बागी यशवंत सिन्हा ने मोदी सरकार को बताया असहाय
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के बागी और वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने एक बार फिर अपनी पार्टी की सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। उन्होंने बीते चार सालों का निचोड़- विफल सरकार बताया है। यशवंत सिन्हा ने अपने पार्टी के मित्रों के नाम खुला खत लिखा है। ये चिट्ठी अंग्रेजी दैनिक इंडियन एक्सप्रैस में छपी है। शीर्षक है-'Dear Friend, speak up'। सिन्हा ने अपने साथियों को ललकारा है और चुनौती भरे अंदाज में उन्हें वर्तमान सरकार की ज्यादतियों के खिलाफ उठ खड़ा होने को कहा है। उन्होंने सरकार की नीतियों पर प्रहार किया है और मोदी सरकार को असहाय करार दिया है।
यशवंत की पूरी चिट्ठी-
2014 के चुनाव में जीत के लिए पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मेहनत की थी। हम में से कुछ 2004 से ही तत्कालीन यूपीए सरकार के राज से संसद में, संसद के बाहर संघर्ष कर रहे थे। जबकि कुछ अपने राज्यों में बैठे मलाईदार पदों का लुत्फ उठा रहे थे। 2014 की नतीजों से हम बेहद खुश थे। हमें उम्मीद थी की ये अप्रत्याशित जीत देश में एक गौरवशाली इतिहास की रचना करेगी। हमने प्रधानमंत्री और उनकी टीम पर पूरे दम खम के साथ विश्वास जताया। सरकार अब चार साल पूरे कर चुकी है, पांच बजट पेश कर चुकी है और उन सभी अवसरों का लाभ उठा चुकी है जिससे नतीजे आ सकते थे। लेकिन इन सबके अंत में ऐसा लगता है कि हम लोगों का विश्वास खो चुके हैं।
भारत के दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था के सरकार के दावे के बावजूद आर्थिक हालात चिंताजनक हैं। तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था में इस तरह से गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) एकत्र नहीं होती हैं, जिस तरह से पिछले चार साल में एकत्र हुई हैं। ऐसी अर्थव्यवस्था में किसानों की हालत खराब नहीं होती है, युवक बेरोजगार नहीं होते, छोटे व्यापार का खात्मा नहीं होता और बचतों एवं निवेश में इस तरह गिरावट नहीं होती, जिस तरह पिछले चार सालों में देखने को मिली है। भ्रष्टाचार एक बार फिर से सिर उठाने लगा है। कई बैंक घोटाले सामने आए हैं और घोटाला करने वाले देश से बाहर भागने में कामयाब रहे हैं और सरकार असहाय सी देखते रह गई है।
महिलाएं आज जिस कदर असुरक्षित हैं, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। बलात्कार के मामले बढ़े हैं और बलात्कारियों पर सख्त कार्रवाई करने के बजाय हम उनसे क्षमा मांगते हुए दिखते हैं। कई मामलों में हमारे अपने लोग इस घृणित कृत्य में शामिल हैं। अल्पसंख्यकों में अलगाववाद बढ़ा है। इससे भी बदतर यह है कि समाज के सबसे कमजोर एससी/एसटी तबके के खिलाफ अत्याचार और असमानता इस दौर में सबसे ज्यादा देखने को मिल रही है और इन लोगों को संविधान द्वारा प्रदत्त सुरक्षा एवं सुविधा की गारंटी खतरे में दिखाई देती है।
सरकार की विदेश नीति पर यदि नजर डाली जाए तो प्रधानमंत्री के लगातार विदेशी दौरों और विदेशी राजनेताओं के साथ गले लगने की तस्वीरें ही दिखती हैं। भले ही वह इसे पसंद या नापसंद करते हों। इनसे असल में कुछ हासिल होता नहीं दिखता। हमारे पड़ोसियों के साथ रिश्ते मधुर नहीं हैं। चीन क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाता जा रहा है और हमारे हित प्रभावित हो रहे हैं। पाकिस्तान में हमारे बहादुर जवानों ने शानदार तरीके से सर्जिकल स्ट्राइक किया लेकिन उसका कोई प्रतिफल नहीं मिला। पाकिस्तान उसी तरह से आतंक फैला रहा है। जम्मू-कश्मीर सुलग रहा है। नक्सलवाद को अभी भी दबाया नहीं जा सका है और आम आदमी पहले से ज्यादा त्रस्त है।
पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र पूरी तरह से खत्म हो गया है। मित्रों ने मुझे बताया कि यहां तक कि पार्टी की संसदीय दल की बैठकों में भी उनको अपने विचार रखने का मौका नहीं मिलता। पार्टी की अन्य बैठकों में भी केवल एकतरफा संवाद होता है। वे बोलते हैं और आप सुनते हैं। प्रधानमंत्री के पास आपके लिए समय ही नहीं है। पार्टी हेडक्वार्टर कॉरपोरेट ऑफिस हो गया है और वहां पर सीईओ से मिलना नामुमकिन सा है।
पिछले चार वर्षों में सबसे बड़ा खतरा हमारे लोकतंत्र के लिए उपस्थित हुआ है। लोकतांत्रिक संस्थाओं का क्षरण हुआ है। संसद की कार्यवाही हास्यास्पद स्तर पर पहुंच गई है। संसद का बजट सत्र जब बाधित हो रहा था तो प्रधानमंत्री ने उस दौरान इसको सुचारू रूप से चलाने के लिए विपक्षी नेताओं के साथ एक भी बैठक नहीं की। उसके बाद दूसरों पर इसका ठीकरा फोड़ने के लिए उपवास पर बैठ गए।।।यदि इसकी तुलना अटल बिहारी वाजपेयी के दौर से की जाए तो उस दौरान हम लोगों को स्पष्ट निर्देश था कि विपक्ष के साथ सामंजस्य बनाकर सदन को सुचारू ढंग से चलाया जाना चाहिए। इसलिए जैसा भी चाहता था, उन नियमों के अधीन स्थगन प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव पेश होते थे और अन्य चर्चाएं होती थीं।
सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस वार्ता हमारे लोकतांत्रिक इतिहास में एक अप्रत्याशित घटना है। ये बताता है कि कैसे हमारे सबसे उच्च न्यायिक संस्था में सड़ांध पैदा हो गई है। इन जजों ने लगातार कहा कि हमारे देश का लोकतंत्र खतरे में है।
आज, ऐसा लग रहा है जैसे हम संचार के साधनों- खासकर मीडिया और सोशल मीडिया को नियंत्रित करके चुनावों में जीत हासिल कर रहें हैं। ऐसा लग रहा है मानो यही हमारा उद्देश्य है, अब तो इस पर भी खतरा मंडरा रहा है। मैं नहीं जानता कि आपमें से कितनों को अगले लोकसभा चुनावों के लिए टिकट मिलेगा लेकिन अगर पिछले दौर को एक मार्गदर्शक के तौर पर मानें तो आप में से आधे इससे चूक जायेंगे। अगर आपको टिकट मिल भी जाता है तो आपकी जीत की उम्मीद कम ही रहेगी। पिछले चुनावों में भाजपा को 31 फीसदी वोट मिले थे विपक्ष को 69 फीसदी। यानी अगर विपक्ष जुट गया तो आप कहीं ठहर नहीं पायेंगे।
आज की परिस्थिति की मांग है कि आप देशहित में बोलें। यह खुशी की बात है कि पांच दलित सांसदों ने अपनी आवाज उठाई है।।।मैं आपसे आग्रह करता हूं कि आप अपने मालिकों के सामने देश को नुकसान पहुंचाने वाले मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखें। यदि अब आप खामोश रहेंगे तो इस राष्ट्र की आगे आने वाली पीढ़ियां आपको माफ नहीं करेंगी। ये आपका हक है कि आप जो सरकार चला रहें हैं और देश की गरिमा को गिरा रहें हैं उनसे जवाब मांगें। देश हित पार्टी हित से बड़ा है, ठीक वैसे ही जैसे किसी एक शख्स के हित से बड़ी पार्टी होती है। मैं खासकर आडवाणी जी और जोशीजी से प्रार्थना करूंगा कि देश हित में कोई स्टैंड लें। यह सुनिश्चित करें कि जिन मूल्यों को बनाए रखने के लिए अद्वितीय बलिदान दिए गए हैं वह सुरक्षित रहें।
मैं मानता हूं कि इस बीच कुछ छोटी उपलब्धियां भी रहीं हैं। लेकिन बड़ी विफलता ने इसे ढक लिया है। मुझे उम्मीद है कि इस खत में उठाए मुद्दों पर आप गंभीर चिंतन करेंगे। कृपया हिम्मत दिखाएं, खुलकर बोलें तथा इस देश और इसके लोकतंत्र को बचाएं।