दिल से राहुल
किरण राय
राहुल गांधी कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन गए हैं। अपने अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी कांग्रेस कैसी होगी। उसकी आत्मा से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी लेकिन स्वरूप में कुछ बदलाव तो होगा ही। रणनीति को अंजाम फ्रंट फुट पर आकर दिया जाएगा। वार पीछे से नहीं होगा। शालीनता होगी लेकिन आक्रामकता को तिलांजलि नहीं दी जाएगी। वो आग लगाते हैं, हम बुझाते हैं- कि तर्ज पर ही काम होगा। कोशिश मध्ययुगीन भारत को नए युग में वापसी दिलाने की होगी। 19 साल बाद कांग्रेस ने नए अध्यक्ष का चुनाव किया है। अपेक्षाएं कई हैं।
नए कांग्रेस अध्यक्ष के सामने चुनौतियों का अंबार है। सबसे बड़ा चैलेंज वंशवाद को लेकर है। वो गांधी नेहरू परिवार की पौध हैं और उनकी काबिलियत को हमेशा इसी से तौला जाएगा। हालांकि उन्होंने हाल ही में कई मौकों पर इस मुद्दे को सूझबूझ के साथ डील भी किया है। इसके अलावा पार्टी के भीतर और बाहर ऐसे खिलाड़ियों की कमी नहीं है जो मौके पर चोट करने की ताक में रहें हैं और आगे भी रहेंगे। शायद सबसे बड़ी चुनौती अपने इन सगों से ही निपटने की होगी। एक और चुनौती है पार्टी के जनाधार को बढ़ाने और बचाने की। पिछले लोकसभा चुनावों में पार्टी को काफी खामियाजा भुगतना पड़ा और आंकड़ा दहाई को भी पार नहीं कर पाया।
राजनीति को लेकर राहुल ने अपना नजरिया काफी हद तक जनता की पसंद के हिसाब से परिभाषित किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि राजनीति का इस्तेमाल लोगों के उत्थान के लिए नहीं बल्कि उन्हें कुचलने के लिए हो रहा है। आज के दौर में कांग्रेस के नए अध्यक्ष की ये सोच स्वागत योग्य है। उन्होंने खुलकर मैदान में अपने जौहर दिखाए हैं। राहुल ने किसी मंझे हुए राजनेता की तरह ये कह कर कि देश के कई लोगों का हमारे समय की राजनीति से मोहभंग हो गया है क्योंकि आज राजनीति में करुणा और सच्चाई का अभाव है- अपनी परिपक्वता का बेखौफ उदाहरण दिया है।