मध्यस्थता पर कांव-कांव
किरण राय
अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद का फिलहाल अंत होता नहीं दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल बनाकर मसले को कम से कम लोकसभा चुनाव तक तो टाल ही दिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को किसी ने चुनौती तो नहीं दी है, लेकिन मध्यस्थता पैनल के ऐलान के बाद जिस अंदाज में भाजपा नेता उमा भारती और एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी की प्रतिक्रिया सामने आई है वह शीर्ष अदालत के फैसले को जरूर सवालों के घेरे में लाता है।
केंद्रीय मंत्री और राम मंदिर आंदोलन की सक्रिय नेता रहीं उमा भारती ने एक खबरिया चैनल से बातचीत में साफ तौर पर कहा कि हम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन इसके साथ ही हम राम भक्त भी हैं। हम एक ही बात कहेंगे कि जैसे वेटिकन सिटी में मस्जिद नहीं बन सकतीं, मक्का-मदीना में कोई मंदिर नहीं बन सकता, उसी तरह से रामलला जहां पर हैं वहां कोई दूसरा धार्मिक स्थल नहीं बन सकता। अच्छा होगा कि सभी मिलकर राम मंदिर निर्माण के लिए काम करें। उमा की बातों पर यकीन करें तो कोर्ट द्वारा गठित मध्यस्थता पैनल कुछ भी कहे, भाजपा को अयोध्या में सिर्फ राम मंदिर का निर्माण चाहिए। बाबरी मस्जिद उसे मंजूर नहीं। जाहिर है, जब एक पक्ष इस बात पर पहले से ही मन बनाकर बैठा हो तो फिर मध्यस्थता पैनल की सफलता का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।
दूसरी प्रतिक्रिया एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी की है जिन्होंने तीन सदस्यीय मध्यस्थता पैनल में शामिल आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर को शामिल किए जाने पर सवाल उठाया है। ओवैसी का कहना है कि श्री श्री का 4 नवंबर 2018 का ऑन रिकॉर्ड स्टेटमेंट है जिसमें वह कहते हैं कि अगर मुसलमान अयोध्या पर अपना दावा नहीं छोड़ते हैं तो भारत सीरिया बन जाएगा। अब शीर्ष अदालत ने श्री श्री को मध्यस्थ बनाया है तो उन्हें निष्पक्ष रहना होगा। बावजूद इसके मेरी राय में एक मध्यस्त का पहले का बयान अगर विवादित है तो उसे मध्यस्थ नहीं बनाया जाना चाहिए था। ओवैसी की यह प्रतिक्रिया निश्चित रूप से मध्यस्थता पैनल के गठन पर सवाल खड़ा करता है। जबकि पैनल ने अभी अपना काम शुरू भी नहीं किया है।
कहने का तात्पर्य यह कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में दो ही पक्ष हैं। दोनों पक्षों की नुमाइंदगी करने वाले नेताओं के कांव-कांव जब इस तरह से सामने आ रहे हों तो फिर मध्यस्थता पैनल में शामिल लोगों की मध्यस्थता का रिजल्ट किस रूप में सामने आएगा? सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। हां, एक बात जरूर होगी कि तब तक चुनाव हो जाएगें, नतीजे भी आ जाएंगे, नई सरकार का गठन भी हो जाएगा और फिर इस विवाद से चार साल के लिए छुट्टी। क्योंकि यह मुद्दा पूरी तरह से वोट की सियासत का जो है।