गुजरात में अबकी भी भाजपा को 'मोदी नाम' का ही सहारा
प्रवीण कुमार
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जहां एक तरफ गुजरात चुनाव जीतकर सिमटती जा रही कांग्रेस में फिर से जान फूंकना चाहते हैं वहीं नरेंद्र मोदी का इरादा गुजरात के रास्ते 2019 को साधना है। अगर गुजरात अच्छे मार्जिन से फिर से भाजपा की झोली में आ गया तो मोदी और शाह के लिए 2019 का मिशन आसान हो जाएगा। दरअसल गुजरात को लेकर राहुल गांधी की आक्रामक राजनीति, पटेलों की नाराजगी और ओबीसी, दलितों के एक बड़े वर्ग के गुस्से ने भाजपा खेमे में घबराहट पैदा कर दी है। गुजरात में दो दशक से सत्ता पर काबिज भाजपा को सत्ता विरोधी लहर के साथ ही नोटबंदी और जीएसटी से उपजे गुस्से का भी सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में विरोधियों की चुनौती का सामना करने के लिए सत्ताधारी दल की उम्मीदें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही टिकी हैं।
राज्य में पार्टी के हालात को पीएम मोदी भी बखूबी समझ रहे हैं। यही वजह है कि चुनाव की घोषणा से पहले ही मोदी ने पिछले एक साल में राज्य में एक दर्जन से अधिक दौरे कर सत्ता विरोधी लहर को कुंद करने का प्रयास किया। इसमें अंतिम पांच दौरे तो मोदी ने एक महीने के भीतर किए। खास बात यह है कि इनमें से ज्यादातर दौरों पर प्रधानमंत्री गुजरात की जनता के लिए कोई न कोई सौगात लेकर ही पहुंचे हैं। इनमें बुलेट ट्रेन की आधारशिला और सरदार सरोवर बांध जनता को सौंपने की दो बेहद महत्वाकांक्षी योजनाएं भी शामिल हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने अस्पताल, डेयरी, हाउसिंग प्रोजेक्ट, डायमंड प्रोसेसिंग यूनिट, स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स आदि योजनाओं का उद्घाटन या फिर शिलान्यास किया। इसके अलावा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसमें जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ रोड शो, भारत-जापान वार्षिक वार्ता सम्मेलन, महिला सरपंच का राष्ट्रीय सम्मेलन आदि शामिल हैं।
दरअसल गुजरात की सत्ता को बचाने के लिए एक तरफ जहां भाजपा कार्यकर्ता कठिन परिश्रम कर रहे हैं, वहीं मोदी की छवि को आगे करके वोटबैंक के ध्रुवीकरण को रोकने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस नेतृत्व मतदाताओं तक पहुंचने के लिए जमीनी कार्यकर्ताओं और नेटवर्क की कमी से जूझ रहा है। राजनीति के जानकार कहते हैं भाजपा ने 2015 के स्थानीय निकाय चुनाव से सबक लेकर गुजरात में अपना नेटवर्क मजबूत किया है। दरअसल मोदी के गुजरात छोड़ने के बाद हुए पहले बड़े चुनाव में भाजपा को करारा झटका लगा था और भाजपा के लिए राज्य में खतरे की घंटी बजने लगी थी। यही नहीं, गुजरात गौरव यात्रा के दौरान मोदी ने राज्य में सक्रियता नहीं दिखाई थी। इसके बाद भाजपा ने एक बार फिर मोदी और शाह को आगे कर राज्य में चुनावी बिसात बिछाने का निर्णय किया।
1985 के बाद पहली बार जाति के आधार पर चुनाव
करीब 32 साल बाद गुजरात में चुनाव एक बार फिर जातिगत समीकरणों के आधार पर लड़े जा रहे हैं। 1985 में कांग्रेस नेता माधव सिंह सोलंकी ने क्षत्रिय, दलित, आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं को साधकर 149 सीटें जीती थीं। तब यह सोची समझी रणनीति थी, लेकिन इस बार के चुनाव जातीय आंदोलन के कारण खुद ही जातिगत हो गई है। पिछले दो सालों में तीन बड़े आंदोलन राज्य में हुए हैं। इन आंदोलनों में हुए नुकसान को कम करने के लिए केंद्र और गुजरात की भाजपा सरकार ने घोषणाओं की झड़ी लगा दी। इसमें पाटीदार आंदोलन के 400 से अधिक केस वापस लेने का निर्णय, सफाईकर्मियों की अनुकंपा नियुक्ति, एमटी कर्मचारियों को लंबित एचआरए भुगतान के फैसले सहित करीब 35 घोषणाएं शामिल हैं। एक बड़ी घोषणा किसानों को तीन लाख तक ब्याज मुक्त ऋण देने की है। मालूम हो कि यहां अधिकांश किसान ओबीसी, आदिवासी और पाटीदार हैं।
2003 से ही नरेंद्र मोदी ने वायब्रेंट गुजरात की शुरूआत कर कट्चर हिन्दुत्ववादी छवि की बजाय खुद को विकास पुरूष के रूप में मेकओवर शुरू कर दिया था। लेकिन इस बार गुजरात चुनाव में यह करीब दो दशक में पहला मौका है जब भाजपा को विकास पर भी सफाई देनी पड़ रही है। यह सब उसके बाद और बढ़ गया जब विकास पागल हो गया है जैसे जुमले तेजी से गुजरात में लोगों की जुबान पर चढ़ रहे हैं। दूसरी ओर कांग्रेस यहां पहली बार सॉफ्ट हिन्दुत्व की ओर भी जा रही है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अब तक गुजरात दौरों के दौरान लगातार मंदिर जा रहे हैं। सौराष्ट्र के द्वारिका मंदिर से दौरा शुरू करने वाले राहुल आधा दर्जन से अधिक मंदिरों में मत्था टेक चुके हैं। कांग्रेस मुस्लिम मतदाताओं का कोई जिक्र भी नहीं कर रही है।
गुजरात विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान विभाग के अध्यक्ष और राजनीतिक विश्लेषक गौरांग जानी की मानें तो ये चुनाव विकास के मुकाबले जातिवाद का नहीं है लेकिन विकास के खिलाफ सामाजिक विरोधाभास सामने जरूर आया है। गुजरात में भाजपा 1995 से पूर्ण बहुमत में है। साल 2007 और 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व और भाजपा सरकार के विकास कार्यों को मुद्दा बनाकर चुनाव में जीत हासिल की। अब कांग्रेस भाजपा के उसी विकास को झूठा बताते हुए मुद्दा बना रही है। यह चुनाव भाजपा के लिए काफी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इस चुनाव में नरेंद्र मोदी गुजरात में नहीं हैं। उनकी गैरमौजूदगी में तीन साल में गुजरात दो-दो मुख्यमंत्रियों को देख चुका है। भाजपा के दो दशक से अधिक समय से लगातार शासन में होने के चलते गुजरात में एक समूची नई पीढ़ी जन्म लेकर युवा हो चुकी है। इस पीढ़ी को नहीं पता कि गुजरात में कांग्रेस का शासन कैसा था। इस स्थिति में 2017 में भाजपा अब कांग्रेस की विफलताएं गिनाए तो यह बात लोगों को अपील नहीं करती है।
गुजरात का जातीय समीकरण
ब्राह्मण 2 प्रतिशत
बनिया 2 प्रतिशत
राजपूत 5 प्रतिशत
पाटीदार 12 प्रतिशत
दलित 8 प्रतिशत
आदिवासी 15 प्रतिशत
ओबीसी 40 प्रतिशत
अन्य 16 प्रतिशत
किस क्षेत्र में किसका दबदबा
सौराष्ट्र कच्छ में कुल सीटें 54
पटेलों के प्रभुत्व वाली सीटें- 22
ओबीसी के प्रभुत्व वाली सीटें- 27
मध्य गुजरात में कुल सीटें 68
आदिवासी बहुल सीटें- 18
ठाकोर-कोली के प्रभुत्व वाली सीटें- 16
पाटीदार के प्रभुत्व वाली सीटें- 15
मुस्लिम के प्रभुत्व वाली सीटें- 6
उत्तर गुजरात में कुल सीटें 32
12 सीटों पर पाटीदारों का प्रभुत्व
10 सीटों पर ठाकोर का प्रभुत्व
4 सीटों पर आदिवासियों का प्रभुत्व
एक सीटर पर एससी का प्रभुत्व
दक्षिण गुजरात में कुल सीटें 28
9 सीटों पर आदिवासियों का दबदबा
6 सीटों पर पाटीदारों का वर्चस्व
5 सीटों पर कोली और पटेल
एक सीट पर एससी का प्रभुत्व