RBI और केन्द्र की बीच जाहिर हुए मतभेद, वित्त मंत्रालय के साथ बैठक को एमपीसी ने कहा ना
सत्ता विमर्श ब्यूरो
मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और केन्द्र सरकार के बीच दरार लगातार बढ़ती जा रही है। भारतीय रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी ने एक बार फिर से सरकार और इंडस्ट्री की उम्मीदों के विपरीत नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया है। यही नहीं आरबीआई की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी ने दरों पर फैसला लेने से पहले फाइनैंस मिनिस्ट्री की ओर से बुलाई गई मीटिंग में जाने से इनकार कर दिया। इसके बाद गवर्नर उर्जित पटेल ने स्पष्ट किया कि स्वायत्ता को लेकर वो कोई समझौता नहीं कर सकते।
एमपीसी पर रिजर्व बैंक गवर्नर, डिप्टी गवर्नर और कार्यकारी निदेशक सहित तीन सदस्य रिजर्व बैंक से हैं जबकि तीन सदस्य बाहर से हैं। वहीं, केंद्रीय बैंक की ओर से मौद्रिक समीक्षा में नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट) में कटौती की घोषणा नहीं करने के बाद उसके अधिकारियों ने कहा कि मौजूदा आर्थिक हालात में ब्याज दरों में बड़ी कटौती करने का अच्छा मौका था।
बैठक को ना कहने के बाद पटेल ने कहा, ‘बैठक नहीं हुई। सभी एमपीसी सदस्यों ने वित्त मंत्रालय का बैठक संबंधी अनुरोध अस्वीकार कर दिया।’आरबीआई गवर्नर से ऐसी बैठक के बारे में पूछा गया था। उनसे कहा गया था कि क्या ऐसी बैठक से आरबीआई की स्वायत्ता से समझौता नहीं होता। दरअसल, रिजर्व बैंक की ओर से प्रत्येक दो महीने पर होने वाली मौद्रिक समीक्षा पर नजर रखने के लिए सरकार ने पिछले साल ही मौद्रिक समीक्षा समिति (एमपीसी) का गठन किया। जिसमें सरकार के प्रतिनिधियों को भी शामिल किया गया है। रिजर्व बैंक की ओर से मौद्रिक समीक्षा के दौरान कोर्इ भी फैसला समिति में सरकार के सदस्यों की सहमति के बिना नहीं किया जा सकता है। आलोचकों का तर्क था कि इस कमिटी में सरकार की ओर से नामित किए गए सदस्य उसका अजेंडा चलाएंगे और कारोबारियों को आसान दरों पर लोन देने की नीति बनाएंगे। बावजूद इसके जब बुधवार को केंद्रीय बैंक ने रेपो रेट में कटौती नहीं की, तो सरकार स्तब्ध रह गई और उसने अपनी नाराजगी साफ जाहिर भी की।
एमपीसी के इस फैसले से वित्त मंत्रालय खुश नजर नहीं आया। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियम ने अपनी नाराजगी खुलकर व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान आर्थिक स्थिति में रिजर्व बैंक के लिए मौद्रिक नीति में नरमी लाने की बड़ी गुंजाइश थी। उन्होंने कहा कि इस दृष्टिकोण से न केवल खुदरा मुद्रास्फीति अब तक लक्ष्य से काफी कम है, बल्कि विनिर्माण वस्तुओं की मुद्रास्फीति में भी काफी गिरावट आयी है। इस नजरिये से रिजर्व बैंक के मुद्रास्फीति के अनुमान में व्यापक रूप से चूक रही है और प्रणालीगत तौर पर उसका अनुमान एकतरफा ऊंचा रहा है।
वहीं, रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में व्यावहारिक तर्क रखा था। समीक्षा बैठक में राज्यों की कृषि ऋण माफी के कारण मुद्रास्फीति बढ़ने के जोखिम का हवाला देते हुए प्रमुख नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया। केंद्रीय बैंक ने लगातार चौथी बार रेपो दर में कोई बदलाव नहीं किया और इसे 6.25 प्रतिशत पर कायम रखा। रिवर्स रेपो को 6 प्रतिशत पर बरकरार रखा गया है। हालांकि, उसने बैंकों की कर्ज देने की क्षमता बढ़ाने को लेकर सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) में 0.5 प्रतिशत की कटौती की, ताकि आर्थिक वृद्धि को गति दी जा सके।
पटेल ने बताया कि बैठक से इनकार एमपीसी के सभी छह सदस्यों ने किया। सभी सदस्यों ने वित्त मंत्रालय का बैठक संबंधी अनुरोध अस्वीकार कर दिया। रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2017-18 की दूसरी द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में कहा कि एमपीसी का निर्णय मौद्रिक नीति के तटस्थ रुख के अनुरूप है।