भाजपा सांसद वरुण गांधी ने फिर दिखाए बगावती तेवर, चुनाव आयोग को बताया बिना दांत का शेर
सत्ता विमर्श ब्यूरो
हैदराबाद : भाजपा के युवा सांसद वरुण गांधी ने एक बार फिर अपनी ही पार्टी और सरकार के खिलाफ बगावती तेवर दिखलाए हैं। चुनाव आयोग की भूमिका पर सवाल उठाते हुए वरुण ने कहा कि चुनाव आयोग के साथ सबसे बड़ी समस्या है कि यह वास्तव में एक बिना दांतों वाला शेर है। वरुण ने संविधान का हवाला देते हुए कहा, 'आर्टिकल 324 के अनुसार, चुनाव आयोग का काम चुनाव कराने, चुनाव की प्रक्रिया को नियंत्रित करने का है। क्या सच में ऐसा होता है?' शुक्रवार को केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुनाव आयोग को स्वतंत्र संस्था बताया था।
नलसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ में 'भारत में राजनीतिक सुधार' विषय पर एक सेमिनार को संबोधित करते हुए वरुण ने कहा, ''चुनाव खत्म हो जाने के बाद चुनाव आयोग के पास मुकदमे दायर करने का भी अधिकार नहीं है। ऐसा करने के लिए उसे सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है।' उत्तर प्रदेश की सुल्तानपुर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद ने कहा कि समय पर चुनावी खर्च दाखिल नहीं करने को लेकर आयोग ने कभी किसी राजनीतिक पार्टी को अमान्य घोषित नहीं किया।
वरुण ने कहा, 'यूं तो सारी पार्टियां देर से रिटर्न दाखिल करती हैं, लेकिन समय पर रिटर्न दाखिल नहीं करने को लेकर सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी (एनपीपी), जो दिवंगत पीए संगमा की थी, को ही अमान्य घोषित किया गया और आयोग ने उसकी ओर से खर्च रिपोर्ट दाखिल करने के बाद उसी दिन अपने फैसले को वापस ले लिया।' उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए आयोग को आवंटित बजट 594 करोड़ रुपए था, जबकि देश में 81.4 करोड़ वोटर हैं। इसके उलट, स्वीडन में यह बजट दोगुना है जबकि वहां वोटरों की संख्या महज 70 लाख है।
वरुण ने चुनावी व्यवस्था में धनबल के अत्यधिक प्रभाव को स्वीकार करते हुए कुछ उदाहरण दिए। उन्होंने कहा कि गरीबों और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए संसद और विधानसभाओं का चुनाव लड़ना लगभग असंभव हो गया है। राजनीतिक पार्टियों की ओर से चुनाव प्रचार पर बड़ी धनराशि खर्च करने का जिक्र करते हुए भाजपा नेता ने कहा, 'तकनीकी तौर पर कोई विधायक (उम्मीदवार) 20 से 28 लाख रुपए के बीच खर्च कर सकता है और सांसद (प्रत्याशी) 54 से 70 लाख रुपए खर्च कर सकते हैं। लेकिन आपको नहीं बताया जाता कि राजनीतिक पार्टियां चुनावों पर अकूत धन खर्च करती हैं। राजनीतिक खर्च की यह व्यवस्था सुनिश्चित कर देती है कि मध्यम वर्ग या गरीब तबके का कोई व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सके।' हालांकि वरुण ने भरोसा जताया कि राजनीतिक पार्टियां धीरे-धीरे पारदर्शिता की तरफ बढ़ेंगी। इसमें पांच साल लग सकते हैं, 10 साल भी लग सकते हैं। मैं बहुत आशावादी हूं।'
वरुण गांधी का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भाजपा गुजरात विधानसभा और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के एक साथ ना कराए जाने को लेकर विपक्ष के हमले झेल रही है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि भाजपा के 'दबाव' डाले जाने के कारण आयोग ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित नहीं की। कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह चुनाव आयोग पर बेशर्मी के साथ दबाव का इस्तेमाल कर रही है ताकि वह अंतिम समय में लोक-लुभावन वादे कर गुजरात में वोटरों को आकर्षित कर सके।