अलवर कांड : गौरक्षकों की गुडागर्दी पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र और 6 राज्य सरकारों से मांगा जवाब
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : गोरक्षा के नाम पर बने तमाम संगठनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग को लेकर दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार और 6 राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर तीन हफ्ते में जवाब मांगा है। केंद्र की मोदी सरकार के अलावा जिन छह राज्यों को नोटिस दिया गया है, उनमें पांच भाजपा शासित राज्य गुजरात, राजस्थान, झारखंड, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कांग्रेस शासित राज्य कर्नाटक शामिल हैं। मामले की अगली सुनवाई आगामी 3 मई को होगी।
उधर, कांग्रेस सदस्यों ने राजस्थान के अलवर में गौरक्षकों के हमले की घटना को लेकर राज्यसभा में भारी हंगामा किया और कार्यवाही बाधित करने की कोशिश की लेकिन उप सभापति पीजे कुरियन ने कार्यवाही स्थगित करने से इंकार कर दिया। सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होने पर शून्यकाल में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने इस मुद्दे को उठाया और कहा कि गुरुवार को भी कई सदस्यों ने इस मुद्दे को उठाया था लेकिन संसदीय कार्य राज्य मंत्री ने इस घटना के होने से ही इंकार कर दिया था जबकि दूसरे सदन में गृह मंत्री ने घटना की बात मानी थी।
अलवर कांड : पूरी कहानी पीड़ितों की जुबानी
इरशाद वह नजारा अब भी नहीं भूल पाता है। उसके पिता को आंखों के सामने पीट-पीटकर बेरहमी से मार दिया गया, मौत उनके भी सामने खड़ी थी और उन्हें जिंदा जलाने की तैयारी हो रही थी कि पुलिस आ गई और किसी तरह उनकी जान बची। राजस्थान में अलवर के पास बहरोड में हुए इस हमले में नूंह के पहलू खान की जान चली गई थी, उनके बेटे इरशाद और आरिफ न सिर्फ घायल हैं बल्कि लाचार और बेबस भी महसूस कर रहे हैं। एक सप्ताह बाद भी हादसे को याद कर उनकी रूह तक कांप जाती है। नूंह के इस जयसिंहपुर गांव में मातम और डर का माहौल था। मृतक पहलू खान के बूढ़े पिता हुसैन खां ने बताया कि उनके घर में चार पीढ़ी से गाय पाली जा रही हैं। आज तक उन्होंने गाय को किसी कसाई को नहीं बेचा। उन्होंने तो अपने बेटे को रमजान के दौरान बच्चों के लिए दूध का इंतजाम करने भेजा था। उसे क्या पता था कि वह बच कर ही वापिस नहीं आएगा। इरशाद बताते हैं कि वह अपने पिता पहलू खान, भाई आरिफ, गांव के दो अन्य युवक अजमत व रफीक के साथ जयपुर से दो गाय लेकर अपने घर के लिए निकले। जब वे शाम करीब 6.30 बजे बहरोड पहुंचे तो बाइक सवार सात-आठ युवकों ने उन्हें रोक लिया। वे कुछ समझ पाते, उन्हें एक-एक कर बाहर खींचकर ताबड़तोड लाठियां व हॉकी बरसाई गईं। उन्होंने अपने आंखों के सामने अपने पिता को मरते देखा। लेकिन वो चोटों के कारण जमीन पर पडे थे तथा हिल भी नहीं पा रहे थे। उन्हें पीटने वाले युवकों से वे बार-बार चिल्ला कर कह रहे थे कि वे गौ तस्कर नहीं हैं। लेकिन हमले के आगे उनकी चीख दब कर रह गई। हादसे के शिकार अजमत ने बताया कि आरोपी युवक उन्हें मारते हुए कह रहे थे कि इन्हें आग लगा दो। हम सभी लगभग बेसुध अवस्था में रोड पर पड़े थे। हमें लगने लगा था कि अब हम नहीं बचेंगे। कुछ युवकों ने हमें जलाने के लिए हमारी गाड़ी से डीजल भी निकालने की कोशिश की। लेकिन किस्मत से उसी वक्त पुलिस आ गई। पुलिस ने ही हमें अस्पताल पहुंचाया। पुलिस नहीं आती तो हमें जलाकर मार दिया जाता। इरशाद ने बताया कि वे असल में भैंस खरीदने के लिए गए थे। लेकिन ज्यादा महंगी होने के कारण उन्होंने गाय खरीद लीं। इससे उनके पास करीब 75 हजार रुपये बच गए। हादसे में उनसे वह कैश भी लूट लिया गया। (नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट्स)
याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला ने राजस्थान के अलवर इलाके में हुई एक घटना का हवाला देते हुए गोरक्षा के नाम पर दलितों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा को रोकने की मांग की थी और कहा था कि इस तरह की हिंसा करने वाले संगठनों पर उसी तरह पाबंदी लगाई जाए, जैसी सिमी जैसे संगठनों पर लगी है। मामले की पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इन सातों सरकारों से जवाब मांगा था, लेकिन जवाब दाखिल नहीं करने पर शुक्रवार को नोटिस जारी किए गए।
याचिका में अलवर की घटना पर राजस्थान सरकार के बड़े अधिकारियों से हलफनामे में रिपोर्ट देने का आदेश देने का भी आग्रह किया गया था, लेकिन कोर्ट ने इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की। याचिका में कहा गया है कि देश के कुछ राज्यों में गोरक्षा दलों को सरकारी मान्यता मिली हुई है जिसकी वजह से इनके हौसले बढ़े हुए हैं। याचिका में मांग की गई है कि इस तरह के गोरक्षक दलों की सरकारी मान्यता समाप्त की जाए।