मोदी राज में भारत और हुआ भ्रष्ट, 180 देशों की सूची में 81वां स्थान
सत्ता विमर्श डेस्क
नई दिल्ली : भ्रष्टाचार को लेकर भारत के सरकारी क्षेत्र की छवि दुनिया की निगाह में पहले से ही खराब है। लेकिन जिस भ्रष्टाचार को जड़ से मिटाने के मोदी सरकार के चार साल के महाअभियान के बाद भी हालात सुधरने के बजाय और खराब हो जाए तो फिर इस देश का भगवान ही मालिक। अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट ग्लोबल करप्शन इंडेक्स-2017 में भारत को 81वें स्थान पर रखा गया है। भारत को इस सूचकांक में एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भ्रष्टाचार और प्रेस स्वतंत्रता के मामले में सबसे खराब स्थिति वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है। मालूम हो कि 2016 की अपेक्षा 2017 में भारत की रैंक में गिरावट दर्ज की गई है। 2016 में 176 देशों की सूची में भारत 79वें स्थान पर था, वहीं 2015 में भारत 76वें स्थान पर था।
भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकारों को एक सशक्त संदेश देने के उद्देश्य से 1995 में शुरू किए गए, इस सूचकांक में 180 देशों की स्थिति का आकलन किया गया है। इस सूचकांक को विश्लेषकों, कारोबारियों और विशेषज्ञों के आकलन और अनुभवों पर आधारित बताया जाता है। इसमें पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं के लिए काम की आजादी जैसी कसौटियां भी अपनाई जाती हैं। जहां तक भारत के पड़ोसी देशों की बात की जाए तो इस सूची में पाकिस्तान को 117वें, बांग्लादेश को 143वें, म्यांमार को 130वें तथा श्रीलंका को 91वें स्थान पर रखा गया है। भारत के पड़ोसी देशों में भूटान का स्कोर सबसे अच्छा 67 अंक है। वह सूची में 26वें स्थान पर है। चीन 41 अंक के साथ इस सूची में 77वें स्थान पर है।
भ्रष्टाचार सूचकांक तैयार करने के लिए देशों को 0 से 100 अंक के बीच अंक दिए जाते हैं। सबसे कम अंक सबसे अधिक भ्रष्टाचार व्याप्त होने का संकेत माना जाता है। इस सूची में न्यूजीलैंड और डेनमार्क 89 और 88 अंक के साथ सबसे ऊपर हैं। दूसरी तरफ सीरिया, सूडान और सोमालिया क्रमश: 14, 12 और 9 अंक लेकर सबसे नीचे हैं। भारत को इस बार भी 2016 के बराबर 40 प्वाइंट मिले हैं।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भारत को इंडो-पेसिफिक रीजन में करप्शन और प्रेस की आजादी के लिहाज से सबसे कमजोर देशों में शामिल किया है। ऑर्गनाइजेशन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फिलीपींस, भारत और मालदीव जैसे देशों में न सिर्फ करप्शन, बल्कि पत्रकारों की हत्या के मामले भी ज्यादा हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, बीते छह साल में 10 पत्रकारों में से 9 उन देशों में मारे गए हैं, जिन्हें करप्शन इंडेक्स में 45 या इससे कम नंबर मिले हैं। ऐसे देशों की संख्या दो तिहाई से ज्यादा है।