रोजगार को लेकर झूठ फैलाया जा रहा है : नरेंद्र मोदी
अंग्रेजी न्यूज चैनल टाइम्स नाउ को दिए साक्षात्कार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात के संकेत दिए हैं कि आने वाला बजट लोकलुभावन यानी चुनावी बजट के रूप में नहीं होगा। उन्होंने कहा, यह एक मिथक है कि आम आदमी सरकार से मुफ्त की चीजों और रियायतों की उम्मीद रखता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार सुधार के एजेंडे पर लगातार आगे बढ़ती रहेगी। वह भारत को दुनिया की पांच नाजुक अर्थव्यवस्थाओं से निकालकर निवेश की चमकदार जगह में तब्दील कर देगी।
पीएम ने बेरोजगारी के मुद्दे पर हो रही आलोचनाओं को भी खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, रोजगार को लेकर झूठ फैलाया जा रहा है। उनकी सरकार की नीति रोजगार पैदा करने वाली रही हैं। पीएम ने कहा, संगठित क्षेत्र 10 फीसदी रोजगार देता है। शेष 90 फीसदी रोजगार असंगठित क्षेत्र से आता है। पिछले एक साल में 18 से 25 साल की आयु के युवाओं के 70 लाख नए रिटायरमेंट फंड या ईपीएफ खाते खोले गए हैं। क्या यह नए रोजगार को नहीं दर्शाता। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का कोई आंकड़ा नहीं है।
टाइम्स नाउ : आप अपने 3.5 साल के कार्यकाल को कैसे देखते हैं, कितना किया है, क्या हुआ है और क्या बचा है?
पीएम मोदी : काम का मूल्यांकन मेरे बजाए देश की जनता करे तो अच्छा। देश में जो बार-बार चुनाव आते हैं वो कसौटी मानी जाती है। अगर उसे कसौटी मानते हैं तो हम इसमें डिस्टिंक्शन से भी अच्छी स्थिति से बाहर निकले हैं। दुनिया भारत को एक ब्राइट स्पॉट कह रही है। यूपीए की सरकार के 10 साल और हमारे साढ़े तीन साल का जो समय बीता है उसका तुलनात्मक ब्योरा देश के सामने आना चाहिए। पहले घोटाले की खबरें आती थी। हर बार ये खबरें आती थी कि कितना गया। लेकिन 3.5 साल से खबर आ रही है इतना आया इतना आया। सही दिशा में जा रहे हैं। हमारी गति लगातार बढ़ रही है। हमारी सरकार देश के सामान्य मानवीय आशाओं को पूरा कर रही हैं।
विकास दर के मुद्दे पर मोदी ने कहा, 'राजनीति में बात का बवंडर बनाया जाता है। साढ़े तीन साल से ऐसी सरकार चला रहे हैं, जिस पर कोई गंभीर आरोप नहीं है। कोई ऐसी बड़ी घटना नहीं है, जिससे सरकार संकट में आ जाए। आरोप लगाने वालों के लिए चिंता का विषय है कि सरकार के खिलाफ आरोप का क्या करें। 2013-14 में भारत का नाम फ्रेजाइल-5 में था। ये एक डूबती नैया था। तीन साल के भीतर फ्रेजाइल-5 से निकलकर चमकता सितारा के तौर पर भारत की अर्थनीति को देखा जा रहा है। ये बड़ी बात है। हमारे पहले की सरकार में महंगाई दर 10 फीसदी से भी ज्यादा थी। हम 3 साल का एवरेज निकालें तो महंगाई 3 प्रतिशत पर लाए हैं। अभी ये 5 फीसदी है। एफडीआई 30 अरब डॉलर से 62 अरब डॉलर हुई है, जो कि एक बड़ा उछाल है। पहले 4.5 फीसदी से भी ज्यादा पर फिस्कल डेफिसिट चल रहा था। हमने उसको 3.5 फीसदी पर लाकर खड़ा किया। करेंट अकाउंट डेफिसिट जीडीपी की तुलना में 4 फीसदी थी। आज हमने उसको 1 और 2 फीसदी पर लाकर खड़ा कर दिया है। आने वाले दिनों में भारत की विकास दर बढ़ेगी।
टाइम्स नाउ : दावोस में भारत की किस ग्रोथ स्टोरी का किस्सा लेकर जाएंगे?
पीएम मोदी : भारत ने अपनी आर्थिक ताकत दुनिया के सामने मजबूती से पेश की है। दुनिया भारत को सीधे जानना चाहती है। 3.5 साल के भीतर भारत का टर्नअराउंड 125 करोड़ देशवासियों के पुरुषार्थ का परिणाम है। मेरा काम मेरे 125 करोड़ देशवासियों के पराक्रम की गाथा दुनिया को सुनाना है। मैं दावोस का भरपूर फायदा उठाउंगा कि विश्व भारत को सही रूप में देखे। भारत के अवसरों को वो भी इस्तेमाल करे।
टाइम्स नाउ : 1991 से आज तक किसी और प्रधानमंत्री को दावोस में ये स्टेज नहीं मिला। अब ऐसा क्यों हुआ?
पीएम मोदी : भारत विश्व में आकर्षण का केंद्र 125 करोड़ देशवासियों के कारण बना है। विश्व में भी बदलाव आया है। 125 करोड़ में देश में बढ़ता हुआ मिडिल क्लास हो, 80 करोड़ लोग 35 साल से कम उम्र के हों, इनके साथ डेमोक्रेसी हो तो विश्व का इन सबके प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम ये मौका जाने न दें।
टाइम्स नाउ : 2017 में आईएमफ ने भारत की तारीफ की। हमारे घरेलू लोग जीएसटी और नोटबंदी से संतुष्ट क्यों नहीं है?
पीएम मोदी : आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक, मूडीज, क्रेडिट एजेंसी भारत के कदमों की तारीफ करे ये अच्छी बात है। मेरे लिए मेरे देशवासियों का सर्टिफिकेट सबसे बड़ा सर्टिफिकेट है। मेरे कदमों को देशवासियों ने हर मोड़ पर सराहा है। वही मेरी सबसे बड़ी पूंजी है। सोने का ढोंग करने वाले को जगाना मुश्किल होता है। नोटबंदी एक नोट गई और दूसरी नोट आई यहां तक सीमित नहीं है। अगर भारतीय होने के नाते हम दुनिया को ये बताते कि इतना बड़ा देश होने के बाद भी रातों-रात 86 फीसदी करेंसी बदलने का फैसला होता है और लागू हो जाता है। लोगों ने आग लगाने और दंगे हो जाएं ऐसे प्रयास किए थे। सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे खटखटाए थे क्या कुछ नहीं किया था। इतने कदम उठाने के पीछे बेईमानों को बचाने की कोशिश थी। देश हमारे साथ खड़ा रहा। दुनिया के छोटे देश भी ऐसे प्रयोग करने निकले पर उनको वापिस लौटना पड़ा। ये विश्व के सामने भारत का आदर बढ़ाने वाला कदम है। राजनैतिक विरोध होने के बाद भी ये लाभ लेना चाहिए था लेकिन कुछ लोग नहीं ले पाए।
टाइम्स नाउ : वर्ल्ड बैंक के मुताबिक अपने पिछले स्थान से 30 स्थान आगे बढ़कर भारत 'ईज ऑफ बिजनेस डुइंग' में 100 बेहतरीन डेस्टिनेशंस में शामिल हो गया है, लेकिन लोग 'ईज ऑफ लिविंग' को लेकर भी सवाल करते हैं। ये कब संभव हो पाएगा?
पीएम मोदी : ईज ऑफ डुइंग बिजनेस में हमारे आने के बाद 30 नहीं 42 स्थान आगे बढ़े हैं। ये अपने आप में एक बहुत बड़ा काम है। ग्लोबल स्टैंडर्ड के साथ पॉलिसी बनानी होती है। ये हवाबाजी से नहीं आता है। हमने 1400 से ज्यादा कानून तीन साल में खत्म किए हैं। इन कानूनों के जंगल से आम आदमी को मुक्ति दिलाना बहुत बड़ा काम है। भारत जैसे देश में अल्टीमेट गोल होना चाहिए ईज ऑफ लिविंग। मेरा पूरा फोकस इस बात में है कि सामान्य व्यक्ति को सिस्टम से जो जूझना पड़ता है, वो बंद होना चाहिए। इस देश का गरीब सरकार को झोपड़ी से बंगला बनाने के लिए नहीं कहता है। ईज ऑफ लिविंग के लिए प्रयास करने चाहिए। मैं कर रहा हूं। लकड़ी से खाना बनाने वाली महिलाओं के लिए मैंने ये काम किया है। 3 करोड़ 30 लाख महिलाओं को गैस कनेक्शन दे दिया। पांच करोड़ का टारगेट समय से पहले पूरा कर दूंगा।
टाइम्स नाउ : कई लोग आलोचना कर रहे हैं। जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बता रहे हैं। जॉब नहीं आ रही हैं। किसान मरा जा रहा है।
पीएम मोदी : जीएसटी वन नेशन वन टैक्स हमारी कोशिश है इसी दिशा में जाने की। जीएसटी को तात्विक रूप से सब स्वीकारते हैं। जीएसटी अगर सफल है तो भी सबका है विफल है तो भी सबका है। जीएसटी किसी एक सरकार का काम नहीं है। संसद ने 7 साल की बहस कर इसे पारित किया है। एक मंथन से निकला हुआ जीएसटी है। जिन लोगों ने इसे पारित किया है अगर आज वो ही लोग जीएसटी के खिलाफ भद्दे शब्दों का प्रयोग करते हैं तो वो उस संसद की पवित्रता का अपमान करते हैं। संसद की सामूहिक शक्ति का अपमान करते हैं। लोकतंत्र के मंदिर का अपमान करते हैं। ये शोभा नहीं देता। सभी दलों ने मिलकर, संसद ने मिलकर जीएसटी काउंसिल बनाई है। जीएसटी काउंसिल में जितना वेटेज पुडुचेरी का है उतना ही वेटेज भारत सरकार का है। जीएसटी काउंसिल में 33 घटक बराबर हैं। जीएसटी में सभी फैसले सर्वसम्मति से हुए हैं। एक बार भी वोटिंग की नौबत नहीं आई है। जिस निर्णय में आपकी पार्टी के लोग भी हैं। अंदर तो बड़े प्यार से हंसते खेलते निर्णय होते हैं और बाहर आकर के गुस्सा दिखाते हो। आक्रोश दिखाते हो। जीएसटी में 33 घटकों ने फैसले किए हैं उनमें हम सिर्फ एक हैं पर ठीकरा हमारे सर पर फोड़ा जाता है।
टाइम्स नाउ : रोजगार के मोर्चे पर?
पीएम मोदी : रोजगार को लेकर झूठ फैलाया जा रहा है। जॉब की दुनिया में 10 फीसदी फॉर्मल है, इनफॉर्मल 90 फीसदी है। इंडिपेंडेंट एजेंसी के आकड़ें, ईपीएफ में 18 से 25 साल के 70 लाख नए लोग जुड़े हैं। कोई सीए बना होगा, कोई नए वकील बने होंगे, कोई डॉक्टर बना होगा इनके आंकड़े कहीं नहीं हैं। पहले जितने रोड बनते थे आज उससे डबल बनते हैं तो बिना रोजगारी के बने होंगे क्या। किसी ने तो काम किया होगा। हमारी सारी नीतियों के केंद्र में रोजगार को बढ़ावा देना है। हमने टेक्सटाइल और चमड़े के उद्योग में लोगों को रोजगार देने के पॉलिसी बनाई है। मुद्रा योजना के तहत 10 करोड़ कर्ज को स्वीकृत किया है। 4 लाख करोड़ रुपये उनको मिले हैं मुद्रा योजना से। इन 10 करोड़ कर्ज स्वीकृति में 3 करोड़ को पहली बार लोन मिला है। इससे भी रोजगार मिला है। निराशा में डूबे हुए लोग अपनी निराशा से बाहर निकलने का प्रयास करें।
टाइम्स नाउ : आप विदेशों में जाकर भारत की इमेज बढ़ाने की कोशिश करते हैं, लेकिन यहां के कुछ नेता है वो बाहर जाकर जो भारतीय वहां रहते हैं उनसे कहते हैं कि भारत में सबकुछ खराब चल रहा है। आपकी मदद की जरूरत है। उनसे आप क्या कहेंगे?
पीएम मोदी : जो लोग विदेश में रहते है और जो विदेश में आते-जाते रहते हैं, वो जानते हैं कि आज भारत के पासपोर्ट की जो ताकत है, वो पहले कभी इतनी रही होगी। एयरपोर्ट पर अंदर आते हैं और जब इमीग्रेशन ऑफिसर के पास कोई भारत का पासपोर्ट रखता है तो बड़े शान से सामने वाला देखता है। सत्य यही है।
टाइम्स नाउ : मगर ये सब लोग कहते हैं कि बोलने पर पाबंदी नहीं लगानी चाहिए। हम टिप्पणी करने के लिए स्वतंत्र हैं, हम अपनी निराशा व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं और पहले भी लोगों ने किया है तो हमारे को सिंगल आउट क्यों किया जाता है कि हम कुछ लोग भारत की छवि को डेंट कर रहे हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
पीएम मोदी : मैं समझा नहीं।
टाइम्स नाउ : काफी लोग कहते हैं कि हम विदेश जाते हैं हमें बोलने का मौका मिलता है तो हम बोलते हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे दिल की भावनाएं खराब हैं। हम तो देश की हकीकत बताते हैं।
पीएम मोदी : मैं उनकी आलोचना करके उनको महत्व क्यों दूं भाई। देश को तय करने दो कि बाहर जाकर के हम जो भी बोलते हैं उससे बोलने वाले की पहचान होती है कि देश की पहचान होती है। देश की पहचान क्या है दुनिया जानती है। दुनिया के लोग जो हमारे देश में पैदा नहीं हुए यहां का अन्न नहीं खाया वो इसको ब्राइट स्पॉट कहते हैं। अभी तक उन्होंने हमारा नमक नहीं खाया है लेकिन बोल रहे हैं।
टाइम्स नाउ : प्रधानमंत्रीजी आपने 2014 में एक नारा दिया था कि आप इस देश को 'कांग्रेस मुक्त' बनाएंगे। आपने ये भी कहा था अब 2018 में कई चुनाव आ रहे हैं। कांग्रेस जो है वो चार राज्यों में सिमट गई है। इस साल भी कई राज्यों में चुनाव है तो क्या ये कांग्रेस मुक्त भारत आपका साकार हो रहा है?
पीएम मोदी : एक नारा मेरा चल पड़ा लेकिन मेरी भावना जो थी मैं उसको पहुंचा नहीं पाया। राजनीति में इतनी जल्दी बोला जाता है कि चलती रहती है गाड़ी। हमारे देश में राजनीति की मुख्यधारा कांग्रेस रही है इसलिए सभी राजनीतिक दलों में भी कल्चर जो आया बाय एन लार्ज तो जैसे सब आपको कुर्ता पहने दिखेंगे क्योंकि पहले कांग्रेस के जमाने में सब कुर्ता वाले होते थे। मैं जब कांग्रेस मुक्त कहता हूं तो वो कांग्रेस संगठन या एक पॉलिटिकल पार्टी की इकाई इस सीमित अर्थ में मेरे मन में विचार नहीं आए थे जब वो शब्द निकला था। कांग्रेस एक कल्चर के रूप में देश में फैला हुआ है।
आजादी के आंदोलन वाली कांग्रेस का भी एक कल्चर था जिसने देश के जवानों को मरने-मिटने की प्रेरणा दी थी। आजादी के बाद कांग्रेस के कल्चर का जो रूप आया जो कम अधिक मात्रा में हर राजनैतिक दल को भाने लगा। वो ठीक लगता है कि इस रास्ते पर चलेंगे तो गाड़ी चल जाएगी। जातिवाद, परिवारवाद, भ्रष्ट्राचार ही शिष्टाचार। धोखा देना। सत्ता को बिल्कुल दबोच के रखना। ये हिंदुस्तान की राजनीति के कल्चर के हिस्से बन गए। इसकी मुख्यधारा कांग्रेस रही। कांग्रेस के लोग भी कहते हैं कि कांग्रेस एक सोच है। ऐसा कांग्रेस के लोग कहते है। मैं उस सोच की चर्चा करता हूं। इसलिए जब मैं कांग्रेस मुक्त कहता हूं तो चुनावी उठापटक से जुड़ा हुआ नहीं है। मैं तो चाहूंगा स्वयं कांग्रेस पार्टी को भी अपने आपको कांग्रेस मु्क्त करना पड़ेगा। स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए जरूरी है। और उस अर्थ में मैं कांग्रेस मुक्त भारत की बात कहता हूं। मैं उन बुराइयों से मुक्ति के पक्ष में हूं जो मूलत: शुरू वहीं से हुई। आज कम अधिक मात्रा में सब जगह फैली है। इससे देश के राजनैतिक दलों को बचाना होगा। देश के राजनैतिक चरित्र को बचाना होगा। आने वाली पीढ़ियों को बचाना होगा। कांग्रेस दल तक मेरी बात सीमित नहीं है। मैं तो कांग्रेस को भी कांग्रेस मुक्त होने की बात कह रहा हूं।
टाइम्स नाउ : प्रधानमंत्री जी! आपको कितनी निराशा हुई जब आप महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं। आप एंटी ट्रिपल तलाक बिल लेकर आए। लोकसभा में तो पास हो गया क्योंकि वहां आपके पास नंबर है लेकिन राज्यसभा में इस पर एकमत नहीं हो पाया।
पीएम मोदी : मेरा यही कहना है कि दल से बड़ा देश होता है। हमारी राजनैतिक आशाएं, अपेक्षाएं हो यह स्वाभाविक है। मैं ये मानता था कि राजीव गांधी के जमाने में कांग्रेस जो गलती कर बैठी, उससे वो सबक सीखी होगी। और अब प्रभाव इतना बदल चुका है कि दुनिया के इस्लामिक देशों ने भी कानून बदले हैं। और मैं देखता हूं कि इस देश के टीवी ने एक बहुत बड़ी सेवा की कि जो तीन तलाक की शिकर महिलाएं थी उनकी जो एक-एक स्टोरी उभारकर मीडिया लाया। अच्छे-अच्छे की आंख में आंसू आ जाते थे कि क्या हालत है। अब उनको बचाना था। ये कोई राजनीति तो थी नहीं। और न ही किसी को फांसी पर लटका देना था। तो ऐसी व्यवस्था करो भई कि वो भी सम्मान से जी सकें। कांग्रेस इस अच्छे सामाजिक काम को समझ नहीं पाई। ये एक बड़ी चिंता का विषय है। क्या राजनीति इस हद तक पहुंच गई है कि उन टीवी पर एक-एक कथा देखते ही मन द्रवित हो जाता था कि इन बच्चों को कैसे पालेंगे क्या करेंगे और उनको एक हक देना था। मुस्लिम महिलाओं को हक देना था। और दुनिया के इस्लामिक देशों ने भी दिया है। अब इसको नहीं समझ पाए तो मन में पीड़ा होती है कि हमारी राजनीति इतनी नीचे गई है। क्या सत्ता इतनी बड़ी भूख कि आप निर्दोष माताओं-बहनों की जिंदगी तबाह होते देखते रहें और अपनी राजनीति करते रहें। ये पीड़ा होना बहुत स्वाभाविक है। और मुझे बहुत पीड़ा हुई। कांग्रेस जीएसटी के लिए गाली दे लेकिन एक गरीब मुस्लिम महिला की रक्षा का काम और उसमें इस प्रकार की हरकतें की। उनको भीतर तो पीड़ा होती होगी ऐसा मैं मानता हूं लेकिन राजनीति और सत्ता भूख उनको ये सब करने के लिए मजबूर करती होगी।
टाइम्स नाउ : प्रधानमंत्री जी! एक और बहुत संगीन इश्यू है जो इस वक्त हुआ है जो एक शो डाउन हुआ है ज्यूडिशरी में। क्या आप समझते हैं कि इसे टाला जा सकता था?
पीएम मोदी : मैं मानता हूं मुझे इस पूरे विवाद से खुद को दूर रखना चाहिए। सरकार को भी दूर रहना चाहिए। देश के राजनैतिक दलों को भी दूर रहना चाहिए। हमारे देश की ज्यूडिशरी का इतिहास बहुत उज्जवल है। वे बहुत ही सक्षम लोग हैं। वो मिल बैठकर अपनी समस्या को समझेंगे और समाधान करेंगे। और मुझे हमारी इस न्याय प्रणाली पर भरोसा है कि जरूर कोई न कोई रास्ता निकालेंगे।
टाइम्स नाउ : काफी अपोजिशन वाले तो भाजपा के हाई प्रोफाइल लीडर्स को इसमें खींच रहे थे। आप समझते हैं कि जैसे आप गुजरात में सीएम थे, फिर से 2019 के पहले ये लोग कुछ मुद्दे खड़े कर रहे हैं। ज्यूडिशरी को लेकर। आपको फिर से कॉर्नर करने की कोशिश कर रहे हैं।
पीएम मोदी : विरोधियों को भरपूर कोशिश करनी चाहिए मोदी को खत्म करने के लिए। मेरी उनको शुभकामनाएं हैं। ऐसा है कि जिस रास्ते पर वो चले हैं उनके उन्हीं कारणों ने मुझे यहां पहुंचाया है।
टाइम्स नाउ : मोदी जी! देश में एक और डिबेट चल रहा है कि नेशनल एंथम जो है वो कहां गाना चाहिए। गाना चाहिए तो उसमें खड़ा होना चाहिए या नहीं होना चाहिए। कितनी देर खड़े होना चाहिए। सिनेमा हाल में होना चाहिए। ये चीजें अब हमारी न्यायपालिका में जाने लग गई हैं। इस पर आपका क्या कहना है?
पीएम मोदी : न्यायपालिका में कोई लेकर जाएगा तो न्यायपालिका कहां मना कर सकती है। न्यायपालिका कैसे मना कर सकती है। नागरिक का हक है कहीं पर भी जाने का।
टाइम्स नाउ : पर इसको राजनीतिक रंह दिया जा रहा है। आपको लगता है कि आज के दिन कोई खड़ा होकर अपना राष्ट्रगान गाए तो उसपर सवाल पूछे जाएं?
पीएम मोदी : इसमें तो जो सवाल पूछते हैं उनसे ही इस बारे में पूछा जाना चाहिए।
टाइम्स नाउ : प्रधानमंत्री जी! एक कंसेंसस है आपने कई बार इसकी चर्चा की है। देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने चाहिए। अब जैसे 2018 ही आप ले लीजिए। कम से कम नहीं तो 6-7 राज्यों में इस साल चुनाव है। इस मुद्दे पर आपके विचार कंसेंसस क्यों नही बना पा रहे?
पीएम मोदी : आपकी चिंता सही है और मैं ये भी मानता हूं कि मैं सरकार में हूं तो हमारा दायित्व भी है। लेकिन ये विषय कहने वाला मैं पहला व्यक्ति नहीं हूं। भारत के पूर्व राष्ट्रपति भी कह चुके हैं। भारत के संविधान के जो जानकार लोग हैं वो भी कह चुके हैं। कुछ व्यवहारिक बातें भी हैं जिनको हमें सोचना चाहिए। भारत जैसा देश जिसकी डेमोक्रेसी बहुत ही मैच्योर है। हिंदुस्तान का नागरिक स्कूल गया है कि नहीं गया है लेकिन उसको दूध का दूध और पानी का पानी का भली-भांति समझ में आता है। और 1967 के पहले हमारे देश में लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ ही होते थे और देश की जनता नीचे एक निर्णय करती थी ऊपर दूसरा निर्णय करती थी। एक साथ वोट देती थी दो अलग-अलग देती थी। उनको समझ थी तो भारत के मतदाताओं की समझदारी के ऊपर शक करने की जरूरत नहीं है। दूसरा बजट फलानी तारीख को होगा ही होगा तो होता ही है। ऐसा नहीं कि भई मनमर्जी से होता है। भई नियम बन गया तो चलता है। तो वैसे इसको भी नियमों में बांधेंगे तो देश चलेगा। और चलना भी चाहिए। अब आप देखिए 2009 में लोकसभा का चुनाव हुआ। तब खर्चा करीब 1000-1100 करोड़ हुआ। 2014 में हुआ 4 हजार करोड़ खर्चा हुआ। आज देश का दुर्भाग्य देखिए, स्थानीय निकायों के चुनाव हैं उसकी मतदाता सूची अलग है। नगरपालिका महानगरपालिका की मतदाता सूची अलग है। एसेंबली की अलग है, लोकसभा की अलग है। आज के टेक्नोलॉजी के युग में भारत जैसे देश में कोई भी चुनाव हो मतदाता सूची एक नहीं बन सकती क्या। टीचर्स की सारी शक्ति मतदाता सूची ठीक करने में ही चली जाती है। बदलाव जरूरी है।
अब चुनाव है तो तू-तू मैं-मैं होनी है, छींटाकशी होनी है। आरोप प्रत्यारोप होते हैं। एसेंबली के चुनाव के समय, हम प्रधानमंत्री हैं लेकिन राजनीति में भी हैं। हमें जाना पड़ता है, बोलना पड़ता है। उस सरकार की आलोचना करनी पड़ती है। वहां के राजनेता की आलोचना करनी पड़ती है। जाने-अनजाने में भी इस फेडरल स्ट्रक्चर को खरोंच पहुंचती है। चुनाव भी एक निश्चित समय काल में हो उसमें जितनी होली खेलनी है रंग खेलने हैं। काला करना है बुरा करना है उसी सीमा में हो जाएगा। दूसरा हमारे देश का लोकतंत्र ऐसा है कि पापुलिस्ट इकोनॉमी, ये जो कांग्रेस मुक्त मैं कह रहा हूं ये उस कल्चर का हिस्सा है। लोकरंजक अर्थनीति। अब सरकारों को भी इसकी आदत है। अब चुनाव आया है ये बांटो वो बांटो इसकी कंपीटिशन चलती है। वो कहता है मैं इतना दूंगा तो वो कहता है मैं इतना दूंगा। जो विपक्ष में होता है उसको तो बड़ी सुविधा होती है। मैं तो हैरान था अभी गुजरात में चुनाव हुआ तो हमारे लोगों ने कुछ हिसाब करके दिया कि गुजरात के टोटल बजट से चार गुना चीजें हम मुफ्त में देंगे ऐसी घोषणा कर दी गई। अब ऐसी गैर जिम्मेवार बात चलती है। अब लोकसभा-विधानसभा चुनाव साथ होंगे तो मैं समझता हूं कि देश का खर्चा बच जाएगा, समय बच जाएगा। हमारे देश के लाखों सिक्योरिटी के लोग साल में 100-150 दिन चुनावी व्यवस्थाओं में ही होते हैं। इतना बड़ा देश, इतने बड़े खतरे, इतना बड़ा आंदोलन। हम सामान्य मानवीय की सिक्योरिटी में लोग लगाएं की चुनावी व्यवस्था में लोग लगाएं। अगर एक साथ चुनाव हो जाता है और मैं मानता हूं कि डेट फिक्स हो जानी चाहिए। लोकसभा विधानसभा चुनाव एक साथ। उसके 1 महीने के भीतर स्थानीय निकायों के चुनाव और फिर उसे 5 साल चलाना होगा। बीच में मानो कोई सरकार गिर जाती है, किसी एमपी का स्वर्गवास हो जाता है, किसी एमएलए का स्वर्गवास हो गया तो बाका टेन्युर का ही चुनाव होता है। ऐसा ही होना चाहिए। और ये व्यक्ति नहीं कर सकता एक दल नहीं कर सकता। सबको मिलकर करना चाहिए। मैने ऑल पार्टी की हर मीटिंग में विषय उठाया है। मैंने व्यक्तिगत जिन-जिन दलों से बातचीत की है व्यक्तिगत सबने कहा यही करना चाहिए। जल्दी हो जाए तो अच्छा होगा। यही बोल रहे हैं। मैं 2 वाक्य बोलू तो वो पांच बोलते हैं। मगर पब्लिकली स्टेटमेंट देना हो तो वो दूसरा कहते हैं।
टाइम्स नाउ : एग्रीकल्चर सेक्टर जैसा आपने गुजरात में ग्रोथ दिखाया है वो ग्रोथ सेंट्रल लेवल में नहीं है। उसकी आलोचना होती है। तो आप अपने आलोचकों को क्या कहेंगे।
पीएम मोदी : ये आलोचना सही है और इससे इंकार नहीं करना चाहिए। ये देश की जिम्मेवारी है, राज्य सरकारों की जिम्मेवारी है, भारत सरकार की जिम्मेवारी है, नरेंद्र मोदी की जिम्मेवारी है कि हमारे देश के किसानों की समस्याओं को समझकर उनका समाधान करने का प्रयास करना चाहिए। पिछले कुछ समय में हमने जो प्रयास किए हैं उसने एक विश्वास का वातावरण बनाया है। जैसे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना। मैंने अभी देखा, मैं अभी कर्नाटक गया था तो हमारे एक एमपी इलाके में काफी सक्रिय हैं। उन्होंने इलाके में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का किसानों तक पहुंचाया और वहां दुर्भाग्य से अकाल आया। उन किसानों को मुझे अंदाज है उस समय तक 100-125 करोड़ रुपए इंश्योरेंस के दिलवाए। ये एक ऐसी स्कीम है जो किसानों को संकट के समय जीवनदान देने की ताकत रखती है। अब हमने किया है। अच्छा उसमें किसानों को 2 प्रतिशत ही देना है। 98 प्रतिशत केंद्र और राज्य सरकार देती है। किसानों को बिजली से पहले पानी चाहिए। हमने पानी पहुंचाने का इंतजाम किया। किसानों को सॉयल हैल्थ कार्ड मुहैया कराया। नीम कोटेड यूरिया उपलब्ध कराया। पुराने कारखाने शुरू करवाकर यूरिया का उत्पादन बढ़ाया। अब किसानों को यूरिया के लिए लाइन नहीं लगानी पड़ती है।
टाइम्स नाउ : अब हम फॉरेन पॉलिसी पर बात करना चाहेंगे मोदी जी। देखिए आपके एक्वेशन काफी है वर्ल्ड लीडर के साथ, प्रेजिडेंट ट्रंप के साथ, अंतरारष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए आपके ये संबंध कैसे काम आएंगे?
पीएम मोदी : अगर ये आप सोचोगे भारत की विदेश नीति पाकिस्तान आधारित है तो भारत के साथ घोर अन्याय है। भारत की विदेश नीति भारत के संदर्भ में होती है। भारत की विदेश नीति विश्व के संदर्भ में होती है। इशूज के संदर्भ में होती है। और इसलिए हम किसी एक देश के ही आसपास विदेश नीति नहीं करते हैं और न ही करनी चाहिए। दुनिया आतंकवाद से जूझ रही है। आतंकवाद के जनक के खिलाफ दुनिया लामबंद हो रही है। ट्रंप मुखरता के साथ आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। आतंकवाद के खिलाफ जो लड़ने के लिए आएगा मैं उसका सम्मान करुंगा भारत-पाकिस्तान बहुत लड़ लिए अब गरीबी से लड़ें। आओ मिलकर बीमारी से लड़ें। सीधा पाकिस्तान की अवाम से बात करता हूं कि बताइए गरीबी, अशिक्षा से, बीमारी से लड़ना है कि नहीं। मिलकर लड़ेंगे तो जल्दी से जीतेंगे।
टाइम्स नाउ : मोदी डॉक्टरिन के बारे में, नेतनयाहू ने कहा कि आप आतंकवाद के खिलाफ सख्त हैं। सॉफ्टपावर से आतंकवाद से नहीं लड़ा जा सकता है। इसके लिए हार्डलाइन लेना ही पड़ेगा।
पीएम मोदी : आतंकवाद मानवता का मुद्दा है। मानवता पर बड़ा संकट है। इसलिए मानवतावदी शक्तियों को बचाने के लिए आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होना होगा। मेरी कोशिश मानवतावादी शक्तियों को जोड़ना है। तभी हम आतंकवाद के खिलाफ लड़ सकेंगे।
टाइम्स नाउ : अगले 18 महीने की प्राथमिकताएं क्या हैं?
पीएम मोदी : मैं चुनावी टाइम टेबल से अपना टाइम टेबल नहीं बनाता हूं। मेरा टाइमटेबल देश की जनता की सेवा करने के लिए है। मैंने सौभाग्य योजना अभी ली है। 25 करोड़ परिवार है इसमें से 4 करोड़ परिवार अभी भी अंधरे की जिंदगी जीते हैं। उनके घर में बिजली कनेक्शन नहीं है। 4 करोड़ परिवारों को मुफ्त में समय सीमा में बिजली का कनेक्शन दूंगा। हर समाज के अंदर गरीब तबका है। मैं उनके लिए काम कर रहा हूं। मैं वही योजना हाथ में लेता हूं जिसको मैं पूरा करने का प्रयास करूं।
टाइम्स नाउ : क्या कोई ऐसी योजनाएं हैं जिन पर अभी काम करना बाकी है?
पीएम मोदी : सांसद आदर्श ग्राम योजना एक ऐसी योजना है जिसमें मैंने सांसदों से एक गांव गोद लेने की बात कही है। मैंने कहा है कि इस योजना पर थोड़ा काम किया जाए। प्रयोग करने के लिए किया है। हालांकि एक बड़े नेता ने इस पर भी बयानबाजी कर दी। अब मैं समझाऊंगा एमपी को। एक गांव में काम करके तो देखो। इस योजना में जितना काम होना चाहिए था उतना नहीं हुआ है।
(अंग्रेजी न्यूज चैनल टाइम्स नाउ से साभार)