केन्द्र ने SC से कहा- लोकपाल की नियुक्ति न्यायपालिका का नहीं हमारा मामला
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: एक ओर जहां उत्तराखण्ड सरकार ने लोकपाल को लेकर तत्परता दिखाई है वहीं केन्द्र ने फिलहाल लोकपाल की नियुक्ति की संभावना से इनकार कर दिया है। केन्द्र ने शीर्ष कोर्ट से कहा है कि ये मसला उनका अपना है इसमें न्यायपालिका को दखल देने से परहेज करना चाहिए। दरअसल, केन्द्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि मौजूदा समय में लोकपाल की नियुक्ति करना संभव नहीं है। शीर्ष न्यायालय लोकपाल मामले की नियुक्ति को लेकर एक एनजीओ कॉमन कॉज की याचिका पर सुनवाई पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है।
सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि वर्तमान समय में लोकसभा में विपक्ष का नेता कोई नहीं है। कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में मानने से इनकार कर दिया है। ऐसी स्थिति में लोकपाल की नियुक्ति संभव नहीं है। केंद्र ने कहा, 'कांग्रेस ने नेता विपक्ष का दर्जा मांगा था लेकिन स्पीकर ने खारिज कर दिया था। इससे पहले भी ऐसा हुआ है जब संसद में नेता विपक्ष ना हो।' हालांकि रोहतगी ने कहा कि संसद के मौजूदा सत्र में बजट सरकार की प्रथामिकता थी, लोकपाल बिल संभवत : मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है।
अपने पक्ष को मजबूत करते हुए रोहतगी ने दो टूक कहा- ये मामला न्यायपालिका में नियुक्ति का नहीं है बल्कि लोकपाल की नियुक्ति का है। केंद्र ने कहा, 'न्यायपालिका को अधिकारों के बंटवारे का सम्मान करना चाहिए और संसद को ये निर्देश जारी नहीं करने चाहिए कि लोकपाल की नियुक्ति करे। ये संसद की बुद्धिमता पर निर्भर है कि वो बिल पास करे।' गौरतलब है कि संसद में लोकपाल बिल में करीब 20 संशोधन लंबित हैं। लोकपाल बिल में 2014 में संशोधन प्रस्ताव लाया गया था लेकिन स्टैंडिंग कमेटी ने एक साल ले लिया। वहीं, याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील शांति भूषण सरकार के इस तर्क से असहमत थे।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत तैयार किए गए संशोधित नियमों के अनुसार लोकपाल के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के संबंध में एनजीओ ने याचिका डाली थी। हालांकि कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया। इसी मामले पर पहले कोर्ट कई सुनवाई में केन्द्र सरकार को फटकार चुकी है। कोर्ट ने मोदी सरकार से पूछा था कि क्या मोदी सरकार लोकपाल की नियुक्ति में अपना पूरा कार्यकाल खत्म कर देगी?
दरअसल, 1 जनवरी 2014 के दिन लोकपाल एक्ट को नोटिफाई किया गया था। नरेंद्र मोदी की सरकार की ओर से लोकपाल के लिए उपयुक्त व्यक्ति की तलाश करने वाली सर्च कमिटी में विपक्ष के नेता को सदस्य बनाने की जगह सदन की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता को जोड़ने का बदलाव अभी भी नहीं किया गया था जिस पर सरकार का तर्क था कि वो जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लेना चाहती है।
उत्तराखण्ड में लोकपाल
वहीं, उत्तराखण्ड में पारदर्शी सरकार देने के मकसद से त्रिवेन्द्र रावत सरकार ने लोकपाल विधेयक भी विधानसभा में पेश कर दिया है। लोकपाल के दायरे में राज्य के चपरासी से लेकर मुख्यमंत्री तक सभी आएंगे। लोकायुक्त में कम से कम 5 सदस्य होंगे। लोकपाल की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा चयन समिति की संस्तुति पर की जाएगी। इसके अध्यक्ष हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एवं सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश स्तर के व्यक्ति होंगे। किसी भी मामले की प्रारंभिक जांच प्रभावित न हो इसके लिए लोकपाल के पास आरोपी अफसर और कार्मिकों के तबादले करने की संस्तुति का भी अधिकार होगा।
इस लोकपाल की जद में मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, राजकीय अधिकारी-कर्मचारी, हाईकोर्ट के न्यायाधीश को छोड़कर अधीनस्थ न्यायपालिका, पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व मंत्री और सेवानिवृत्त अधिकारी और सरकारी सहायता प्राप्त करने वाली संस्थाएं लोकपाल के दायरे में आएंगे।