पंडित नेहरु का संसद में भाषण - 'भाग्य से भेंट'
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भारत को आजादी मिलने की रात यानी 14-15 अगस्त 1947 को भारतीय संसद में अपना पहला भाषण दिया था। प्रस्तुत है उस भाषण के अंश--
कई वर्षों पहले हमने नियति को मिलने का एक वचन दिया था, और अब समय आ गया है कि हम अपने वचन को निभाएं, पूरी तरह न सही, बल्कि अच्छी तरह से। आज रात ठीक बारह बजते ही, जब सारी दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता की नयी सुबह के साथ उठेगा। एक ऐसा क्षण जो इतिहास में बहुत ही कम आता है, जब हम पुराने के छोड़ नये की तरफ जाते हैं, जब एक युग का अंत होता है और जब वर्षों से शोषित एक देश की आत्मा, अपनी बात कह सकती है।
यह सही वक्त है कि इस पवित्र मौके पर हम समर्पण के साथ खुद को भारत और उसकी जनता की सेवा और उससे भी बढ़कर सारी मानवता की सेवा करने का संकल्प ले रहे हैं।
इतिहास के आरम्भ के साथ ही भारत ने अपनी अंतहीन खोज प्रारंभ की और ना जाने कितनी ही सदियाँ इसकी भव्य सफलताओं और असफलताओं से भरी हुई हैं। चाहे अच्छा वक्त हो या बुरा, भारत ने कभी इस खोज से अपनी नज़र नहीं हटाई और कभी भी अपने उन आदर्शों को नहीं भूला जिसने इसे ताकत दी। आज हम दुर्भाग्य के एक युग का अंत कर रहे हैं और भारत पुनः खुद को खोज पा रहा है।
आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं वो महज एक कदम है, नये अवसरों के खुलने का, इससे भी बड़ी विजय और उपलब्धियां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। क्या हममें इतनी शक्ति और बुद्धिमत्ता है कि हम इस अवसर को समझें और भविष्य की चुनौतियों को स्वीकार करें?
स्वतंत्रता और सत्ता से जिम्मेदारी आती है। जिम्मेदारी एक संप्रभु निकाय पर, इस विधानसभा पर, भारत के संप्रभु लोगों का प्रतिनिधित्व करने की है। स्वतंत्रता मिलने से पहले हम सभी ने मेहनत और अपने भारी दिलों के साथ दर्द को दुःख की यादों के साथ सहा है। इसमें से कुछ दर्द अब भी है। फिर भी, इतिहास बीत गया है और आने वाला कल हमें संकेत कर रहा है।
भविष्य में हमे विश्राम करना या चैन से नहीं बैठना है, बल्कि निरंतर प्रयास करना है ताकि हम जो बात बार-बार दोहराते रहे हैं और जिसे हम आज भी दोहराएंगे उसे पूरा कर सकें। भारत की सेवा का अर्थ लाखों -करोड़ों पीड़ित लोगों की सेवा करना है। इसका मतलब गरीबी और अज्ञानता को मिटाना, बिमारियों और अवसर की असमानता को मिटाना है।
हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही महत्वाकांक्षा रही है कि हर एक आँख से आंसू मिट जाएँ। शायद ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों की आँखों में आंसू हैं और वे दुःखी हैं तब तक हमारा काम खत्म नहीं होगा।
और इसलिए हमें परिश्रम करना होगा और कड़ी मेहनत करनी होगी, ताकि हम अपने सपनो को साकार कर सकें। ये सपने भारत के लिए हैं, पर साथ ही वे पूरी दुनिया के लिए भी हैं, आज कोई खुद को बिलकुल अलग नहीं सोच सकता, क्योंकि सभी राष्ट्र और लोग एक दूसरे के साथ नजदीकी से जुड़े हुए हैं।
शांति को अविभाज्य कहा गया है, इसी तरह से स्वतंत्रता भी अविभाज्य है, समृद्धि भी और विनाश भी; अब इस दुनिया को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटा नहीं जा सकता।
भारत के लोग, जिनके हम प्रतिनिधि हैं, को इस महान साहसिक काम में आस्था और विश्वास के साथ शामिल होने की हम अपील करते हैं। यह समय छोटी और नुकसानदायक आलोचना का नहीं है, ना ही यह समय दूसरों को दोष देने या द्वेष रखने का है। हमें स्वतंत्र भारत का महान निर्माण करना है, जहाँ उसकी सारी संतानें रह सकें।
आज नियत दिन आ गया है, ऐसा दिन जिसे भाग्य ने तय किया था - और एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद भारत जागृत और स्वतंत्र रूप से खड़ा है। कुछ हद तक अभी भी हमारा बीता कल हमसे चिपका हुआ है और हम अक्सर जो वचन लेते रहे हैं उसे निभाने से पहले बहुत कुछ करना है। लेकिन फिर भी, निर्णायक बिंदु अतीत हो चुका है और हमारे लिए एक नया इतिहास शुरु हो चुका है, एक ऐसा इतिहास, जिसे हम गढ़ेंगे और जिसके बारे में दूसरे लोग लिखेंगे।
भारत में हमारे लिये, पूरे एशिया और पूरे विश्व के लिये यह एक सौभाग्य का क्षण है। एक नए तारे का उदय हुआ है, पूरब में स्वतंत्रता का सितारा, एक नयी आशा का जन्म हुआ है, एक दूर-दृ्रष्टिता अस्तित्व में आयी है। काश ये तारा कभी अस्त न हो और ये आशा कभी धूमिल न हो!
चाहे हमारे चारों ओर बादल छाये हों और हमारे कुछ लोग कष्ट से त्रस्त हों और कठिन परिस्थितियां हमें घेरे हुए हों, हमें इस आजादी में आनन्द लेना है। लेकिन आजादी के साथ जिम्मेदारियां और बोझ भी आता है और हमें एक स्वतंत्र और अनुशासित व्यक्ति की भावना के साथ उनका सामना करना पड़ता है।
इस दिन हमारी पहली सोच हमारी आज़ादी के शिल्पकार, हमारे राष्ट्रपिता के पास जाने की होनी चाहिए, जिन्होंने भारत की प्राचीन भावना को संगठित किया, आजादी की मशाल जलायी और हमें घेरे हुए अंधेरे को प्रकाशित किया।
हो सकता है कि हमारे पास उनके अयोग्य अनुयायी हों और वे उनके संदेशों से भटक गये हों, लेकिन न केवल हम, बल्कि आने वाली पीढ़ी इस संदेश को याद करेगी और अपने शानदार विश्वास, शक्ति, साहस और विनम्रता के साथ भारत के इस महान सपूत की छाप अपने हृदय में महसूस करेगी। हम कभी भी आजादी की इस मशाल को बुझने नहीं देंगे चाहे आंधी आये या फिर तूफान हो।
हमारा अगला विचार आजादी के अज्ञात कार्यकर्ताओं और सैनिकों को याद करने का होना चाहिए जिन्होंने प्रशंसा या इनाम के बिना मृत्यु पर्यंत भारत की सेवा की।
हमें अपने भाई-बहनों के बारे में भी सोचना चाहिये जो हमसे राजनीतिक सीमाओं के कारण अलग हो गये हैं और जो दुर्भाग्य से मौजूदा आजादी को साझा नहीं कर सकते। वे हम में से हैं, चाहे जो कुछ भी हो और हमे उनके अच्छे और बुरे दोनों के साझीदार हैं।
भविष्य हमें बुला रहा है। हमें किधर जाना चाहिए और हमारे क्या प्रयास होने चाहिए? जिससे हम आम आदमी, किसानो और कामगारों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें, हम गरीबी, अज्ञानता और बिमारियों से लड़ सकें, हम एक समृद्ध, लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश का का निर्माण कर सकें, और हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं की स्थापना कर सकें जो हर एक आदमी-औरत के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके।
हमे भविष्य में कड़ी मेहनत करनी होगी। हम में से से कोई भी तब तक चैन से नहीं बैठ सकता है जब तक हम अपने वादों को पूरी तरह निभा नहीं देते, जब तक हम भारत के सभी लोगों उस गंतव्य तक नहीं पहुंचा देते जहाँ भाग्य उन्हें पहुँचाना चाहता है।
हम सभी एक महान देश के नागरिक हैं, जो तीव्र विकास की राह पर है और हमें उस उच्च स्तर को पाना होगा। हम सभी चाहे जिस धर्म के हों समानरूप से भारत माँ की संतान हैं और हम सभी के बराबर अधिकार और दायित्व हैं। हम सांप्रदायिकता और संकीर्ण सोच को बढ़ावा नहीं दे सकते, क्योंकि कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हों।
विश्व के देशों और लोगों को शुभकामनाएं देते हैं और उनके साथ मिलकर शांति, स्वतंत्रता और लोकतंत्र को बढ़ावा देने की प्रतिज्ञा लेते हैं। और भारत के लिये, हम अपनी प्यारी मात्रभूमि, प्राचीन, शाश्वत और निरंतर नवीन भारत को श्रद्धांसुमन अर्पित करते हैं और एकजुट होकर नये सिरे से इसकी सेवा करते हैं।
जय हिंद