रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले में मध्यस्थता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
सत्ता विमर्श ब्यूरो
नई दिल्ली : राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता को लेकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इसको लेकर बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा, यह पूरा मामला भावनाओं, धर्म और विश्वास से जुड़ा है। हम लोग इस विवाद की गंभीरता को समझते हैं। लिहाजा इस मामले में किसी एक मध्यस्थ से नहीं, बल्कि एक पैनल बैठाए जाने की जरूरत है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने दोनों पक्षों से कहा कि वे अपने-अपने मध्यस्थों का नाम बतायें और अगर वे कोई पैनल बना रहे हैं तो उसका भी नाम बतायें। हम जल्दी ही इस पर अपना आदेश पारित करेंगे।
जस्टिस बोबडे ने आगे कहा कि विगत में क्या हुआ इस पर हमारा नियंत्रण नहीं है। चाहे वह बाबर का हमला हो या ये कि किसने इसे (अयोध्या का ढांचा) गिराया। कोई भी उसे (अतीत की घटना को) बदल नहीं सकता। हम सिर्फ़ वह बदल सकते हैं जो सामने है और वह है विवाद। हम लोग आज के विवाद पर बात कर रहे हैं। हम इसको लेकर चिंतित हैं और इसका समाधान ढूंढ़ रहे हैं।
जस्टिस बोबडे ने मीडिया पर भी अपनी बात रखते हुए कहा कि अब जब इस मामले में मध्यस्थता जारी है तो इस पर रिपोर्ट नहीं की जानी चाहिए। यहां कोई ढकोसला नहीं चल रहा है। मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू होने पर किसी भी मकसद को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट इससे पहले दोनों पक्षों से कहा था कि मामले में अगर एक भी फीसदी सुलह की गुंजाइश हो तो वे बीच का रास्ता निकालें। वह मध्यस्थता के लिए गंभीरतापूर्वक एक मौका देना चाहता है।
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में गठित पांच जजों की संवैधानिक बेंच मामले की सुनवाई कर रही है। बेंच ने मध्यस्थता के तरीके के बारे में पूछा तो मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पेश हुए वकील राजीव धवन ने कहा कि मुस्लिम याचिकाकर्ता संबंधित पक्षों के साथ मध्यस्थता, किसी भी समझौते या मामले के निपटान के लिए तैयार हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की हालिया सुनवाई पर राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा था कि कोर्ट द्वारा मध्यस्थता की बात करना एक बेकार की कोशिश है। राम जन्म भूमि पर कोई समझौता नहीं होगा।
गौरतलब है कि इससे पहले अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार 26 फरवरी को सुनवाई की थी। इस मामले पर अगली सुनवाई 8 हफ्ते के लिए टाल दी गई थी। कोर्ट ने इस दौरान मामले से जुड़े दस्तावेजों के अनुवाद को देखने के लिए 6 हफ्ते का समय और दिया था और ये भी कहा था कि हमारे विचार में 8 हफ्ते के वक्त का इस्तेमाल मध्यस्थता के जरिये मसला सुलझाने के लिए भी हो सकता है।