पटेल की विरासत पर ये कैसी सियासत
इन दिनों सरदार वल्लभ भाई पटेल को लेकर जैसी रस्साकशी कांग्रेस और भाजपा में चल रही है उतनी शायद कभी भी नहीं रही । दोनों राष्ट्रीय पार्टियां यह जताने में लगी हैं जैसे सरदार साहब की विरासत सही मायने में वो ही संभाल रहीं हैं। जहां एक तरफ कांग्रेस गाहे बगाहे ये बताने से नहीं चूक रही की लौह पुरूष होते तो न आरएसएस होता औऱ न भारतीय जनता पार्टी तो वहीं भाजपा देश के प्रथम गृहमंत्री के बहाने कांग्रेस पर शब्दों की जमाखर्ची कर रही है।
नरेंद्र भाई मोदी और प्रधानमंत्री मनमोहन ने पिछले दिनों सरदार जी को लेकर जिस तरह अपने विचार रखे उससे लौह पुरूष के बारे में कम लेकिन किसके हैं पटेल इसको लेकर ज्यादा जोर आजमाइश होती देखी गई। मोदी ने कहा कि देश को हमेशा एक शिकायत रहेगी, हर भारतीय को इस बात का दर्द और अफसोस रहेगा कि सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री नहीं हुए। यदि ऐसा होता तो देश की तकदीर कुछ अलग होती, तस्वीर कुछ अलग होती।
जनता को भले इससे कोई फर्क पड़े या न पड़े लेकिन लौह पुरूष के नाम पर छिड़ी जुबानी जंग ने भारत को उस शख्स को याद करने का मौका मुहैया करा दिया है जिसने 'भारत एक गणराज्य' की नींव रखी। मोदी की इस बात के लिए तारीफ की जानी चाहिए की अपने निहित स्वार्थ के बहाने ही सही लेकिन आज की पीढ़ी को सरदार साहब को नमन करने का अवसर दिया।
सवाल ये भी है कि पटेल को अपनी पार्टी से जुड़ा बताकर गर्व की अनुभूति करने वाली कांग्रेस को आज तक इस इतिहास पुरूष के प्रति कृतज्ञता दर्शाने की याद क्यों नहीं आई? क्यों 1984 के बाद हर 31 अक्तूबर को इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि तो मनाई जाती रही अखबारों में बडे़ बडे़ सरकारी विज्ञापन तो छापे जाते रहे लेकिन भारत रतन सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती की सुगबुगाहट तक नहीं हुई? इन सब राजनीतिक बयानबाजी से एक बात तो अच्छी हुई कि हमें इतिहास के उन पन्नों को पलटने का गौरव प्राप्त हुआ जिसमें लौह पुरूष की समझ, उनके संघर्ष, त्याग और उनके दृढ़संकल्प की कहानी है।