महंगाई : 84 करोड़ देशवासियों को नसीब नहीं हो रहा भरपेट खाना, 40 साल की सबसे बड़ी गिरावट
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : बढ़ती महंगाई का असर जितना शहरों में देखने को मिल रहा है उससे कहीं ज्यादा इसका शिकार भारतीय गांव हो रहा है। ग्रामीण भारत की थाली में पिछले 40 सालों की यह सबसे बड़ी गिरावट कही जा रही है। नेशनल न्यूट्रीशन मॉनीट्रिंग ब्यूरो के एक सर्वे के मुताबिक देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी यानी 84 करोड़ लोगों को जरूरत से कम भोजन उपलब्ध है।
सर्वे के मुताबिक साल 1975-'79 के मुकाबले ग्रामीण भारत की थाली से 550 कैलोरीज कम हो गयीं हैं। थाली से 13 ग्राम प्रोटीन, 5 मिलीग्राम आयरन, 250 मिलीग्राम कैल्शियम और 500 मिलीग्राम विटामिन घाट गया है। बता दें कि तीन साल की उम्र से कम के बच्चों के लिए 300 मिलीलीटर दूध रोजाना की ज़रूरी खुराक है जबकि ग्रामीण भारत में ये सिर्फ 80 मिलीलीटर ही उपलब्ध है।
सर्वे में सामने आया है कि ग्रामीण भारत के 35% पुरुष और महिलाएं कमजोरी के शिकार हैं जबकि 42% बच्चों का वजन सामान्य से बेहद कम है। गरीब इलाकों में तो ये स्थिति और भी भयानक है। आजीविका ब्यूरो नाम की संस्था के गरीबी रेखा से नीचे की 500 महिलाओं पर कराए एक सर्वे में सामने आया है कि उन्होंने हफ़्तों से दाल, सब्जियां नहीं खायी. उनकी थाली से फल, अंडा और मांस लगभग गायब हो गया है। इन तीन में से एक महिला के बच्चे कुपोषण के शिकार थे।
वर्ल्ड बैंक की साल 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक न्यूट्रीशन की इस कमी का भारत की अर्थव्यवस्था पर काफी बुरा असर पड़ने वाला है। इससे सरकार के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट जैसे मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया बुरी तरह प्रभावित होंगे। ये सिर्फ भारत ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया की स्थिति है। इन देशों की हालत न्यूट्रीशन के मामले में सब सहारा देशों से भी बुरी हो गयी है। अगर हालत ऐसे ही रहे तो आने वाले 20 सालों में ग्रामीण भारत की हालत और ख़राब हो जाएगी।
जानकारों का मानना है कि इकॉनोमिक ग्रोथ के बढ़ने का कुछ ख़ास फायदा नहीं होगा जब देश की एक बड़ी आबादी की थाली से भोजन गायब होता जाएगा। रिपोर्ट में ये भी सामने आया है कि पिछले 40 सालों में खाद्य महंगाई सबसे तेजी से बढ़ी है। भारत में फ़िलहाल कुपोषित बच्चों की सबसे बड़ी आबादी है जबकि ब्राजील और चीन दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं।