संविधान दिवस पर न्यायपालिका और विधायिका के बीच छिड़ी जंग
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: संविधान दिवस के मौके पर न्यायपालिका और विधायिका के बीच का टकराव साफ नजर आया। ये भी स्पष्ट हो गया है कि इन दोनों स्तंभो के बीच की खाई जल्दी नहीं पटेगी, क्योंकि देश के अगले चीफ जस्टिस जगजीत सिंह खेहर भी इस मुद्दे को लेकर बेहद संजीदा हैं। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ही लोगों को राज्य की शक्तियों से बचाने का एकमात्र कवच है इस दौरान देश न्यायपालिका ही लोगों को राज्य की शक्तियों से बचाने का एकमात्र कवच है। ये कवच हटा तो अधिकार अमान्य होंगे और अराजकता हो जाएगी। ये ही लक्ष्मण रेखा है।
इससे पहले सरकार की तरफ से एटॉर्नी जनरल ने कहा था कि न्यायपालिका समेत सभी संस्थानों के लिए एक 'लक्ष्मण रेखा' है और उन्हें आत्मावलोकन के लिए तैयार रहना चाहिए। मुकुल रोहतगी की इस राय को न्यायपालिका और केंद्र की बीच जारी मौजूदा खींचतान के बीच सरकार की राय के तौर पर भी देखा जा सकता है। गौरतलब है कि इस गंभीर मुद्दे पर ऑल इंडिया कॉन्फ्रेंस ऑफ सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के कार्यक्रम में उठाया गया। इस दौरान एक बार फिर मौजूदा मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर ने हाईकोर्ट में खाली पड़े पदों पर अपनी राय जाहिर की।
जस्टिस ठाकुर ने कहा, 'हाई कोर्ट्स में जजों के 500 पद रिक्त पड़े हैं। उन्हें आज काम करना चाहिए, लेकिन वे नहीं हैं। फिलहाल देश के तमाम कोर्ट रूम खाली पड़े हैं, लेकिन जज उपलब्ध नहीं हैं। बड़ी संख्या प्रस्ताव लंबित हैं। मुझे उम्मीद है कि सरकार इस संकट को समाप्त करने के लिए प्रयास करेगी।'
सीजेआई की इस राय से असहमति जताते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि 'सुप्रीम कोर्ट इमरजेंसी वाले हालात को दोबारा न दोहराए। वहां कोर्ट फेल हुआ था। कोर्ट भले ही आदेश दे, नीतियों को ख़त्म करे ,लेकिन कार्यपालिका को वही चलाए, जिसे लोगों ने चुना है। संविधान ने लोगों को बताया कि वो कौन हैं। संविधान ने लोगों को बताया कि कैसे किसी भी शक्तिशाली नेता को कैसे हटाया जा सकता है। कोई भी लोकसभा का सदस्य बनाता है तो संविधान के तहत ही शपथ लेता है. ये लोगों को बराबरी का अधिकार देता है'।
उन्होंने बताया- सरकार ने इस साल 120 नियुक्तियां की हैं, जो 1990 के बाद से दूसरी सबसे अधिक संख्या है। 2013 में 121 जजों की नियुक्ति की गई थी। रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'मैं सम्मानपूर्वक मुख्य न्यायाधीश की राय से असहमति जताता हूं। इस साल हमने 120 अपॉइंटमेंट्स किए हैं। 1990 के बाद से यह औसत 80 का था। जजों की 5000 रिक्तियां निचली अदालतों में हैं, जिनमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है। इनमें नियुक्ति का काम न्यायपालिका को ही करना है।'
रधान न्यायाधीश ने कहा, 'न्यायाधिकरणों की स्थिति मुझे आभास दिलाती है कि आप (न्यायाधिकरण) भी बेहतर नहीं हैं। आप भी मानवशक्ति की कमी की समस्या से जूझ रहे हैं। आप न्यायाधिकरण की स्थापना नहीं कर सकते, आप कई स्थानों पर इसकी पीठ गठित नहीं कर सकते, क्योंकि आपके पास सदस्य ही नहीं हैं।'
न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा, 'यदि इस न्यायाधिकरण की क्षमता 65 है और यदि आपके यहां 18 या 20 रिक्तियां हैं, तो इसका मतलब यह हुआ कि आपके पास काफी संख्या में कमी है। इससे कार्य प्रभावित होना ही है और इसी वजह से आपके यहां पांच और सात साल पुराने मामले भी हैं। कम से काम आप (सरकार) यह तो सुनिश्चित कीजिए कि ये न्यायाधिकरण पूरी क्षमता से काम करें।'
प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि न्यायाधिकरण पूरी तरह सुसज्जित नहीं है और वे खाली पड़े हैं और आज स्थिति यह हो गयी है कि सुप्रीम कोर्ट का कोई भी सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायाधिकरण की अध्यक्षता नहीं करना चाहता। मुझे अपने सेवानिवृत्त सहयोगियों को वहां भेजने में कष्ट होता है।' उन्होंने कहा, 'सरकार उचित सुविधायें मुहैया कराने के लिए तैयार नहीं है। रिक्तियों के अलावा न्यायाधिकरणों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी चिंता का विषय है।'
न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा, 'विभिन्न न्यायाधिकरणों में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति संबंधी नियमों में संशोधन की आवश्यकता है ताकि उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश भी इन पदों के योग्य हो सकें।'