जजों की नियुक्ति के तरीके से खुश नहीं सरकार
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में जजों की नियुक्ति के तरीके को लेकर सरकार काफी गंभीर दिख रही है। सरकार बरसों से चले आ रहे कॉलेजियम सिस्टम के पक्ष में नहीं है। इस सिस्टम को रद्द करने के मुद्दे पर केंद्र सरकार ने सोमवार को देश के पूर्व चीफ जस्टिसों और नामचीन न्यायविदों की राय ली।
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बताया कि बैठक में मौजूद ज्यादातर लोग कॉलेजियम सिस्टम को बदलने के पक्ष में थे। इसमें क्या बदलाव हो और नया सिस्टम कैसा हो, इस पर बहस अभी पूरी नहीं हुई है।
रोहतगी ने कहा कि सरकार का अगला कदम क्या होगा, यह कानून मंत्री तय करेंगे। मुमकिन है कि विचार विमर्श आगे भी जारी रहे। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि इस बात पर आम सहमति थी कि सिस्टम में सुधार करके इसे पारदर्शी बनाया जाए।
जजों की नियुक्ति को लेकर समय-समय पर होने वाले विवाद को देखते हुए सरकार मौजूदा कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करके जुडिशल अपॉइंटमेंट कमिशन बनाना चाहती है। पहले सरकार जजों की नियुक्ति करती थी, लेकिन 1993 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद कॉलेजियम सिस्टम शुरू किया गया। इसमें जजों की नियुक्ति का फैसला सिर्फ जज ही करते हैं।
पिछले कुछ समय में कॉलेजियम के कुछ फैसलों पर सवाल खड़े हुए हैं। इसके मद्देनजर सरकार संविधान संशोधन विधेयक के जरिए कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने की तैयारी में है। नए सिस्टम के तहत जजों की नियुक्ति में जजों के साथ साथ सरकार की भी भूमिका रहेगी। सूत्रों का कहना है कि पूर्व यूपीए सरकार ने इस कमिशन के कामकाज और गठन का जो खाका खींचा था, मोदी सरकार उसके खिलाफ नहीं है।