भारत और चीन दो सभ्यतागत पड़ोसी : मनमोहन
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस समय ब्रुनेई और इंडोनेशिया की यात्रा पर हैं। जब वे इंडोनेशिया पहुंचे तो वहां के कोम्पास समाचार पत्र को एक लंबा साक्षात्कार दिया। अपने साक्षात्कार में प्रधानमंत्री ने भारत और इंडोनेशिया के बीच पुरानी सभ्यता से चले आ रहे संबंधों के साथ-साथ रणनीतिक साझेदारी की भी बात की। प्रधानमंत्री ने चीन पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत और चीन दो सभ्यतागत पड़ोसी हैं। हमारे बीच मतभेद हैं, लेकिन हमने लगातार एक परिपक्व और पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों का निर्माण किया है। हमने अपनी सीमाओं पर शांति और सौहार्द बनाए रखा है। पत्र सूचना कार्यालय के सौजन्य से इस साक्षात्कार के कुछ प्रमुख अंशों को हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं।
सवाल : भारत और इंडोनेशिया के बीच पुरानी सभ्यता से संबंध चले आ रहे हैं और हम रणनीतिक साझेदार भी हैं। आपकी इस यात्रा से इंडोनेशिया को क्या मुख्य उम्मीदें हैं?
जवाब : हम इंडोनेशिया को अपने पड़ोस में सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी और भारत की पूर्व की ओर देखो नीति के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में मानते हैं। हमारे दोनों देश दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले देशों में भी शामिल हैं। हम दोनों बहुलवादी लोकतंत्र हैं जिनके समुद्री सुरक्षा और शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध एशिया के उद्भव सहित अनेक साझा हित हैं। हमारे सभ्यतागत संबंधों पर आधारित जो सिर्फ कला और संस्कृति का ही संगम नहीं है, बल्कि विचारों, मूल्यों और सामाजिक लोकाचार का एक संगम है, इसमें व्यापार और निवेश सहित अनेक व्यापक क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। रामायण और महाभारत, प्राचीन मंदिरों और स्तूप की वास्तुकला, डिजाइन और हथकरघा वस्त्रों की रूपांकनों में समानता, बुजुर्गों और बुद्धिमानों के लिए सम्मान, सब हमारी साझा विरासत हैं। हमारे दोनों देशों के नेताओं ने भी हमारे अपने स्वतंत्रता संघर्ष, एफ्रो एशियाई एकजुटता के दौरान अपने अनुभवों को साझा किया है और गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया है। हमारे संबंध आज मजबूत, बहुआयामी सामरिक साझेदारी के रूप में निखरे हैं। हम संयुक्त राष्ट्र, गुटनिरपेक्ष आंदोलन, जी-20, ईएएस और अन्य आसियान तंत्र, आईओआर - एआरसी तथा विश्व व्यापार संगठन जैसे क्षेत्रीय, बहुपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मिलकर काम करते हैं। 2011 में राष्ट्रपति युधोयोनो की भारत यात्रा से हमारे संबंधों को अधिक गति मिली। मैं अपनी यात्रा से मजबूत और प्रगाढ़ सामरिक संबंधों, व्यापार और निवेश संबंधों को मजबूत बनाने और लोगों से लोगों के बीच संबंधों को व्यापक बनाने की उम्मीद कर रहा हूं।
सवाल : भारत और इंडोनेशिया के बीच व्यापार 20 अरब डॉलर का है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के संदर्भ में आप क्या सोचते हैं कि हमारे देशों के बीच व्यापार/निवेश संबंधों पर कैसे सुधार किया जा सकता है? एक उपयोगी भारत-इंडोनेशिया भागीदारी के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र कौन से हैं?
जवाब : द्विपक्षीय व्यापार में रुझान सकारात्मक हैं, हालांकि वैश्विक वित्तीय स्थिति के कारण व्यापार में 2012-13 में मामूली गिरावट देखी गई और 20 अरब डॉलर का हुआ। हमें 2015 तक 25 अरब अमरीकी डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को हासिल करने का पूरा भरोसा है। हमें विश्वास है कि हमारी क्षमता इससे बहुत अधिक है। हमें अपने व्यापार में विविधता लानी चाहिए, व्यापार और निवेश करने के लिए बाधाओं को सुलझाने और दोनों दिशाओं में निवेश के उच्च प्रवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए। द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) से पर दोनों पक्षों के लिए द्वार खुलेंगे और वृद्धि को मजबूत प्रोत्साहन मिलेगा। आसियान भारत सेवाओं और निवेश समझौते पर शीघ्र हस्ताक्षर करने, 2015 के अंत तक क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी पर वार्ता (आरसीइपी) और आसियान आर्थिक समुदाय के रूप में उभरने से भी इंडोनेशिया के साथ हमारे व्यापार एवं निवेश संबंधों पर सकारात्मक असर होगा। इंडोनेशिया से हमारा आयात बड़े पैमाने पर होता रहा है जो विविधतापूर्ण चाहिए। भारत कृषि उत्पाद, ऑटोमोबाइल घटकों, इंजीनियरिंग सामान, आईटी, फार्मा, मांस और मांस उत्पादों तथा जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों सहित माल की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकता है।
सवाल : आपकी यात्रा के दौरान कौन से मुख्य करारों/समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर होने जा रहे हैं?
जवाब : दोनों पक्षों ने अनेक समझौता ज्ञापन तैयार किए हैं। उनमें से कुछ सरकारी मंत्रालयों और एजेंसियों के बीच हैं और अन्य शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों के बीच हैं। ये हमारे संबंध के बहुआयामी चरित्र को प्रतिबिंबित करेंगे।
सवाल : आसियान समुदाय 2015 में अस्तित्व में आ जाएगा। भारत ने दिसंबर, 2012 में भारत आसियान स्मारक शिखर सम्मेलन की सफल मेजबानी की। आप आसियान समुदाय में भारत की क्या भूमिका देखते हैं?
जवाब : मैं ब्रुनेई से सीधे जकार्ता आ रहा हूं जहां हमने 11वां आसियान भारत शिखर सम्मेलन आयोजित किया। मैंने कई अवसरों पर कहा है कि आसियान के साथ हमारे संबंध हमारी पूर्व की ओर देखो नीति पर आधारित हैं। हम आसियान सहयोग और एकीकरण में प्रगति और व्यापक क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण की कोशिश में आसियान नेतृत्व की प्रशंसा करते हैं। हमें दृढ़ विश्वास है कि इस प्रक्रिया में आसियान की केन्द्रीयता सहकारी, नियम आधारित खुली और समावेशी क्षेत्रीय संरचना के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। हम आसियान और आसियान केंद्रित प्रक्रियाओं में इंडोनेशिया के नेतृत्व की भूमिका को महत्व देते हैं। हम पिछले साल दिसंबर में नई दिल्ली में आयोजित स्मारक शिखर सम्मेलन के दौरान अपने संबंधों को सामरिक भागीदारी के स्तर तक लाए। आसियान के साथ हमारे संबंधों में राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक और सामाजिक, सांस्कृतिक सहयोग के व्यापक क्षेत्र शामिल हैं।
हम 2015 तक आसियान समुदाय के विकास की बेसब्री से उम्मीद कर रहे हैं और हर संभव सहायता देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा ध्यान क्षमता निर्माण पर और कनेक्टिविटी पर रहा है। हमने कई उद्यमिता विकास केंद्र, अंग्रेजी भाषा प्रशिक्षण के लिए केंद्र और सीएलएमवी देशों में आइटी केंद्र और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना की है। हम आसियान देशों को 1000 से अधिक छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं। हम भारत और आसियान को और करीब लाने के लिए भारत - म्यांमार- थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग के निर्माण की अपनी पहल के जरिए और कनेक्टिविटी पर आसियान मास्टर प्लान को समर्थन दे के लिए सक्रिय रूप से भौतिक और संस्थागत कनेक्टिविटी की पहल में लगे हुए हैं।
सवाल : चीन एशिया प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख भागीदार बन गया है। इस संदर्भ में आप एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका को कैसे देखते हैं? एशिया प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय विवादों, सीमा मुद्दों और जापान एवं चीन और भारत एवं चीन के बीच अन्य मुद्दों के बीच कैसे मजबूत संबंध बन सकता है?
जवाब : भारत और चीन दो सभ्यतागत पड़ोसी हैं। आर्थिक सहयोग हमारे संबंधों का बहुत महत्वपूर्ण भाग है और यह हमारी दो अर्थव्यवस्थाओं की विकास क्षमता को अधिक से अधिक सहयोग के लिए इंजन प्रदान कर सकता है और यह एशिया और उससे परे भी समृद्धि में योगदान कर सकता है। हमारे बीच मतभेद हैं लेकिन हमने लगातार एक परिपक्व और पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों का निर्माण किया है। हमने अपनी सीमाओं पर शांति और सौहार्द बनाए रखा है। हमने क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग किया है। मैं मानता हूं कि आज दुनिया में अपनी जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सभी पक्षों से सहकारी प्रयासों के लिए पर्याप्त जगह है। इस सदी में, जब वैश्विक और अंतर-निर्भरता क्षेत्रीय निर्भरता तेजी से बढ़ रही हैं तब सभी देशों की शांति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए सहयोग, परामर्श और समन्वय, शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए मतभेद की अंतरराष्ट्रीय कानून और संकल्प के रूप में भी सम्मान अपरिहार्य हैं। क्षेत्रीय मंचा इस प्रक्रिया में उपयोगी भूमिका निभा सकते हैं। इसलिए हम पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन, आसियान क्षेत्रीय मंच, एडीएमएम $ और क्षेत्र में अन्य सहकारी व्यवस्थाओं कोबहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी भी हमारे क्षेत्र के लिए प्रमुख पहल है।
सवाल : भारतीय अर्थव्यवस्था उच्च वृद्धि दर से नीचे आ रही है। ज्यादातर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करने वाली वैश्विक मंदी के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था के सुस्त प्रदर्शन के लिए कौन से मुख्य कारण हैं?
जवाब : आप पिछले साल के आर्थिक प्रदर्शन को एक तरफ रख दें, तो पिछले नौ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था प्रतिवर्ष लगभग 8 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से बढ़ी है। यह किसी भी पिछले एक दशक में भारत द्वारा हासिल की गई उच्चतम वृद्धि दर है। पिछले साल हमारी वृद्धि दर यूरो क्षेत्र और अमरीका एवं जापान में धीमी गति से वृद्धि सहित, आंशिक रूप क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण घटकर 5 प्रतिशत पर आ गई है। भारत अपनी तेल की आवश्यकता का करीब 80 प्रतिशत आयात करता है और तेल की बढ़ती कीमतों एवं निर्यात घटने ने हमारे व्यापार संतुलन को चोट पहुँचाई है। भारत में कुछ आपूर्ति संबंधी बाधाएं भी हैं जिनसे हम नीति और प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से निपट रहे हैं।
हालांकि, हमारे आर्थिक बुनियादी कारक मजबूत बने हुए हैं। हमारी बचत और निवेश दर अब भी सकल घरेलू उत्पाद के 30 प्रतिशत से अधिक है। अपने पूंजी उत्पादन अनुपात को देखते हुए हम मध्यम अवधि में प्रति वर्ष 8 प्रतिशत की वृद्धि दर को बहाल कर सकते हैं। हमने घरेलू निवेश को बढ़ावा देने के लिए और अधिक विदेशी निवेश को आकर्षित करने, वित्तीय क्षेत्र को मजबूत बनाने तथा कर व्यवस्था में सुधार लाने एवं उसे सरल करने के लिए अनेक उपाय किए हैं। हमने अपनी आबादी के कमजोर वर्गों के लिए पात्रता कार्यक्रमों की एक विस्तृत रेंज शुरू की है जिसके लिए सरकार के विशेष ध्यान की जरूरत है। हम राजकोषीय और चालू खाता घाटे से उद्देश्यपूर्ण ढंग से निपट रहे हैं। इसके साथ ही, हम अपनी उदार व्यापार व्यवस्था बनाए रखेंगे। मुझे विश्वास है कि इन उपायों का असर जल्द दिखाई देगा।
सवाल : भारतीय रुपये में तेज गिरावट चिंता का विषय रहा है। इंडोनेशियाई रुपया भी गिरा है। हमें कौन सी सावधानियों/उपायों की जरूरत है जो विकासशील देश मुद्रा में स्थिरता लाने के लिए कर सकते हैं?
जवाब : उभरती अर्थव्यवस्थाएं लंबे समय से वैश्विक आर्थिक संकट और इसके पटरी पर आने की गति असमान एवं अनिश्चित रहने से प्रभावित हुई हैं। हमारे निर्यात में और निवेश की आवक में मंदी ने वृद्धि और भुगतान संतुलन को प्रभावित किया है। भारत और इंडोनेशिया जी-20 के हिस्सा हैं। नीतियों पर अंतरराष्ट्रीय समन्वय और संचार बढ़ाने की जरूरत पर सितंबर में सेंट पीटर्सबर्ग में जी-20 शिखर सम्मेलन में बल दिया गया था। निरंतर वैश्विक आर्थिक सुधार से उभरती अर्थव्यवस्थाओं को फायदा होगा। हालांकि, हम में से प्रत्येक को भी, आर्थिक विकास में तेजी लाने के लिए विदेशी निवेश आकर्षित करने और निर्यात को बढ़ावा देने, मुद्रा अवमूल्यन से उत्पन्न प्रतिस्पर्धा से लाभ उठाने सहित उपयुक्त राष्ट्रीय कदम उठाने की जरूरत है।
सवाल : भारत और इंडोनेशिया में 2014 के चुनावों के लिए कमर कस रहे हैं। वे कौन से मुख्य मद्दें हैं जो भारत में मतदाताओं को प्रभावित करेंगे?
जवाब : हम दोनों ही मजबूत लोकतंत्र हैं और चुनाव दोनों के जीवन का एक हिस्सा है। आज के भारत में करीब 800 मिलियन मतदाताओं शिक्षित है और राजनीतिक रूप से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। कई युवा हैं और ऊर्जा से भरपूर हैं, उद्यमी और महत्वाकांक्षा से भरे हुए हैं। उन्हें अवसरों, रोजगार, शिक्षा, कौशल विकास, भोजन और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच के जरिए अपने और अपने बच्चों के लिए बेहतर जीवन की तलाश है। ये सभी मुद्दे आने वाले चुनावों में छाए रहने की उम्मीद है।