के वक्त तो आपने ये नहीं कहा था कि हम नया भूमि अधिग्रहण कानून लाकर आपकी जमीन लेकर उद्योगपतियों को दे देंगे। यह कदम राजनीति है, राष्ट्रनीति तो कतई नहीं।