बड़ा खुलासा : ये हैं वो मीडिया संस्थान जिन्हें दंगा भड़काने वाले पेड न्यूज से परहेज नहीं
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : खोजी पत्रकारिता के लिए विख्यात कोबरापोस्ट ने एक खुलासे में देश की कुछ दिग्गज मीडिया संस्थानों का असली चेहरा खोल कर रख दिया है। ऑपरेशन-136 नाम से किए गए स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से कोबरापोस्ट ने गोदी मीडिया शब्द को सार्थक सिद्ध कर दिया है। इस पूरी तहकीकात को ऑपरेशन 136 नाम इसलिए दिया गया क्योंकि वर्ष 2017 के प्रेस इंडेक्स में भारत विश्व में 136वें पायदान पर है। नीचे दिए गए वो मीडिया संस्थान और उनके अधिकारियों के नाम हैं जिनसे कोबरापोस्ट ने न सिर्फ बात की बल्कि अपनी बात को मनवाने में भी सफल रहे।
1. इंडिया टीवी- जितेन्द्र कुमार, डिप्टी वाइस प्रेसिडेंट (सेल्स), (नोएडा)
2. दैनिक जागरण- संजय प्रताप सिंह, एरिया मैनेजर (बिहार, झारखंड, ओडिशा)
3. सब नेटवर्क (अधिकारी ब्रदर्स)- कैलाशनाथ अधिकारी, मैनेजिंग डायरेक्टर (मुंबई)
4. ज़ी सिनर्जी एंड डीएनए- रजत कुमार, मुख्य राजस्व अधिकारी
5. हिंदी खबर- अतुल अग्रवाल, डायरेक्टर एंड एडिटर इन चीफ (नोएडा)
6. 9एनएक्स- प्रदीप गुहा, सीईओ (गुड़गांव)
7. समाचार प्लस- अमित त्यागी, सीनियर सेल्स (नोएडा)
8. एचएनएन लाइव- अमित शर्मा, सीईओ, (देहरादून, उत्तराखंड)
9. पंजाब केसरी- सुनील शर्मा
10. स्वतंत्र भारत- संजय सिंह श्रीवास्तव, एडिटर एंड बिजनेस हेड (लखनऊ)
11. स्कूप व्हूप- सात्विक, सीईओ (दिल्ली)
12. रेडिफ डॉट कॉम- विराज खानधादिया, एसोसिएट डायरेक्टर एड सेल्स (मुंबई)
13. आज (हिंदी डेली)- हरिंदर सिंह साहनी, बिजनेस हेड/ब्रांच हेड
14. साधना प्राइम न्यूज़- आलोक भट्ट, डायरेक्टर (लखनऊ)
15. अमर उजाला- हिमांशु गौतम, बिजनेस हेड (दिल्ली)
16. यूएनआई- नरेंद्र कुमार श्रीवास्तव, ब्यूरो प्रमुख (दिल्ली)
खुफिया कैमरे की सहायता से किए गए ऑपरेशन-136 में देश के कई नामचीन मीडिया संस्थान पैसे लेकर सत्ताधारी दल के लिए चुनावी लहर तैयार करने के लिए राजी होते नजर आए। साथ ही विपक्ष और विपक्षी दलों के बड़े नेताओं का दुष्प्रचार करके चरित्र हनन करने और उनके खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाकर उनकी छवि को धूमिल करके सत्तारूढ़ दल के पक्ष में माहौल बनाने की सौदेबाजी का भी खुलासा हुआ है। यहां तक की सत्ताधारी पार्टी के लिए इन लोगों ने पत्रकारिता की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाते हुए नागरिक स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने वालों के खिलाफ खबरें बनाने पर भी अपनी रजामंदी जाहिर की।
देशभर में आंदोलन करने वाले किसानों को माओवादियों द्वारा उकसाए हुए बताकर सरकार की नीतियों का महिमामंडन करने के लिए भी ये सहमत हो गए। वहीं, न्यायपालिका के फैसलों पर सवालिया निशान लगाकर लोगों के सामने पेश करने से भी इनको कोई गुरेज नहीं था। इस जांच में पाया गया है कि किस तरह भारतीय मीडिया अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़कर प्रेस की आजादी का गलत इस्तेमाल कर रही है और अवांछित सामग्री चलाकर ताकि देश पत्रकारिता के पेशे पर सवालिया निशान लगा रही है। कोबरापोस्ट के लिए पूरी तहकीकात पत्रकार पुष्प शर्मा ने श्रीमद् भगवत् गीता प्रचार समिति, उज्जैन का प्रचारक बनकर और खुद का नाम आचार्य छत्रपाल अटल बताकर की। इस दौरान देश के करीब तीन दर्जन बड़े मीडिया संस्थानों के वरिष्ठ और जिम्मेदार अधिकारियों से उन्होंने मुलाकात की और एक खास तरह का मीडिया कैंपेन चलवाने के लिए 6 से 50 करोड़ रुपये तक का अपना बजट बताया। कोबरापोस्ट ने ऑपरेशन 136 का अभी पहला भाग जारी किया है जिसमें कुल 16 मीडिया संस्थानों के नाम सामने आए हैं।
जिस एजेंडे को लेकर कोबरापोस्ट ने मीडिया संस्थानों से संपर्क साधा था, उनमें चार बिंदु शामिल थे। पहला, मीडिया अभियान के शुरुआती और पहले चरण में हिंदुत्व का प्रचार, इसके बाद दूसरे चरण में विनय कटियार, उमा भारती, मोहन भागवत और दूसरे हिंदुवादी नेताओं के भाषणों को बढ़ावा देकर सांप्रदायिक तौर पर मतदाताओं को रिझाना, तीसरे चरण में जैसे ही चुनाव नज़दीक आ जाएंगे, राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को टारगेट करना। राहुल गांधी, मायावती और अखिलेश यादव जैसे विपक्षी दलों के बड़े नेताओं को पप्पू, बुआ और बबुआ कहकर जनता के सामने पेश किया जाएगा ताकि चुनाव के दौरान जनता उन्हें गंभीरता से न ले और मतदाताओं का रुख अपने पक्ष मे किया जा सके। चौथा, मीडिया संस्थानों को यह अभियान उनके पास उपलब्ध सभी प्लेटफॉर्म पर जैसे- प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, रेडियो, डिजिटल, ई-न्यूज पोर्टल, वेबसाइट के साथ-साथ सोशल मीडिया जैसे- फेसबुक और ट्विटर पर भी चलाना होगा.
कोबरापोस्ट के अनुसार, इस एजेंडे पर उसने जिन मीडिया संस्थानों से संपर्क साधा, लगभग सभी ने अभियान चलाने पर अपनी सहमति दी। सभी हिंदुत्व को अध्यात्मवाद और धार्मिक प्रवचन की तरह बढ़ावा देने के लिए सहमत हुए। सांप्रदायिक पृष्ठभूमि के आधार पर मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने के लिए एक खास विज्ञापन सामग्री प्रकाशित करने पर सहमत हुए। अपने मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए सत्तारूढ़ दल के लिए उसके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को बदनाम करने और उनकी छवि खराब करने पर भी उन्होंने सहमति जताई। कई मीडिया संस्थान नकदी भुगतान यानी काला धन भी स्वीकार करने के लिए तैयार थे। वहीं, कुछ संस्थानों के मालिक और कर्मचारियों ने बताया कि वे स्वयं संघ से जुड़े रहे हैं और हिंदुत्ववादी विचारधारा से प्रभावित हैं लिहाजा उन्हें इस अभियान पर काम करने में खुशी होगी।